शनि की उलटी चाल से बेहाल ग्रहयोगों ने जगत को बेचैन कर दिया है। जून के तीसरे सप्ताह में जब शनि अपनी टेढ़ी क़दम चाल से मंगल की राशि वृश्चिक में पहुंचेगा, संसार को बेचैन करेगा। पर उससे कई हफ़्ते पहले ही उत्तर कोरिया द्वारा परमाणु बम के हमले की धमकी ने आमजन की परेशानी पर जहां बल डाल दिया है। वहीं भारत तो पहले से ही अपने पड़ोसी के घर से अनधिकृत रूप से ऐसी गीदड़भभकियों को सुनने का अादि हो चुका है।
परमाणु का निर्माण परमाणविक तत्वों प्रोटान, न्यूट्रान तथा इलेक्ट्रान से होता है। प्रोटान व न्यूट्रान परमाणु के नाभिक में पाए जाते हैं और इलेक्ट्रान इस नाभिक के चारों ओर वर्तुलाकार गतिशील रहता है। परमाणु बम में विस्फोटित होने वाला पदार्थ यूरेनियम या प्लुटोनियम के परमाणु विखंडन यानि Fission से विस्फोटक शाक्ति प्राप्त होती है। परमाणु के केंद्रक अर्थात् nucleus में न्यूट्रॉन (neutron) से प्रहार किया जाता है। इस नाभिकीय विखंडन यानि nuclear fission से परमाणु के नाभिक के अभ्यंतर से मुक्त होने वाले न्यूट्रान अन्य मुक्त परमाणुओं पर प्रहार करते हैं, फलस्वरूप उस विखंडन से भीषण प्रचंडता के साथ परमाणु का विस्फोट होता है। विस्फोटी यूरेनियम के अन्य तत्वों में परिवर्तन और उससे निकलने वाली रेडियो सक्रीय किरणें जीवित कोशिकाओं को नष्ट कर देती हैं, जो भयंकर बर्बादी का सबब बनती हैं।
भारतीय मनीषियों ने पाया कि यदि प्राकृतिक रूप से अंडाकार पत्थर पर दुग्ध मिश्रित जल की अनवरत धारा प्रवाहित हो, और वहां गाय के घृत से मृदु ऊष्मा प्रज्ज्वलित की जाए तो वहां विखंडन से उत्पन्न रेडियो सक्रियता की तीव्रता आश्चर्यजनक रूप से कम हो जाती है। ये मात्र संयोग नहीं है कि परमाणु रिएक्टर अंडाकार यानि शिवलिंग के आकार के होते हैं। अवश्य ही ये हमारी प्राचीन समृद्ध तकनीकी ज्ञान की चुग़ली करते नज़र आते हैं। शायद अतीत में इसी तरह के किसी परमाणु बम के हमले की आशंका के मद्देनज़र शिवलिंग पर दुग्ध मिश्रित जल से अभिषेक और गाय के घृत के दीप के प्रज्जवलन का चलन आरम्भ हुआ होगा।
भारतीय आध्यात्म में स्वरों के द्वारा रेडियो सक्रियता पर क़ाबू करने की कई अन्य तकनीक विद्यमान है। गायत्री मंत्र का सस्वर उच्चारण भी विनाशकारी रेडियो सक्रियता में आश्चर्यजनक रूप से कमी करता है। गायत्री के पूर्व की तीनों व्याहृतियों का स्वर नकारात्मक तरंगों और विस्फोटक ऊर्जा को क़ाबू करने की क्षमता से ओतप्रोत हैं। भू पृथ्वी, पार्थिव जगत और अग्नि की नकारात्मक ऊष्मा को नियंत्रित करता है। भुव: अंतरिक्ष और वायु मार्ग से उतरने वाली आपदा को न्यूनतम करके प्राणात्मक जगत को सुरक्षित रखने में विशिष्ट भूमिका का निर्वहन करता है। स्व: विकिरण और सूर्य की पराबैगनी किरणों पर क़ाबू रखकर मनोमय संसार, अचेतन मन और सुप्त शरीर की रक्षा करता है गायत्री से प्रस्फुटित स्वर लहरियाँ किसी वैज्ञानिक छतरी का कार्य करती है।
बिलकुल एक समान तो नहीं पर लगभग इसी प्रकार का गुणधर्म महामृत्युंजय मंत्र के उच्चारण से उपजे नाद में भी पाया जाता है। महामृत्युंजय के शब्द विन्यास अपनी आपदा रोधी प्रवृत्ति और प्रकृति के लिए भी जाने जाते हैं। इसके 33 अक्षर, 33 प्रकार की दैविक ऊर्जा के घोतक हैं, जिनमे 12 आदित्यठ, 11 रुद्र, 8 वसु, 1 प्रजापति तथा 1 षटकार हैं।
गायत्री मंत्र के स्वर जहां कवच का कार्य करते प्रतीत होते हैं, वहीं महामृत्युंजय मंत्र नकारात्मक रेडियो सक्रियता में कमी कर उससे उपजी हानि का उपचार करते नज़र आते हैं। दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने युद्ध काल में असुरों की सहायता के लिए रेडियो सक्रिय तरंगों से बचाव हेतु गायत्री और महामृत्युंजय को विशिष्ट रूप से मिश्रित कर महाराष्ट्र के शिरडी के निकट कोपरगाँव के बेट नामक स्थान पर स्थित अपनी प्रयोगशाला में मृत संजीवनी टेक्नॉलजी को प्रकट किया। मृत संजीवनी वह विधा है, जिससे प्रकट शब्द लहरियों ने उस दौर के युद्ध काल में वायुमंडल में बिखर कर जहां नाभिकीय विखंडन में न्यूट्रॉन के प्रहार की धार को भोथरा किया वहीं विखंडन से उपजी रेडियो सक्रियता तरंगों की मारक क्षमता को नष्ट या न्यूनतम करने में तब बेहद कारगर सिद्ध हुई थी। मृत संजीवनी विधा युद्ध से हुए विनाश के निदान और चिकित्सा में भी चमत्कारिक रूप से कारगर रही। इसने जहां विस्फोट से जीवन को हमेशा के लिए नष्ट होने से बचाया, वहीं, रेडियो सक्रियता के विकिरण से उपजी विकृति को भी रोका। जिससे संतती को शारीरिक और मानसिक रूप से अपंग होने से नियंत्रित किया जा सका।
अष्टाध्यायी के मंत्र जिनका रुद्राभिषेक में प्रयोग किया जाता है, और बोलचाल में रुद्री कहा जाता है, के आठों खण्ड स्वयं में परमाणु विकिरण को सीमित करके क्षति को न्यूनतम करने की अपार क्षमता की तकनीक समेटे हुए हैं। वहीं मार्कण्डेय पुराण में वर्णित ऊर्जा परिचालन के सात सौ मंत्र हमले की सूरत में शत्रु के शस्त्रों को इस्तेमाल होने से पहले या होते ही, उसके क्षेत्र में ध्वस्त करने की क्षमता रखता है। बगलामुखी का ह्ल्रिंग बीज fission के समय आक्रामक न्यूट्रान के घर्षण को बेअसर करने की तकनीक से सराबोर है। साथ साथ स्वस्तिवचन और शांति पाठ भी परमाणु युद्ध काल रेडियो सक्रिय विकिरण की मारक क्षमता को धारहीन कर अतिशीघ्र शांति बहाली में अपनी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करेंगे। अतः यदि कभी भी परमाणु हमला हुआ तो यक़ीनन भारत वर्ष को सबसे कम क्षति होगी।

