हिंदू धर्म में ज्योतिषशास्त्र का विशेष महत्व है। इस धर्म को मानने वाले तमाम लोग अपने कई सारे काम ज्योतिष के आधार पर करना पसंद करते हैं। ऐसी मान्यता है कि किसी नए काम की शुरुआत और कोई महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले अपनी कुंडली दिखा लेनी चाहिए। ऐसा करने से आपको उस काम में सफलता मिलती है और आपका निर्णय सही साबित होता है। इसके अलावा, कहीं जाने से पहले और व्यवसाय संबंधी कार्यों में भी ज्योतिष को विशेष प्राथमिकता दी जाती है। इन सबके बीच विवाह को लेकर ज्योतिष और कुंडली मिलान का स्थान तो सर्वोपरि है। क्या आप जानते हैं कि कुंडली में कुल 12 भाव होते हैं और इनमें से ही एक भाव आपकी शादी को निर्धारित करता है।

कुंडली के समस्त 12 भाव अलग-अलग चीजों के कारक होते हैं। ये सभी भाव व्यक्ति के जीवन के तमाम पहलुओं को निर्धारित करते हैं। कुंडली का सप्तम भाव व्यक्ति के विवाह, जीवन साथी, ससुराल और विदेश यात्रा जैसी चीजों से जुड़ा हुआ है। यानी कुंडली का सातवां भाव यह यह तय करता है कि आपको कैसी पत्नी मिलेगी। एस्ट्रोलॉजर डॉक्टर दीक्षा राठी बताती हैं कि यदि व्यक्ति की कुंडली कुंभ लग्न की हो और सूर्य पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो विवाह अमीर घराने में होता है। सुंदर जीवन साथी पाने के लिए कुंडली के सप्तम भाव में वृष राशि का होना अनिवार्य है। इसके साथ ही शुक्र और चंद्र सम राशियों में होने चाहिए।

व्यक्ति की शादी 18, 19 या 20 की उम्र में तब होने की संभावना रहती है, जब कुंडली के सप्तम भाव पर शुक्र ग्रह की दृष्टि हो और शुक्र अपनी उच्च राशि में या फिर स्वराशि में हो। इसके अलावा यदि कुंडली में सूर्य सप्तम भाव में हो और सप्तम भाव का स्वामी शुक्र के साथ हो तो व्यक्ति की शादी कम आयु में होने की संभावना रहती है। व्यक्ति का विवाह उसके ननिहाल में होने की संभावना उस वक्त होती है, जब सप्तम भाव पर सप्तम भाव के स्वामी, शुक्र पर चतुर्थ भाव के स्वामी और चंद्र का प्रभाव हो।