सुनील दत्त पांडेय
भगवान श्रीकृष्ण और राधा ने साधना ,तपस्या और अपनी रासलीला वृंदावन में यमुना तट पर की थी इसलिए वृंदावन की कुंज गलियां राधा कृष्ण की लीलाओं को लेकर प्रसिद्ध हैं। वहीं,शिव की ससुराल कनखल में गंगा तट पर कई सालों पहले उनके भक्तों ने राधा कृष्ण की जप तप और साधना के लिए दिव्य भव्य मंदिरों का निर्माण कराया था। आज भी कनखल के गंगा तट के राजघाट-सतीघाट क्षेत्र कृष्ण की भक्ति से सराबोर रहते हैं। गंगा के इन पावन तटों पर राधा कृष्ण की भक्ति की धारा गंगा की पवित्र धारा के साथ ही प्रवाहित होती है। वैसे हरिद्वार तीर्थ नगरी विभिन्न पंथ के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रही है।
कृष्ण भक्ति को गंगा के तट पर साकार रूप प्रदान करने के लिए 16वीं और 17वीं सदी में दो रियासतों से जुड़े लोगों ने हरिद्वार के कनखल में गंगा तट पर राधा कृष्ण भक्ति की अलख जगाई थी और गंगा के तट पर शिव मंदिरों के साथ श्री राधा कृष्ण के भव्य दिव्य मंदिरों का निर्माण करवाया था। जयपुर के मूर्तिकारों से कृष्ण की प्रतिमा अत्यंत बहुमूल्य एवं दुर्लभ कसौटी पत्थर की शिला से बनवाई गई थी। वहीं राधा की मूर्ति का निर्माण संगमरमर की शिला से करवाया गया और इन मंदिरों में 15वीं तथा 16 वी शताब्दी में प्रचलित कांगड़ा शैली के सुंदर आकर्षित भित्ति चित्रों को मंदिर के गर्भ गृह की दीवारों पर उकेरा गया। इनमें राधा कृष्ण की लीलाएं प्रदर्शित की गईं।
16वीं शताब्दी में हरिद्वार और कनखल में हरिद्वार के ग्रामीण लक्सर क्षेत्र लंढौरा राजघराने की रियासत का काफी लंबे अरसे तक राज रहा। इस राजघराने ने कनखल में रानी की हवेली तथा दक्षेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण कराया लंढौरा राजघराने की रानियां शिव भक्ति के साथ राधा कृष्ण की भक्ति की भी दीवानी थी और यहां वृंदावन से राधा कृष्ण की रासलीला के मंचन के लिए कलाकार लंढौरा रियासत की रानियां हर वर्ष बुलाती थीं और गंगा के इस पावन तट पर राधा कृष्ण की रासलीलाओं का दिव्य भव्य मंचन होता था।
लंढौरा रियासत की रानियां राधा कृष्ण भक्ति में इतनी अधिक तल्लीन हो जाती थीं कि गंगा का यह पावन तट राधा कृष्ण मय हो जाता था। राधा कृष्ण की भक्ति में लीन लंढोरा रियासत की रानियों के आग्रह पर इस रियासत के राजाओं ने कनखल में गंगा तट पर 17वीं शताब्दी में राजघाट का निर्माण कराया था। यह राधा कृष्ण मंदिर प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। इस मंदिर की गगनचुंबी चोटियां हैं और इसके गर्भ गृह में कांगड़ा शैली के अनुभवी कलाकारों ने भित्ति चित्र बनाए हैं। इनमें स्वर्ण निर्मित रंगों का इस्तेमाल किया गया है।
इतिहासकार और साहित्यकार डॉक्टर प्रमोद चंद्र जोशी ने इन भित्ति चित्रों पर शोध किया है। उनका कहना है कि यह चित्र सुप्रसिद्ध कांगड़ा शैली के हैं जिनमें राधा कृष्ण लीला के साथ समुद्र मंथन, शिव पार्वती विवाह और राम सीता के भी प्रसंग मिलते हैं। राधा कृष्ण मंदिर राजघाट कनखल के मुख्य पुजारी रहे पंडित मामचंद्र शर्मा की बेटी श्रीमती रुक्मणि देवी बताती हंै कि 300 साल पहले लंढोरा रियासत की रानी मां श्रीमती धर्म कौर ने 21 मंदिरों का निर्माण कराया था, जिनमें कनखल, राजघाट का राधा कृष्ण का मंदिर मुख्य मंदिर के रूप में स्थापित किया गया था। राधा कृष्ण मंदिर के गर्भ गृह में भित्ति चित्र की चित्रकारी के लिए 20 मन सोना इस्तेमाल किया गया था।
शूरवीर महाराजा रणजीत सिंह के कालखंड में कृष्ण भक्ति में लीन मंगला नाम की एक बांदी कनखल में कुंभ के अवसर पर गंगा स्नान के लिए आई और वह यहीं की होकर रह गई। मंगला नाम की बांदी ने कनखल में जो भी संपत्ति खरीदी, वह सब ठाकुर जी के नाम पर ही थी और उसकी वसीयत भी उनके नाम से कराई थी। आज भी कनखल के गंगा तट पर मंगला नाम की इस बांदी के राधा-कृष्ण की भक्ति के किस्से लोग भावुक होकर एक दूसरे को सुनाते हैं। इस तरह आज भी कनखल के राजघाट-सतीघाट में गंगा की निर्मल-अविरल धारा के साथ राधा-कृष्ण की भक्ति की धारा निरंतर प्रभावित हो रही है और कृष्ण जन्मोत्सव, कृष्ण की छठी महोत्सव और राधाअष्टमी महोत्सव यहां पर बड़े धूमधाम से मनाया जाता है और आज भी गंगा का यह पावन तट राधा-कृष्ण की भक्ति से सराबोर हो जाता है।
