हिंदू पंचाग के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की नवमी को जानकी जयंती का पर्व मनाया जाएगा। धार्मिक ग्रंथ के अनुसार इस दिन माता सीता प्रकट हुई थीं। शास्त्रों के अनुसार फाल्गुन माह को पुष्य नक्षत्र के मध्याह्र काल में जब महाराजा जनक संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे थे, उसी समय एक बालिका प्रकट हुई थी। जोती हुई भूमि और हल की नोक को सीता कहा जाता है, इस कारण उस बालिका का नाम सीता रखा गया था। इस तिथि को जानकी जयंती के नाम से जाना जाता है।

पौराणिक कथा के अनुसार मारवाड़ के क्षेत्र में एक वेदवादी देवदत्त नाम के ब्राह्मण रहते थे, उनकी शोभना नाम की रुपवति पत्नी थी। ब्राह्मण देवता जीविका के लिए अपने गांव से अन्य किसी गांव में भिक्षा के लिए गए हुए थे, वहीं ब्राह्मणी कुसंगत में फंसकर गलत रास्तों पर चल दी थी। पूरे गांव में उसे लेकर निंदा होने लगी थी। इस कारण से उस दुष्ट ने पूरा गांव जलवा दिया था। उस दुष्ट की मृत्यु के बाद अगला जन्म उसका चंडाल के घर में हुआ। पति का त्याग करने के कारण वो चंडालिनी बनी। ग्राम जलाने के अपराध में उसे कुष्ठ हो गया और गलत कामों के कारण वो अंधी हो गई।

अपने कर्मों को भोगती हुई वो एक स्थान से दूसरे स्थान भटकने लगी। दैवयोग के कारण वो भटकती हुई कौशलपुरी पहुंची। उस दिन संयोग से फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि जो समस्त पापों का नाश करती है। जानकी जयंती पर वो भूख-प्यास से व्याकुल प्रार्थना करने लगी कि मुझे कृप्या भोजन सामग्री प्रदान करें। इतने में एक भक्त ने उससे कहा कि देवी आज जानकी जयंती है, आज जो भोजन में अन्न देता है उसे पाप का भागी बनना पड़ता है। कल पारणा करने के समय आना, भगवान का प्रसाद प्राप्त कर सकोगी। उसके जिद्द करने पर भक्त ने उसे तुलसी और जल दे दिया, लेकिन वो पाप भोगिनी भूख से मर गई। इन सबमें उससे अनजाने में जानकी जयंती का व्रत पूरा हो गया। पापिन को मृत्यु के बाद स्वर्ग की प्राप्ति हुई और निर्मल होकर उसका पुनः जन्म हुआ और महाराजा जयसिंह की महारानी काम कला के नाम से विख्यात हुई। उसने अपने राज्य में जानकी और रघुनाथ की कई देवालय बनवाए। माना जाता है जो जानकी जयंती पर माता जानकी का पूजन करता है उन्हें सभी प्रकार के सुख-सौभाग्य प्राप्त होते हैं।