Kanwar Yatra 2023: हिंदू पंचांग के अनुसार, श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि के साथ सावन का माह शुरू हो रहा है। इस साल अधिक मास होने के कारण सावन पूरे 2 माह होंगे। ऐसे में पूरे 8 सावन सोमवार पड़ने वाले हैं। इसके साथ ही 4 प्रदोष व्रत और 2 शिवरात्रि पड़ेंगी। सावन माह में कावड़ यात्रा भी निकालने की परंपरा है। ऐसे में लाखों शिवभक्त भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए कांवड़ लेने के लिए जाते हैं। आइए जानते हैं कि इस साल कब से शुरू हो रही है कांवड़ यात्रा और किस दिन भोले बाबा को कांवड़ का जल चढ़ाना होगा शुभ।
कब से शुरू हो रही है कांवड़ यात्रा 2023?
सावन माह शुरू होने के साथ की कांवड़ यात्रा भी शुरू हो जाती है। इस साल कांवड़ यात्रा 4 जुलाई से शुरू हो रही है। इसके साथ ही 15 जुलाई 2023, शनिवार को शिवरात्रि के दिन जल चढ़ाने के साथ कांवड़ यात्रा समाप्त हो जाएगी। इसके अलावा इस बार 14 अगस्त को भी सावन शिवरात्रि है।
कब चढ़ेगा शिव जी को कांवड़ का जल?
हिंदू तीर्थ स्थानों जैसे हरिद्वार, गोमुख, गंगोत्री, काशी विश्वनाथ, बैद्यनाथ, नीलकंठ, देवघर जैसे स्थानों से कावड़िया जल भरकर पैदल यात्रा करके स्थानीय या फिर फेमस शिव मंदिर में पवित्र जल अर्पित करते हैं। इस साल सावन माह पूरे 59 दिन का पड़ रहा है। ऐसे में शिवरात्रि दो पड़ रही है। पहली 15 जुलाई और दूसरी 14 अगस्त। लेकिन 15 अगस्त के दिन शिवलिंग में कांवड़ का जल चढ़ाना सबसे ज्यादा शुभ माना जाता रहा है।
सावन शिवरात्रि 2023 जल चढ़ाने का शुभ मुहूर्त
सावन शिवरात्रि- 15 जुलाई 2023, रविवार
निशिता काल पूजा समय- सुबह 12 बजकर 07 मिनट से 16 जुलाई को सुबह 12 बजकर 48 मिनट तक
शिवरात्रि पारण समय- 15 जुलाई को सुबह 05 बजकर 33 मिनट से दोपहर 03 बजकर 54 मिनट तक
रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय- शाम 07 बजकर 21 मिनट से 09 बजकर 54 मिनट तक
रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय- रात 09 बजकर 54 मिनट 16 जुलाई को सुबह 12 बजकर 27 मिनट तक
रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय- 16 जुलाई को सुबह 12 बजकर 27 मिनट से दोपहर 03 बजे तक
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ- 15 जुलाई 2023 को शाम 08 बजकर 32 मिनट से शुरू
चतुर्दशी तिथि समाप्त- 16 जुलाई 2023 को रात 10 बजकर 08 मिनट तक
कैसे शुरू हुई कांवड़ यात्रा?
कांवड़ यात्रा शुरू होने के पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित है। पहली कथा के अनुसार, भगवान परशुराम ने गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लाकर भगवान शिव के मंदिर में जल चढ़ाया था। जब उन्होंने जल चढ़ाया, तो श्रावण मास चल रहा था। इसके बाद से कांवड़ यात्रा शुरू हुई।
दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान हलाहल विष निकला था। संसार की रक्षा के लिए भगवान शिव ने इस विष का पान करके कठ में समाहित कर लिया। इसके बाद वह नीलकंठ कहलाएं। विष के कारण उन्हें काफी गर्मी लगने लगी। ऐसे में उनकी गर्मी को शांत करने के लिए देवी-देवताओं ने विभिन्न नदियों का जल अर्पित किया। इसके बाद से कांवड़ यात्रा का आरंभ हुआ।