Maa Baglamukhi Chalisa: हिंदू धर्म में मां बगलामुखी का विशेष महत्व है। ये दस महाविद्या में शामिल है। इनको युद्ध की देवी भी कहा जाता है। साथ ही मां बगलामुखी की पूजा तंत्र और मंत्री साधना के लिए की जाती है। मान्यता है जिस व्यक्ति को शत्रु और अज्ञात भय होता है, वो व्यक्ति मां बगलामुखी की पूजा- अर्चना करें, तो व्यक्ति को अज्ञात भय खत्म हो जाता है। यहां हम बताने जा रहे हैं मां बगलामुखी चालीसा के बारे में, ज्योतिष के अनुसार जो व्यक्ति प्रतिदिन मांं बगलामुखी चालीसा का पाठ करता है, उसको शत्रु कभी हरा नहीं पाते हैं। साथ ही उसके अंदर शत्रुओंं से लड़ने की क्षमता आ जाती है। आइए जानते हैं मां बगलामुखी चालीसा के बारे में…

।। अथ श्री बगलामुखी चालीसा ।।

नमो महाविद्या बरदा , बगलामुखी दयाल ।
स्तम्भन क्षण में करे , सुमरित अरिकुल काल ।।1।।

नमो नमो पीताम्बरा भवानी , बगलामुखी नमो कल्यानी ।
भक्त वत्सला शत्रु नशानी , नमो महाविद्या वरदानी ।। 2।।

अमृत सागर बीच तुम्हारा , रत्न जड़ित मणि मंडित प्यारा ।
स्वर्ण सिंहासन पर आसीना , पीताम्बर अति दिव्य नवीना ।।3 ।।

स्वर्णाभूषण सुन्दर धारे , सिर पर चन्द्र मुकुट श्रृंगारे ।
तीन नेत्र दो भुजा मृणाला, धारे मुद्गर पाश कराला ।। 4 ।।

भैरव करे सदा सेवकाई , सिद्ध काम सब विघ्न नसाई ।
तुम हताश का निपट सहारा , करे अकिंचन अरिकल धारा ।। 5 ।।
तुम काली तारा भुवनेशी ,त्रिपुर सुन्दरी भैरवी वेशी ।
छिन्नभाल धूमा मातंगी , गायत्री तुम बगला रंगी ।। 6 ।।

सकल शक्तियां तुम में साजें, ह्रीं बीज के बीज बिराजे ।
दुष्ट स्तम्भन अरिकुल कीलन, मारण वशीकरण सम्मोहन ।।7 ।।
दुष्टोच्चाटन कारक माता, अरि जिह्वा कीलक सघाता ।
साधक के विपति की त्राता, नमो महामाया प्रख्याता ।।8 ।।

मुद्गर शिला लिये अति भारी , प्रेतासन पर किये सवारी ।
तीन लोक दस दिशा भवानी , बिचरहु तुम हित कल्यानी ।।9 ।।
अरि अरिष्ट सोचे जो जन को, बुद्धि नाश कर कीलक तन को ।
हाथ पांव बांधहु तुम ताके, हनहु जीभ बिच मुद्गर बाके ।।10 ।।

चोरों का जब संकट आवे, रण में रिपुओं से घिर जावे ।
अनल अनिल बिप्लव घहरावे , वाद विवाद न निर्णय पावे ।।11 ।।
मूठ आदि अभिचारण संकट. राजभीति आपत्ति सन्निकट ।
ध्यान करत सब कष्ट नसावे , भूत प्रेत न बाधा आवे ।। 12 ।।

सुमरित राजव्दार बंध जावे, सभा बीच स्तम्भवन छावे ।
नाग सर्प ब्रर्चिश्रकादि भयंकर , खल विहंग भागहिं सब सत्वर ।। 13 ।।
सर्व रोग की नाशन हारी, अरिकुल मूलच्चाटन कारी ।
स्त्री पुरुष राज सम्मोहक, नमो नमो पीताम्बर सोहक ।।14 ।।

तुमको सदा कुबेर मनावे , श्री समृद्धि सुयश नित गावें ।
शक्ति शौर्य की तुम्हीं विधाता , दुःख दारिद्र विनाशक माता ।।15 ।।
यश ऐश्वर्य सिद्धि की दाता , शत्रु नाशिनी विजय प्रदाता ।
पीताम्बरा नमो कल्यानी , नमो माता बगला महारानी ।।16 ।।

जो तुमको सुमरै चितलाई ,योग क्षेम से करो सहाई ।
आपत्ति जन की तुरत निवारो , आधि व्याधि संकट सब टारो ।।17 ।।
पूजा विधि नहिं जानत तुम्हरी, अर्थ न आखर करहूं निहोरी ।
मैं कुपुत्र अति निवल उपाया , हाथ जोड़ शरणागत आया ।।18 ।।

जग में केवल तुम्हीं सहारा , सारे संकट करहुं निवारा ।
नमो महादेवी हे माता , पीताम्बरा नमो सुखदाता ।।19 ।।
सौम्य रूप धर बनती माता, सुख सम्पत्ति सुयश की दाता ।
रौद्र रूप धर शत्रु संहारो , अरि जिह्वा में मुद्गर मारो ।।20 ।।

नमो महाविद्या अगारा, आदि शक्ति सुन्दरी अपारा ।
अरि भंजक विपत्ति की त्राता, दया करो पीताम्बरी माता ।।21 ।।
रिद्धि-सिद्धि दाता तुम्हीं, अरि समूल कुल काल ।
मेरी सब बाधा हरो, मां बगले तत्काल ।।22

।। इति श्री बगलामुखी चालीसा पाठ समाप्त ।।

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