हिंदू धर्म में भगवान गणेश की पूजा बड़ी ही आस्था के साथ की जाती है। गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा गया है। यानी कि गणेश जी अपने भक्तों के जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को हर लेते हैं। कहते हैं कि जो भक्त सच्चे मन से गणपति बप्पा की आराधना करते हैं, उनकी पुकार जरूर सुनी जाती है। बुधवार का दिन गणेश जी को समर्पित किया गया है। मान्यता है कि इस दिन गणेश की पूजा करने से वे बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। गणेश जी की पूजा में चावल, फूल, दूर्वा आदि का प्रयोग किया जाता है। आज हम इस बारे में विस्तार से बात करेंगे कि गणेश जी को दूर्वा घास क्यों प्रिय है। और गणेश की पूजा में दूर्वा का इस्तेमाल जरूरी क्यों माना गया है।
इस संदर्भ में एक कथा प्रचलित है। इस कथा के मुताबिक एक अनलासुर नाम का राक्षस था। इसने अपने अत्याचारों से स्वर्ग और पृथ्वी के लोगों को परेशान कर दिया था। अनलासुर ऋषि-मुनियों और आम लोगों को जिंदा ही निगल जाता था। अनलासुर से मुक्ति पाने के लिए इंद्र सहित सभी देवी-देवता शिव जी के पास गए। उन्होंने शिव से प्रार्थना की कि वे अनलासुर का नाश करें। देवी-देवताओं की प्रार्थना सुनने पर शिव जी ने कहा कि अनलासुर का विनाश भगवान गणेश ही कर सकते हैं। यह सुनकर देवतागण गणेश के पास गए।
बताते हैं कि गणेश जी अनलासुर को जिंदा ही निगल गए। लेकिन इससे उनके पेट में बहुत जलन होने लगी। गणेश ने इस जलन को शांत करने के लिए कई उपाय किए। हालांकि कहीं से भी उन्हें फायदा होता नजर नहीं आया। कश्यप ऋषि ने गणेश जी की इस समस्या का समाधान बताया। उन्होंने दूर्वा की 21 गांठ बनाकर श्रीगणेश को खाने को दी। इससे गणेश जी के पेट की जलन शांत हो गई। उसी समय से दूर्गा घास गणेश जी को प्रिय हो गई। साथ ही गणेश की पूजा में दूर्वा घास चढ़ाने की परंपरा आरंभ हुई।
