हिंदू धर्म में पूजन व्यवस्था में कुलदेवता और देवी के पूजन का महत्व हमेशा से रहा है। प्रत्येक हिंदू परिवार को किसी ऋषि का वंशज माना जाता है, उससे ही उनके गोत्र का पता लगाया जाता है। पूर्व काल में हमारे पूर्वजों ने उपयुक्त कुल देवता या कुलदेवी का चुनाव कर उन्हें पूजना शुरु किया था। मान्यता ये है कि कुलदेवता या देवी कुल की रक्षा करती है जिससे नकारात्मक शक्तियां या बाधाएं उनके कार्यों को रोक नहीं पाती हैं। यदि आप भी कुल देवता या देवी का पूजन करते हैं तो भूलकर भी कुछ गलतियों को नहीं करना चाहिए अन्यथा माना जाता है कि देवी या देवता रुष्ट होकर श्राप देते हैं जिससे पूरा परिवार नष्ट हो जाता है।
-किसी भी पूजन में सबसे आवश्यक सामाग्री होती है जिसमें पानी वाला नारियल, लाल वस्त्र, सुपारी, श्रृंगार की वस्तु, पान के पत्ते , घी, कुमकु, हल्दी आदि का प्रयोग किया जाता है।
– माना जाता है कि जिस स्थान पर कुलदेवी या देवता का पूजन किया जा रहा हो तो वहां सिंदूर वाले स्थान पर सिंदूर अर्पित किया जाए और जहां हल्दी का अर्पण हो, वहां सिंदूर अर्पित नहीं किया जाए।
– कुलदेवता के पूजन में पांच प्रकार की मिठाई रखी जाती है। इसी के साथ हलवा-पूरी का भोग भी रखा जा सकता है।
– इस पूजा के दौरान सबसे ज्यादा जरुरी होता है कि घर के लोग ही पूजा में सम्मलित हो, किसी बाहर के व्यक्ति के कारण पूजा अधूरी रह सकती है। पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद भी सिर्फ परिवार के लोग ही ग्रहण करें।
– यदि दुर्गा और काली माता का पूजन किया जा रहा हो तो पूजा के दौरान भगवान शिव का पूजन भी अवश्य करें।
– कुलदेवता या देवी के पूजन में घर की कुंवारी कन्याओं को शामिल ना करने की मान्यता होती है। इसी के साथ वो पूजा की किसी भी प्रक्रिया में शामिल नहीं होती हैं। यदि उनके हाथ से ये पूजा कराई जाए तो देवी-देवता के नाराज होने की मान्यता है।