Kartik Purnima Aarti Lyrics In Hindi: हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन कार्तिक पूर्णिमा मनाई जाती है। इस साल कार्तिक पूर्णिमा आज यानी 15 नवंबर 2024 को मनाई जा रही है। देव दीपावली का पर्व भी आज ही मनाया जाएगा। पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन सभी देवी-देवता धरती पर पधारते हैं और गंगा घाट पर दिवाली मनाते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के साथ भगवान शिव की भी पूजा की जाती है। इसके अलावा कार्तिक पूर्णिमा के दिन पूजा के बाद विष्णु जी, लक्ष्मी जी, शिव जी और तुलसी जी की आरती करनी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से साधक को शुभ फलों की प्राप्ति होती है। ऐसे में यहां पढ़ें कार्तिक पूर्णिमा की आरती।

भगवान विष्णु की आरती (Om Jai Jagdish Hare Aarti)

ॐ जय जगदीश हरे,

स्वामी जय जगदीश हरे ।

भक्त जनों के संकट,

दास जनों के संकट,

क्षण में दूर करे ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

जो ध्यावे फल पावे,

दुःख बिनसे मन का,

स्वामी दुःख बिनसे मन का ।

सुख सम्पति घर आवे,

सुख सम्पति घर आवे,

कष्ट मिटे तन का ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

मात पिता तुम मेरे,

शरण गहूं किसकी,

स्वामी शरण गहूं मैं किसकी ।

तुम बिन और न दूजा,

तुम बिन और न दूजा,

आस करूं मैं जिसकी ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

तुम पूरण परमात्मा,

तुम अन्तर्यामी,

स्वामी तुम अन्तर्यामी ।

पारब्रह्म परमेश्वर,

पारब्रह्म परमेश्वर,

तुम सब के स्वामी ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

तुम करुणा के सागर,

तुम पालनकर्ता,

स्वामी तुम पालनकर्ता ।

मैं मूरख फलकामी,

मैं सेवक तुम स्वामी,

कृपा करो भर्ता॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

तुम हो एक अगोचर,

सबके प्राणपति,

स्वामी सबके प्राणपति ।

किस विधि मिलूं दयामय,

किस विधि मिलूं दयामय,

तुमको मैं कुमति ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

दीन-बन्धु दुःख-हर्ता,

ठाकुर तुम मेरे,

स्वामी रक्षक तुम मेरे ।

अपने हाथ उठाओ,

अपने शरण लगाओ,

द्वार पड़ा तेरे ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

विषय-विकार मिटाओ,

पाप हरो देवा,

स्वमी पाप(कष्ट) हरो देवा ।

श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,

श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,

सन्तन की सेवा ॥

ॐ जय जगदीश हरे,

स्वामी जय जगदीश हरे ।

भक्त जनों के संकट,

दास जनों के संकट,

क्षण में दूर करे ॥

शिव जी की आरती (Shiv Ji Ki Aarti)

ॐ जय शिव ओंकारा,

स्वामी जय शिव ओंकारा।

ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव,

अर्द्धांगी धारा ॥

ॐ जय शिव ओंकारा…॥

एकानन चतुरानन

पंचानन राजे ।

हंसासन गरूड़ासन

वृषवाहन साजे ॥

ॐ जय शिव ओंकारा…॥

दो भुज चार चतुर्भुज

दसभुज अति सोहे ।

त्रिगुण रूप निरखते

त्रिभुवन जन मोहे ॥

ॐ जय शिव ओंकारा…॥

अक्षमाला वनमाला,

मुण्डमाला धारी ।

चंदन मृगमद सोहै,

भाले शशिधारी ॥

ॐ जय शिव ओंकारा…॥

श्वेताम्बर पीताम्बर

बाघम्बर अंगे ।

सनकादिक गरुणादिक

भूतादिक संगे ॥

ॐ जय शिव ओंकारा…॥

कर के मध्य कमंडल

चक्र त्रिशूलधारी ।

सुखकारी दुखहारी

जगपालन कारी ॥

ॐ जय शिव ओंकारा…॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव

जानत अविवेका ।

प्रणवाक्षर में शोभित

ये तीनों एका ॥

ॐ जय शिव ओंकारा…॥

त्रिगुणस्वामी जी की आरति

जो कोइ नर गावे ।

कहत शिवानंद स्वामी

सुख संपति पावे ॥

ॐ जय शिव ओंकारा…॥

लक्ष्मी व सावित्री

पार्वती संगा ।

पार्वती अर्द्धांगी,

शिवलहरी गंगा ॥

ॐ जय शिव ओंकारा…॥

पर्वत सोहैं पार्वती,

शंकर कैलासा ।

भांग धतूर का भोजन,

भस्मी में वासा ॥

ॐ जय शिव ओंकारा…॥

जटा में गंग बहत है,

गल मुण्डन माला ।

शेष नाग लिपटावत,

ओढ़त मृगछाला ॥

जय शिव ओंकारा…॥

काशी में विराजे विश्वनाथ,

नंदी ब्रह्मचारी ।

नित उठ दर्शन पावत,

महिमा अति भारी ॥

ॐ जय शिव ओंकारा…॥

ॐ जय शिव ओंकारा,

स्वामी जय शिव ओंकारा।

ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव,

अर्द्धांगी धारा ॥

लक्ष्मी जी की आरती (Laxmi Mata Aarti)

महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं,

नमस्तुभ्यं सुरेश्वरि ।

हरि प्रिये नमस्तुभ्यं,

नमस्तुभ्यं दयानिधे ॥

पद्मालये नमस्तुभ्यं,

नमस्तुभ्यं च सर्वदे ।

सर्वभूत हितार्थाय,

वसु सृष्टिं सदा कुरुं ॥

ॐ जय लक्ष्मी माता,

मैया जय लक्ष्मी माता ।

तुमको निसदिन सेवत,

हर विष्णु विधाता ॥

उमा, रमा, ब्रम्हाणी,

तुम ही जग माता ।

सूर्य चद्रंमा ध्यावत,

नारद ऋषि गाता ॥

॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

दुर्गा रुप निरंजनि,

सुख-संपत्ति दाता ।

जो कोई तुमको ध्याता,

ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॥

॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

तुम ही पाताल निवासनी,

तुम ही शुभदाता ।

कर्म-प्रभाव-प्रकाशनी,

भव निधि की त्राता ॥

॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

जिस घर तुम रहती हो,

ताँहि में हैं सद्‍गुण आता ।

सब सभंव हो जाता,

मन नहीं घबराता ॥

॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

तुम बिन यज्ञ ना होता,

वस्त्र न कोई पाता ।

खान पान का वैभव,

सब तुमसे आता ॥

॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

शुभ गुण मंदिर सुंदर,

क्षीरोदधि जाता ।

रत्न चतुर्दश तुम बिन,

कोई नहीं पाता ॥

॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

महालक्ष्मी जी की आरती,

जो कोई नर गाता ।

उँर आंनद समाता,

पाप उतर जाता ॥

॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

ॐ जय लक्ष्मी माता,

मैया जय लक्ष्मी माता ।

तुमको निसदिन सेवत,

हर विष्णु विधाता ॥

तुलसी माता की आरती (Tulsi Mata Ki Aarti)

जय जय तुलसी माता,

मैया जय तुलसी माता ।

सब जग की सुख दाता,

सबकी वर माता ॥

॥ जय तुलसी माता…॥

सब योगों से ऊपर,

सब रोगों से ऊपर ।

रज से रक्ष करके,

सबकी भव त्राता ॥

॥ जय तुलसी माता…॥

बटु पुत्री है श्यामा,

सूर बल्ली है ग्राम्या ।

विष्णुप्रिय जो नर तुमको सेवे,

सो नर तर जाता ॥

॥ जय तुलसी माता…॥

हरि के शीश विराजत,

त्रिभुवन से हो वंदित ।

पतित जनों की तारिणी,

तुम हो विख्याता ॥

॥ जय तुलसी माता…॥

लेकर जन्म विजन में,

आई दिव्य भवन में ।

मानव लोक तुम्हीं से,

सुख-संपति पाता ॥

॥ जय तुलसी माता…॥

हरि को तुम अति प्यारी,

श्याम वर्ण सुकुमारी ।

प्रेम अजब है उनका,

तुमसे कैसा नाता ॥

हमारी विपद हरो तुम,

कृपा करो माता ॥

॥ जय तुलसी माता…॥

जय जय तुलसी माता,

मैया जय तुलसी माता ।

सब जग की सुख दाता,

सबकी वर माता ॥

डिसक्लेमर- इस लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, पंचांग, मान्यताओं या फिर धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है। इसके सही और सिद्ध होने की प्रामाणिकता नहीं दे सकते हैं। इसके किसी भी तरह के उपयोग करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।

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