सदगुरुश्री स्वामी आनन्द जी
उगते से जाड़ों की गुनगुनी सी धूप में अंतस में सिहरन समाहित हो जाती है और अचानक से शुभ और मांगलिक कार्यों में ब्रेक लग जाता है। शादी ब्याह का मुहूर्त रफूचक्कर हो जाता है। क्योंकि दिसंबर का उत्तरार्ध और जनवरी का पूर्वार्ध भारतीय मान्यताओं में खर मास कहलाता है।
क्या है ये खर मास?: खर का अर्थ है कर्कश, गधा, क्रूर या दुष्ट। यानी सीधे सीधे कहें तो अप्रिय महीना। हम सब, हमारी धरती और सारे ग्रह-नक्षत्र सौर मंडल के अंग हैं। लिहाज़ा, हमारे जीवन में सूर्य का बड़ा महत्व है। और इस माह में यही महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोतसूर्य निस्तेज, तेजहीन और क्षीणप्राय हो जाता है।
सूर्य 16 दिसंबर को जब वृश्चिक राशि की यात्रा समाप्त करके धनु राशि में लंगर डालेंगे, खरमास का आग़ाज़ होगा। बड़ी अनोखी बात ये है कि देवगुरु कहे जाने वाले बृहस्पति की राशि धनु या मीन में जब जब सूर्य चरण रखते हैं, वह काल खंडसृष्टि के लिए सोचनीय हो जाता है और वक्त के थपेड़ों की तपिश प्रणीयों को बेचैन कर देती है। ज़िंदगी की बिसात पर समय का यह पन्ना जीव और जीवन के लिए उत्तम नही माना जाता।
शुभ कार्य इस काल में वर्जित कहे जाते हैं क्योंकि धनु बृहस्पति की आग्नेय राशि है और इसमें सूर्य का प्रवेश विचित्र, अप्रिय और अप्रत्याशित परिणाम का सबब बनता है। मनुष्य ही नही हर प्राणी की आंतरिक स्थिरता नष्ट होती है और चंचलता घेर लेती है। अंतर्मन में नकरात्मकता प्रस्फुटित होनेलगती है। दैहिक और मानसिक विकार खर-पतवार की तरह परवान चढ़ने लगते हैं।
खर मास और आतंकवादी घटनाएं: मार्गशीर्ष को अर्कग्रहण भी कहते हैं। अर्कग्रहण का अपभ्रंश अर्गहण है और अर्कग्रहण एवं पौष का संगम है खरमास। इस दरम्यान सूर्य की रश्मियां दुर्बल होकर शक्तिहीन हो जाती हैं तथा नाना प्रकार के झमेलों का सूत्रपात करती हैं। सविता अर्थात सूर्य के धनु राशि के दरीचों से झांकते ही राशि के मालिक बृहस्पति अपने मूल स्वभाव के विपरीत आचरण करने लगते हैं और जैसे ही इस राशि में भास्कर के कदम पड़ते हैं, बंटाधार का आग़ाज़ होने लगता है।
मस्तिष्क में नाना प्रकार की ख़ुराफ़ातें अंगड़ाई लेने लगती हैं। गुरु तेजहीन होकर बेअसर दृष्टिगोचर होने लगता हैं। परिणाम स्वरूप बृहस्पति आचरण विचित्र हो जाता है। और मानव सृष्टि में आतंक, भय और अजीब परिस्थितियों का सृजन होता है। कई बड़े कांड जैसे कंधार हाइजैक और विदेशों में गोलाबारी जैसी कई आतंकवादी घटनाएं इसी दरम्यान हुई हैं। कहते हैं कि इस माह में मृत्यु होने पर व्यक्ति नरकगामी होता है।
पौराणिक मान्यताएं: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस महीने में सूर्य के रथ के साथ महापद्म और कर्कोटक नाम के दो नाग, आप तथा वातनामक दो राक्षस, तार्क्ष्य एवं अरिष्टनेमि नामक दो यक्ष, अंशु व भग नाम के दो आदित्य, चित्रांगद और अरणायु नामक दोगन्धर्व, सहा तथा सहस्या नाम की दो अप्सराएं और क्रतु व कश्यप नामक दो ऋषि संग संग चलते हैं।
आत्म कल्याण और उत्कर्ष के लिए है अनूठा महीना: मार्गशीर्ष महीना स्वयं में बेहद विशिष्ट है। यह माह आंतरिक कौशल और बौद्धिक चातुर्य से शीर्ष पर पहुंचने का मार्ग प्रकटकरता है। मार्गशीर्ष और पौष का संधिकाल खरमास के आग़ोश में बीतता है। इस दौरान यदि बाह्य जगत के बाहरी कर्मों से निर्मुक्त होकर, स्वयं में प्रविष्ट होकर खुद को तराशा जाए, निखारा जाए, संवारा जाए तो व्यक्ति जीवन में उत्कर्ष कावरण करता है।
मांगलिक कार्य अमांगलिक फल देते हैं: धनु राशि की यात्रा और पौष मास के संयोग से देवगुरु के स्वभाव में अजीब सी उग्रता के कारण यह माह नकारात्मक कर्मों को प्रोत्साहित करता है। इसीलिए इसे कहीं-कहीं दुष्ट माह भी कहा गया है। बृहस्पति के आचरण में उग्रता, अस्थिरता, क्रूरता एवं निकृष्टता के कारण इस मास के मध्य शादी-विवाह, गृह आरंभ, गृहप्रवेश, मुंडन, नामकरण आदिमांगलिक कार्य अमांगलिक सिद्ध हो सकते हैं इसलिए शास्त्रों ने इस माह में इनका निषेध किया है।
खरमास में सूर्य उपासना बदल सकती है जीवन: ज्योतिषिय मान्यताओं के अनुसार सूर्य अकेले ही सात ग्रहों के दुष्प्रभावों को नष्ट करने का सामर्थ्य रखते हैं। दक्षिणायन होने पर सूर्य के आंतरिक बल में कमी परिलक्षित होती है। अतएव ढेरों अवांछित झमेलों का सूत्रपात होता है। पर उत्तरायण होते ही सूर्य नारायण समस्त ग्रहों के तमाम दोषों का उन्मूलन कर देते हैं। अतः दैविक, दैहिक और भौतिक कष्टों से मुक्तिके लिए दिनकर की उपासना असरदार मानी गयी है।
बेरोज़गारों, मुक़दमे में फंसे लोगों, प्रमोशन की चाहत रखने वालों, अटके हुए पैसे को वापस पाने वालों और राजनीति में झंडा बुलंद करने के आकांक्षियों, हृदय रोगों के साथ अनेक विकारों से ग्रस्त व त्रस्त लोगों को इस कालखंड में रक्त वर्णके उगते मार्तण्ड की उपासना की सलाह दी जाती है। मान्यताएं कहती हैं कि जिनका बार बार अपमान होता हो, कोई कलंक लग चुका हो, मानसिक या शारीरिक प्रताड़ना झेलना पड़ता हो, या पक्षाघात, ब्रेन ट्यूमर या मानसिक समस्याओं से पीड़ा मिल रही हो, जीवन क़र्ज़ के दुष्चक्र में फंस गया हो, बार- बार अपमान का घूंट पीना पड़ता हो या बारम्बार पराजित होना पड़ता हो उन्हें इस संधिकाल में अभिजीत मुहूर्त में दिवाकर की उपासना करनी चाहिए।
भौतिक वस्तुओं व अन्न-धन की कमी से उबरने के लिए खरमाह में डूबते आदित्य की आराधना से लाभ होता है। ऐश्वर्य और सम्मान के अभिलाषियों को खरमास में ब्रह्म मुहूर्त में भास्कर की आराधना करनी चाहिए। मोक्ष मुक्ति के इच्छुक लोगों को इस समय में गुरु की सेवा और अधिक से अधिक ध्यान और आकाशीय ध्वनि सुनने का अभ्यास अनिवार्य रूप से करना चाहिए।
इस काल का नाम कैसे पड़ा खरमास?: खरमास नाम के प्रचलन में एक कथा प्रचलित है। प्रभाकर यानी सूर्य देव अपने सप्त अश्वों के घोड़ों के रथ में भ्रमण कर रहे थे। घोड़ों की प्यास बुझाने के लिए एक सरोवर के पास उन्होंने रथ को रोका और अश्वों को जल अर्पित किया। जल ग्रहण करने के पश्चात घोड़ों को आलस्य आ गया और वो निद्रा के आग़ोश में चले गए। तब रविदेव को अहसास हुआ कि उनके रुकने से सृष्टि की निरंतरता व गतिशीलता प्रभावित हो सकती है।
तभी अंशुमाली यानी सूर्य नारायण को उस जलाशय के किनारे गर्दभ दिखाई दिए। भानुदेव ने उन को अपने रथ में बांध लिया। दिनेशदेव पूर्ण मास भर निस्तेज होकर मंद रफ़्तार से रासभ यानी गधों के खर रथ पर सवार रहे। खर की सवारी के कारण इस महीने को खरमास कहा गया।