जब कभी भी हम शुभ कार्य की शुरुआत करते हैं तो सर्वप्रथम भगवान श्री गणेश का आवाहन करते हैं। भगवान श्रीगणेश यानि शुभफलदाता, सौम्यता के प्रतीक जिनके मोदक और लड्डुओं जैसी मीठी वाणी और मुस्कान अपने भक्तों को भी प्रसन्नता की मिठास से भर देती है। लेकिन एक बार तीनों लोकों में घटी घटना ने भगवान गणेश को बुरी तरह से क्रुद्ध कर दिया। जिसके बाद उन्हें महाकाय वक्रतुंड का अवतार लेना पड़ा। कहते हैं की भगवान गणेश का वक्रतुंड अवतार बेहद रहस्यमयी है। आगे हम आपको बता रहे हैं कि भगवान गणेश के इस अवतार का रहस्य क्या है?

बात उस समय की है जब इंद्रराज की एक भूल से मत्सरासुर नाम का एक असुर उत्पन्न हो गया। इसके बाद दैत्य गुरु शुक्राचार्य से भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र ॐ नमः शिवाय की दीक्षा प्राप्त की। साथ ही एक पैर पर खड़े होकर कई वर्षों तक भगवान शिव की तपस्या की। मत्सरासुर की कड़ी तपस्या देखकर भगवान शिव प्रसन्न हुए। उन्होंने मत्सरासुर से वरदान मांगने को कहा। जिसके बाद उसने भगवान शिव से कहा कि वे उसे ऐसा वरदान से जिससे कि न तो उसे कोई देव, दैत्य और मनुष्य उसका संहार न कर सके।

मत्सरासुर की ईच्छा सुनकर भगवान शिव उसे अभय होने के वरदान प्रदान किया। वरदान पाते ही मत्सरासुर वापस लौटकर गुरु शुक्राचार्य के पास आता है और उन्हें अपने वरदान के बारे में बताता है। यह सुनकर गुरु शुक्राचार्य अति प्रसन्न होते हैं। जिसके बाद उसे दैत्य राज नियुक्त्त कर देते हैं। फिर क्या था दैत्य राज बनते ही मत्सरासुर ने पृथ्वी पर आक्रमण कर दिया। कोई भी राजा मत्सरासुर के आगे नहीं टिक सका। साथ ही पूरी पृथ्वी मत्सरासुर के अधीन हो गई। सभी देवों को परास्त करने के बाद वह तीनों लोकों का राजा बन बैठा। मत्सरासुर से पराजित हुए सभी देवता गण ब्रह्मा जी और विष्णु जी को लेकर भगवान शिव की शरण में जाते हैं।

भगवान शिव भी कुछ नहीं कर सकते थी क्योंकि उनहोंने खुद ही उसे आशीर्वाद दिया था। इसके बाद सभी देवता गण परेशान हो जाते हैं कि आखिर मत्सरासुर का क्या किया जाए। तभी कुछ अनहोनी होती है और अचानक ये मालूम पड़ता है कि मत्सरासुर ने भगवान शिव के कैलाश पर ही आक्रमण दिया। शिव जब तक उसे समझाते वह शिव पर आक्रमण कर देता है। इसके बाद भगवान शिव और मत्सरासुर के बीच भयानक युद्ध होता है। इसके बाद भगवान दत्तात्रेय द्वारा दिए गए एकाक्षरी मंत्र का जाप करते हैं। सभी देवताओं की आराधन सुनकर भगवान गणेश की अवतार वक्रतुंड प्रकट होते हैं। फिर अपनी शक्तियों के द्वारा भगवान गणेश का वक्रतुंड स्वरूप उस दानव का अंत करते हैं।