Holika Dahan 2020: हर साल फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है। जिसके लिए प्रदोष काल का समय सबसे उत्तम माना गया है। लेकिन कई बार इस समय भद्रा होने के कारण होलिका जलाने के समय में अंतर आ जाता है। लेकिन इस बार भद्रा काल दोपहर में ही खत्म हो रहा है जिस कारण शाम को सूर्यास्त के बाद आप होलिका जला सकते हैं। यहां आप जानेंगे होलिका दहन का सबसे शुभ मुहूर्त, विधि और महत्व…
होलिका दहन मुहूर्त (Holika Dahan 2020 Time):
होलिका दहन मुहूर्त – 06:26 पी एम से 08:52 पी एम
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 9 मार्च, 03:03 ए एम बजे से
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 9 मार्च, 03:03 ए एम बजे
भद्रा पूँछ: 09:37 ए एम से 10:38 ए एम
भद्रा मुख: 10:38 ए एम से 12:19 पी एम
होलिका दहन विधि (Holika Dahan Vidhi):
– होलिका दहन का पूजन प्रदोषकाल में शास्त्रसम्मत है तभी पूजन करना चाहिए। प्राय: महिलाएं पूजन कर ही भोजन ग्रहण करती हैं।
– पूजा सामग्री: रोली, कच्चा सूत, पुष्प, हल्दी की गांठें, खड़ी मूंग, बताशे, मिष्ठान्न, नारियल, बड़बुले आदि।
– विधि: यथाशक्ति संकल्प लेकर गोत्र-नामादि का उच्चारण कर पूजा करें। सबसे पहले भगवान गणेश व गौरी का पूजन करें। ‘ॐ होलिकायै नम:’ मंत्र से होली का पूजन करें। फिर ‘ॐ प्रहलादाय नम:’ से प्रहलाद का पूजन करें।
– इसके पश्चात ‘ॐ नृसिंहाय नम:’ से भगवान नृसिंह (भगवान विष्णु के अवतार) का पूजन करें, तत्पश्चात अपनी समस्त मनोकामनाएं कहें। एक कच्चा सूत लेकर होलिका पर चारों तरफ लपेटकर 3 परिक्रमा कर लें आप चाहें तो 7 बार भी कर सकते हैं।
– अंत में लोटे का जल चढ़ाकर ‘ॐ ब्रह्मार्पणमस्तु’ कहें।
होली की कथा और महत्व (Holika Dahan Story):
इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। होलिका दहन के दिन एक पवित्र अग्नि जलाई जाती है जिसमें सभी तरह की बुराई, अहंकार और नकारात्मकता को जलाया जाता है। अगले दिन अपनों को रंग लगाकर इस पर्व की शुभकामनाएं दी जाती है। लेकिन कहां से शुरू हुआ होलिका दहन की परंपरा जानिए इस कथा से…
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पुराणों के अनुसार दानवराज हिरण्यकश्यप ने जब देखा कि उसका पुत्र प्रह्लाद सिवाय विष्णु भगवान के किसी अन्य को नहीं भजता, तो वह क्रोधित हो उठा और अंततः उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए, क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि नुकसान नहीं पहुंचा सकती। किन्तु प्रह्लाद की भक्ति के कारण, होलिका जलकर भस्म हो गई और भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। इसी घटना की याद में इस दिन होलिका दहन करने का विधान है।