Kawad Yatra Pauranik Katha: रावण को आमतौर पर बुराई का प्रतीक माना जाता है। उसमें अहंकार, क्रोध, मोह, लालच, ईर्ष्या, अज्ञान और द्वेष जैसे अवगुणों की भरमार थी। हालांकि कुछ समुदाय के लोग रावण को एक महान योद्धा और विद्वान भी मानते हैं। आज भी कई समुदायों में रावण को सम्मानपूर्वक याद किया जाता है और कुछ स्थानों पर तो उसकी पूजा भी की जाती है। रावण भगवान शिव का परम भक्त था। वह प्रतिदिन सुबह-शाम भोलेनाथ की आराधना करता था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कांवड़ यात्रा की शुरुआत किसने की थी? ऐसे में आइए जानते हैं इससे जुड़ी पौराणिक कथा…

क्या रावण ने शुरू की थी कांवड़ यात्रा?

ऐसी मान्यता है कि रावण ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी और उसी दौरान उसने शिव तांडव स्तोत्र की रचना भी की थी, जिसे आज भी शिवभक्त श्रद्धा से पढ़ते हैं। इतना ही नहीं, रावण ने भगवान शिव के जलाभिषेक के लिए पवित्र गंगाजल लाने के लिए कांवड़ यात्रा भी की थी। यह माना जाता है कि रावण की इस भक्ति यात्रा के बाद ही कांवड़ यात्रा की परंपरा की शुरुआत हुई। रावण को इसलिए पहला कांवड़िया भी कहा जाता है।

इस कारण रावण ने किया था शिवलिंग का जलाभिषेक

पौराणिक कथाओं के अनुसार, त्रेता युग में जब समुद्र मंथन हुआ तो उसमें से सबसे पहले कालकूट विष निकला, जिसे पीने के लिए कोई भी देवता या असुर तैयार नहीं हुए। तब भगवान शिव ने संसार की रक्षा के लिए उस विष को स्वयं ग्रहण कर लिया। हालांकि उन्होंने उसे कंठ में ही रोक लिया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया और वे नीलकंठ कहलाए। लेकिन इस विष के प्रभाव से उनके शरीर में अत्यधिक गर्मी और जलन होने लगी। जैसे ही यह बात रावण को पता चली, तब उसने भगवान शिव की पीड़ा को शांत करने के लिए पवित्र गंगाजल लाने का निश्चय किया।

रावण ने कांवड़ में गंगाजल भरकर लाया और पुरा महादेव में स्थित शिवलिंग का जलाभिषेक किया। ऐसा कहा जाता है कि गंगाजल के शीतल प्रभाव से शिव जी को विष की पीड़ा से राहत मिली। माना जाता है कि रावण की इस शिवभक्ति और समर्पण भाव ने कांवड़ यात्रा की परंपरा को जन्म दिया। तभी से लाखों श्रद्धालु हर साल सावन में गंगाजल लाकर भगवान शिव का अभिषेक करते हैं और अपने जीवन को पुण्य से भरते हैं। हालांकि कांवड़ यात्रा की शुरुआत को लेकर और भी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन रावण की यह कथा सबसे अधिक लोकप्रिय और प्रभावशाली मानी जाती है।

भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए भक्त करते हैं कांवड़ यात्रा

हर वर्ष सावन मास में लाखों श्रद्धालु पूरे भक्ति भाव से कांवड़ यात्रा में शामिल होते हैं। भक्तजन पवित्र नदियों जैसे गंगा, यमुना, नर्मदा, शिप्रा या गोदावरी से जल भरकर कांवड़ में लाते हैं और फिर उसे किसी प्राचीन शिव मंदिर में स्थित शिवलिंग पर अर्पित करते हैं। यह जलाभिषेक भक्तों की आस्था और समर्पण का प्रतीक होता है। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान शिव प्रसन्न होकर अपने भक्तों को सुख, शांति, धन, आरोग्यता और समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

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