हिंदू धर्म में पितरों की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। पितृ शांत रहें और अपनी कृपा बनाए रखें इसके लिए श्राद्ध इत्यादि भी किये जाते हैं। कहा जाता है कि अगर पितृ खुश नहीं है तो इससे व्यक्ति को कई प्रकार के दुखों का सामना करना पड़ता है। पितृदोष के संबंध में ज्योतिष और पुराणों की अलग अलग धारणा है लेकिन यह तय है कि यह हमारे पूर्वजों और कुल परिवार के लोगों से जुड़ा दोष है। जातक के पितृ दोष से पीड़ित होने का पता उसकी कुंडली देखकर लगाया जाता है। वैसे कुंडली के नवम भाव पर जब सूर्य और राहु की युति हो रही होती है तो यह मान लिया जाता है कि जातक पितृ दोष से पीड़ित है।
कथा वाचक देवकीनंदन ठाकुर के अनुसार जिन पितरों का तर्पण नहीं होता, जिनका श्राद्ध नहीं होता वो तड़पते हैं। और वह अशांत कर देते हैं सबकी जीवन को। इसलिए देवताओं से भी पहले इनकी पूजा करनी चाहिए। इसलिए समय रहते अपने बड़ो से इस बात की जानकारी ले लेनी चाहिए कि कौन सी तिथि को किसका श्राद्ध किया जाता है। बहुत से लोग कहते हैं कि जब पितरों का श्राद्ध कराते हैं, भागवत कराते हैं, गया में बिठा आते हैं तो उसमें पितरों की मुक्ति हो जाती है तो फिर इनका श्राद्ध करने का क्या फायदा है। इसका ये फायदा होता है कि जब किसी की मुक्ति होती है वह भगवान में जाकर समा जाता है। जब हमारे पितरों की आत्मा परमात्मा में समाहित होती है। तब परमात्मा ही हमारे पितृ बनकर हमारी सारी चीजें स्वीकार करते हैं।
इसलिए जब तक आपके परमात्मा आपके पितृ बनकर आपके द्वारा दी गई सभी चीजें स्वीकार करते रहेंगे तब तक आपके जीवन में ना कभी अशांति होगी, ना धन की हानि होगी और ना ही वंश में हानि होगी। बहुत से ऐसे धनवान व्यक्ति होते हैं जिनके पास पैसा तो बहुत है लेकिन वंश चलाने वाला कोई नहीं। क्योंकि उनके पितृ उनसे नाराज है। और अगर पितृ निराश रहेंगे तो वंश चलाने वाला कोई नहीं बचेगा। इसलिए दुनिया में कोई और पूजा हो या ना हो लेकिन अपने पितरों की पूजा जरूर करनी चाहिए।