Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj: वृंदावन में प्रेमानंद महाराज के एकांतित वार्तालाप में आई एक महिला ने पूजा कि महाराज जी हमें कभी किसी की निंदा नहीं करनी चाहिए और न ही सुननी चाहिए, लेकिन यदि कोई हमें अपना समझकर अपना दुख हमारे साथ साझा करना चाहे, तो क्या उसे सुनना उचित होगा?

महाराज जी ने उत्तर दिया कि यदि कोई अपनी बात, अपने दुख हमें मित्रवत बता रहा है, जैसे हम अपनी बात किसी प्रिय व्यक्ति से कहते हैं, तो वह निंदा नहीं होती। लेकिन यदि हम किसी तीसरे व्यक्ति की बुराई करते हैं, जैसे कि “वह बहुत गलत आदमी है, ऐसा है, वैसा है”—तो वह निंदा कहलाती है। निंदा सुनने से कुछ हाथ नहीं आता, बल्कि व्यक्ति मूर्खता के कारण पाप रूपी पर्वत को अपने साथ ढोता है। परदोष दर्शन (दूसरे के दोष देखना), परदोष कथन (दूसरे की बुराई करना) और परदोष चिंतन (दूसरे की बुराई के बारे में बार-बार सोचना)—ये तीनों हमारे अंतःकरण को जल्दी ही मलिन कर देते हैं। इसलिए अगर हम अपनी बात मित्रवत तरीके से किसी से कह रहे हैं, तो वह अलग है, लेकिन यदि हम किसी और की बात, खासकर उसकी बुराई, किसी से कह रहे हैं तो वह निंदा और चुगली बन जाती है और वह नहीं करनी चाहिए।

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अगर किसी को अपनी भावनाएं बताने में वह उठाते हैं फायदा?

प्रेमानंद महाराज से एक अन्य महिला ने पूछा कि जब वह किसी को अपनी फीलिंग्स बताती हैं तो लोग उसका फायदा उठाते हैं।

इस पर स्वामी जी ने रहीमदास जी का दोहा उद्धृत किया – “रहीमन मन की व्यथा, मन ही रखिए गोय। सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाट न लेहैं कोय।” – अर्थात अपने मन की पीड़ा को मन में ही रखना चाहिए, क्योंकि लोग उसे सुनकर उपहास करते हैं, उसका मज़ाक उड़ाते हैं और कोई उसका समाधान नहीं करता। इसलिए अपनी भावनाएं किसी इंसान से नहीं, बल्कि भगवान से साझा करनी चाहिए। भगवान ही एकमात्र ऐसे हैं जो हमारी बात को बिना किसी स्वार्थ के सुनते हैं और निवारण भी करते हैं।

स्वामी जी ने समझाया कि इंसानों से अपनी फीलिंग्स कहने पर वे अवसर तलाशते हैं, हमें परेशान कर सकते हैं, हमारा शोषण कर सकते हैं, या मजाक बना सकते हैं। लेकिन यदि हम वही बात भगवान से एकांत में कहें, तो वह हमारे दुखों को दूर करने की क्षमता रखते हैं। हमें एकांत में बैठकर भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए: “नाथ, मेरे भीतर यह परेशानी है, कृपया इसे दूर कर दो।” प्रभु स्वयं संयोग बना देंगे और हमारी परेशानी को हर लेंगे, क्योंकि उनके सिवा और कोई उसे दूर नहीं कर सकता।

स्वामी जी ने यह भी बताया कि यदि कोई व्यक्ति नियमित रूप से भगवान का भजन करता है, तो उसे भगवान से कुछ कहने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती। भगवान स्वयं उसकी रक्षा करते हैं, जैसे एक मां अपने बच्चे की करती है। उस स्थिति में व्यक्ति को अपने कष्ट का अनुभव भी नहीं होता, क्योंकि प्रभु का प्रेम और दुलार इतना होता है कि हृदय आनंदित बना रहता है। जब हम संसार से प्रेम करते हैं तो हमें अपनी बात कहनी पड़ती है, और संसार उसका लाभ उठाता है, लेकिन जब हम भगवान से प्रेम करते हैं तो वे बिना कहे ही हमारी हर भावना को समझते हैं।

स्वामी जी ने मीरा बाई के भावों का उदाहरण दिया – “मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई” – इस प्रकार जब भक्ति सच्ची होती है, तो व्यक्ति को किसी और से कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं होती। फिर उन्होंने यह प्रेरणा दी कि आज से ही नाम जप प्रारंभ करें। नाम जप एक ऐसी महाशक्ति है जो जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्रदान करती है। इसलिए हमें डटकर नाम जप करना चाहिए, क्योंकि वही मार्ग है जो हमें सच्चे सुख, शांति और समाधान की ओर ले जाता है।

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