शरीर पर भस्म लगाए और हाथों में चिलम लिए नागा साधु संसार की मोह-माया को छोड़ निर्वस्त्र होकर महाकुंभ में अपनी धुनी जमाए अक्सर दिखाई दे जाते हैं। कुंभ के मेले में नागा साधुओं का जमावड़ा आकर्षण का केंद्र होता है। हालांकि, नागा साधु बनने की प्रक्रिया बिल्कुल भी आसान नहीं होती। इसके लिए 6 से 12 साल तक की कड़ी तपस्या करनी पड़ती है और जीते-जी अपना पिंडदान करना पड़ता है।

इतना ही नहीं, नागा साधु बनने की इस प्रक्रिया में करीब 51 हजार से डेढ़ लाख रुपए तक का खर्चा आता है। भारतीय परंपरा में नागा साधुओं का इतिहास हजारों साल पुराना है। इसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और संन्यासी जीवन जीने की प्रबल इच्छा होनी चाहिए। सनातन परंपरा की रक्षा करने के लिए महाकुंभ के दौरान आम आदमी के नागा साधु बनने की प्रक्रिया शुरू होती है। नागा साधु बनने के लिए अखाड़ों में रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी होता है। बता दें, देश में कुल 13 अखाड़े हैं, जिसमें रजिस्ट्रेशन की शुरुआती पर्ची के लिए 3500 रुपए भरने होते हैं।

इसके उपरांत संसारी दुनिया से निकलने के लिए एक आम आदमी को किसी रजिस्टर्ड नागा साधु की शरण में जाना होता है, जहां गुरु सेवा के साथ ही ब्रह्मचर्य का पालन भी करना पड़ता है। अगर गुरु आपकी सेवा से संतुष्ट हों तो, करीब 6 साल के बाद आप नागा साधु के रूप में रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं।

ऐसे बनते हैं नागा साधु:

नागा साधु बनने के तीन चरण होते हैं, इसमें सबसे पहले शिष्य को अपना पिंडदान करना होता है। जिसके लिए पांच गुरुओं की आवश्यकता होती है। जिसमें हर गुरु की दक्षिणा करीब 11 हजार रुपए होती है। इसके अलावा ब्राह्मण भोज का खर्च अलग होता है। अगर शिष्य यह खर्चा उठाने में सक्षम है, तो ठीक वरना गुरु शिष्य का पूरा खर्चा उठाते हैं।

नागा साधु संस्कार की प्रक्रिया: संस्कार के दौरान गुरु अपने शिष्य को जनेऊ और कंठी पहनाते हैं और साथ ही दिगंबर बनने के लिए प्रेरित करते हैं। बता दें, दिबंगर नागा साधु वस्त्र त्याग कर सांसरिक मोह-माया को पूरी तरह से छोड़ देते हैं और प्रकृति में लीन हो जाते हैं। इसके बाद शमशान घाट की ताजा राख को शरीर पर लगाकर श्रृंगार किया जाता है। ऐसा करने से पिंडदान की प्रक्रिया पूरी होती है।

सिद्ध दिगंबर: सिद्ध दिगंबर बनने की सीढ़ी आखिरी होती है। यह पदवी तप से अर्जित शक्तियों के आधार पर अखाड़े द्वारा दी जाती है।

हर जगह के दीक्षित नागा साधुओं का अलग स्थान और पदवी होती है।

हरिद्वार कुंभ से दीक्षित नागा साधुओं को बर्फानी कहा जाता है। यह नागा साधु शांतिपूर्वक साधना करते हैं। यह ज्यादा गुस्सा नहीं करते।

प्रयाग कुंभ से दीक्षा लेने वाले नागा साधुओं को राजेश्वर नागा कहा जाता है, क्योंकि, यह साधु संयास लेने के बाद राजयोग की कामना करते हैं।

उज्जैन कुंभ से दीक्षित नागा साधुओं को खूनी नागा कहा जाता है, क्योंकि यह काफी गुस्सैल होते हैं।

नासिक कुंभ में दीक्षा लेने वाले साधु खिचड़ी नागा साधु कहलाते हैं। क्योंकि यह परिवेश के अनुसार अपनी प्रवृत्ति बदलते हैं।