जन्माष्टमी पर भगवान श्री कृष्ण के जन्म की खुशी मनाई जा रही है। बालगोपाल के जन्म से भक्तों में अपार खुशी है। माना जाता है कि श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं। जिन्होंने द्वापर युग में आकर राक्षसों का वध किया था। बताया जाता है कि गीता का ज्ञान देने के लिए श्री विष्णु ने श्री कृष्ण का अवतार लिया। हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी मनाते हैं। इस साल जन्माष्टमी 12 अगस्त, बुधवार को मनाई जाएगी।

जन्माष्टमी पूजन विधि (Janamashtami Pujan Vidhi):
जन्माष्टमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें।
– एक चौकी लें। उस पर पीला कपड़ा बिछाएं। चौकी पर चारों ओर से कलावा बांधे।
– भगवान कृष्ण के बालरूप की फोटो या प्रतिमा को चौकी पर बैठाएं।
– भगवान की प्रतिमा का दूध, दही, गंगाजल, शहद और घी से अभिषेक करें।
– अगर आप लड्डू गोपाल की सेवा करते हैं तो फोटो पर केवल अभिषेक के छींटे करें। और लड्डू गोपाल का अभिषेक करें।
– अभिषेक के बाद पानी से प्रतिमा को स्नान कराएं। सूती वस्त्र से प्रतिमा को पोंछें। फिर चौकी पर विराजित करें।
– भगवान का श्रृंगार करें। चंदन लगाएं। दीपक जलाकर फूलों का हार प्रतिमा पर अर्पित करें।
– साथ ही मोर पंख और तुलसी दल भी चढ़ाएं।
– कृष्ण स्तुति, कृष्ण गर्भ स्तुति और कृष्ण मधुराष्टकम् का पाठ करें।
– श्री कृष्ण के नाम का या उनके किसी मंत्र का जाप करें।
– इसके बाद आरती करें। आरती करके मक्खन-मिश्री, धनिए की पंजीरी या किसी पीली मिठाई का भोग लगाएं।

जन्माष्टमी पूजा शुभ मुहूर्त (Janamashtami Puja Shubh Muhurat): शुभ मुहूर्त – 12 अगस्त, बुधवार रात 12:05 से लेकर रात 12:48 तक है।

श्री कृष्ण की आरती (Shree Krishna Ki Aarti):

आरती कुंजबिहारी की, गिरिधर कृष्ण मुरारी की ।
गले में बैजन्तीमाला, बजावैं मुरली मधुर बाला ॥
श्रवण में कुंडल झलकाता, नंद के आनंद नन्दलाला की ।।आरती…।।
गगन सम अंगकान्ति काली, राधिका चमक रही आली।
लतन में ठाढ़े बनमाली, भ्रमर-सी अलक कस्तूरी तिलक।।
चंद्र-सी झलक, ललित छबि श्यामा प्यारी की ।।आरती…।।
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।
गगन से सुमन राशि बरसै, बजै मुरचंग, मधुर मृदंग।।
ग्वालिनी संग-अतुल रति गोपकुमारी की।।आरती…।।
जहां से प्रगट भई गंगा, कलुष कलिहारिणी श्री गंगा।
स्मरण से होत मोहभंगा, बसी शिव शीश, जटा के बीच।।
हरै अघ-कीच चरण छवि श्री बनवारी की।।आरती…।।
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू।
चहुं दिशि गोपी ग्वालधेनु, हंसत मृदुमन्द चांदनी चंद।।
कटत भवफन्द टेर सुनु दीन भिखारी की।।आरती…।।