वैसे तो हर पूर्णिमा पर व्रत रखने का प्रावधान है। लेकिन फाल्गुन मास की पूर्णिमा का विशेष महत्व माना गया है। क्योंकि इस दिन भगवान के प्रति आस्था की जीत हुई थी। इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता अनुसार इस दिन विष्णु भक्त प्रह्लाद को जलाने वाली होलिका खुद ही अग्नि में जल गई थी। जिस कारण इस दिन होलिका दहन किया जाता है। जानिए फाल्गुन पूर्णिमा की व्रत विधि और कथा…
फाल्गुन पूर्णिमा की व्रत विधि: मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से सभी प्रकार के दुखों का अंत हो जाता है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। व्रती को पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक व्रत रखना चाहिए। फाल्गुनी पूर्णिमा पर कामवासना का दाह किया जाता है ताकि निष्काम प्रेम के भाव से प्रेम का रंगीला पर्व होली मनाया जा सके।
होलिका दहन पूजा विधि (Holika Dahan Puja Vidhi):
इस दिन होलिका दहन पूजन किया जाता है। भगवान विष्णु के चौथे अवतार भगवान नरसिंह की पूजा की जाती है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर उत्तर दिशा की तरफ मुख करके होलिका का पूजन करना चाहिए। होलिका दहन से पहले अपने आसपास पानी की बूंदे छिड़कें। इसके बाद गाय के गोबर से होलिका का निर्माण करें। पूजा में माला, रोली, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल, पांच प्रकार के अनाज में गेहूं की बालियां और साथ में एक लोटा अवश्य रखें। इसके बाद भगवान नरसिंह की प्रार्थना करें और होलिका पर रोली, अक्षत, फूल, बताशे अर्पित करें और मौली को होलिका के चारों ओर लपेटें। इसके उपरान्त होलिका पर प्रह्लाद का नाम लेते हुए पुष्प अर्पित करें। भगवान नरसिंह का नाम लेते हुए 5 अनाज चढ़ाएं। इस विधि से पूजा संपन्न करने के बाद होलिका दहन करें और उसकी परिक्रमा करना ना भूलें। फिर होलिका की अग्नि में गुलाल डालें और घर के बुजुर्गों के पैरों पर गुलाल लगाकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
फाल्गुन पूर्णिमा व्रत कथा (Holika Dahan/Falgun Purnima Vrat Katha):
फागुन पूर्णिमा के व्रत की वैसे तो अनेक कथाएं हैं लेकिन नारद पुराण में जो कथा दी गई है वह असुर राज हरिण्यकश्यपु की बहन राक्षसी होलिका के दहन की कथा है जो भगवान विष्णु के भक्त व हरिण्यकश्यपु के पुत्र प्रह्लाद को जलाने के लिये अग्नि स्नान करने बैठी थी लेकिन प्रभु की कृपा से होलिका स्वयं ही अग्नि में भस्म हो जाती है। इस प्रकार मान्यता है कि इस दिन लकड़ियों, उपलों आदि को इकट्ठा कर होलिका का निर्माण करना चाहिये व मंत्रोच्चार के साथ शुभ मुहूर्त में विधिपूर्वक होलिका दहन करना चाहिये। जब होलिका की अग्नि तेज होने लगे तो उसकी परिक्रमा करते हुए खुशी का उत्सव मनाना चाहिये और होलिका दहन के साथ भगवान विष्णु व भक्त प्रह्लाद का स्मरण करना चाहिये। असल में होलिका अहंकार व पापकर्मों की प्रतीक भी है इसलिये होलिका में अपने अंहकार व पापकर्मों की आहुति देकर अपने मन को भक्त प्रह्लाद की तरह भगवान के प्रति समर्पित करना चाहिये।
होलिका दहन मुहूर्त (Holika Dahan Time):
फाल्गुन पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 09 मार्च दिन सोमवार को प्रात:काल 03:03 बजे हो रहा है और समापन रात 11:17 बजे होगा। होलिका दहन के लिए मुहूर्त शाम के समय 06:26 बजे से रात 08:52 बजे तक है।
