हिंदू धर्म में होने वाले पूजा-पाठ में भगवान को प्रसाद चढ़ाए जाने की परंपरा है। लेकिन क्या जानते हैं कि इस परंपरा के पीछे क्या मान्यता है। यदि नहीं तो आज हम आपको इसी बारे में बताने जा रहे हैं। मालूम हो कि शास्त्रों में भोजन को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा गया है- सात्विक, राजसी और तामसिक। इन तीनों ही भोजनों में सात्विक भोजन को सबसे पवित्र बताया गया है। सात्विक भोजन में फल, सब्जियां, अनाज, दूध और शहद जैसे खाद्य व पेय पदार्थ आते हैं। बता दें कि भगवान को प्रसाद के रूप से सात्विक भोजन चढ़ाने की ही बात कही गई है। जबकि राजसी और तामसिक भोजन भगवान को चढ़ाने की मनाही है।

ऐसा माना जाता है कि सात्विक भोजन करने वाला व्यक्ति सदैव स्वस्थ्य रहता है और उस पर भगवान की कृपा रहती है। ऐसे में प्रसाद के रूप से सात्विक चीजों का इस्तेमाल करना काफी शुभ हो जाता है। कहते हैं कि जो व्यक्ति सात्विक भोजन से दूर रहता है, वह प्रसाद के रूप में इसे ग्रहण करता है। इससे उस व्यक्ति के सात्विक आहार से जुड़ने की संभावना बढ़ जाती है। कहा जाता है कि पूजा-पाठ के बाद भगवान को आत्मसात करने के लिए प्रसाद दिया जाता है। मान्यता है कि इससे भक्त आसानी से भगवान से जुड़ जाते हैं।

ऐसा कहा गया है कि प्रसाद सदैव दाहिने हाथ से ही ग्रहण करना चाहिए। इससे सूर्यनाडी के सक्रिय हो जाने की मान्यता है। कहते हैं कि ऐसा होने पर व्यक्ति सात्विक भोजन आसानी से आत्मसात कर लेता है। इसके साथ ही प्रसाद हमेशा झुककर लेने की बात भी कही गई है। मान्यता है कि इससे शरीर में सात्विकता काफी बढ़ जाती है। इसके साथ ही प्रसाद का इस्तेमाल पूजा-पाठ में बच्चों को जोड़ने के लिए भी किया जाता है। कहते हैं कि प्रसाद की लालच से बच्चे भगवान से जुड़ते हैं।