Jivitputrika Vrat Shubh Muhurt: जीवित्पुत्रिका व्रत का शास्त्रों में विशेष महत्व बताया गया है। यह संतान की लंबी उम्र और सुख- समृद्धि के लिए रखा जाता है। पंचांग के अनुसार यह व्रत हर साल आश्विन मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। यह व्रत निर्जला होता है। इसे जितिया या जिउतिया के नाम से भी जाना जाता है। अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शुरू होने वाला ये व्रत नवमी को पारण के साथ समाप्त होता है। सप्तमी को इस व्रत का शुभारंभ नहाय खाए से होता है और अष्टमी को महिलाएं निर्जला व्रत रखतीं हैं। आइए जानते हैं शुभ मुहूर्त, तिथि और महत्व…
जानिए तिथि और शुभ मुहूर्त
ज्योतिष पंचांग के अनुसार इस साल ये व्रत 18 सितंबर की रात से शुरू होगा और 19 सितंबर तक चलेगा। इस साल 17 सितंबर को दोपहर 2 बजकर 13 मिनट पर अष्टमी तिथि शुरू हो रही है और 18 सितंबर दोपहर 4 बजकर 31 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। उदया तिथि को आधार मानते हुए जितिया का व्रत 18 सितंबर 2022 को रखा जाएगा और इसका पारण 19 सितंबर 2022 को किया जाएगा।
जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व
यह व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी आयु के लिए रखती हैं। इस व्रत को रखने से संतान निरोगी रहती है। साथ ही उसकी जिंदगी में सुख- समृद्धि का वास रहता है। जो कोई भी महिला इस व्रत की कथा सुनती है उसे कभी भी अपनी संतान के वियोग का सामना नहीं करना पड़ता है। इस उपवास में महिलाएं जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करती हैं।
महाभारत काल से है संबंध
जीवित्पुत्रिका व्रत का संबंध महाभारत काल से माना जाता है। आपको बता दें कि जब द्रोणाचार्य का वध कर दिया गया था। तब अश्वत्थामा ने क्रोध में आकर ब्राह्रास्त्र चला दिया था और उसने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे गर्भ को नष्ट कर दिया था। जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने अपनी शक्तियों से उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को पुन जीवित कर दिया और फिर संतान का जन्म हुआ, जिसे जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया। तभी से ये व्रत मनाने की परंपरा चली आ रही है।
जानिए पूजा- विधि
जितिया व्रत के दिन जल्दी उठकर जाएं और फिर साफ- सुथरे कपड़े पहन लें। उसके बाद पूजा करें। इसके बाद महिलाएं भोजन ग्रहण करती हैं और उसके बाद पूरे दिन वो कुछ भी नहीं खाती। दूसरे दिन सुबह स्नान के बाद महिलाएं पहले पूजा पाठ करें फिर पूरा दिन निर्जला व्रत रखती हैं। इसके बाद शाम को प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजा स्थल को भी साफ करना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत में एक छोटा सा तालाब बनाकर पूजा की जाती है।