रंग वाली होली को धुलंडी के नाम से जाना जाता है। होली असल में होलिका दहन का उत्सव है जिसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व भगवान के प्रति आस्था को मजबूत करने की प्रेरणा देता है। क्योंकि इस दिन भगवान ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी। प्रह्लाद को आग में जलाने वाली होलिका इस दिन खुद जलकर भस्म हो गई थी। इसलिए इस पर्व वाले दिन विधि विधान से होलिका दहन किया जाता है। जानते हैं होलिका दहन की पूजा विधि…
होलिका दहन पूजा विधि (Holika Dahan Puja Vidhi): रंग वाली होली से एक दिन पहले होलिका दहन करने की परंपरा है। जिसकी पूजा के लिए एक लोटा गंगाजल लें अगर ये पास में नहीं है तो स्वच्छ जल, रोली, माला, रंगीन अक्षत, धूप, फूल, गुड़, कच्चे सूत का धागा, साबूत हल्दी, मूंग, बताशे, नारियल एवं नई फसल के अनाज यानी गेंहू की बालियां और पके चने आदि सामग्रियों को इकट्ठा कर लें। इसके बाद होलिका के पास गोबर से बनी ढाल भी रखी जाती है। होलिका दहन के लिए चार मालाएं अलग से रख ली जाती हैं। ये मालाएं मौली, फूल, गुलाल, ढाल और खिलौनों से बनाई जाती हैं।
इसमें एक माला पितरों के नाम की, दूसरी श्री हनुमान जी के नाम की, तीसरी शीतला माता और चौथी घर परिवार के नाम की रखी जाती है। इसके बाद होली की परिक्रमा करते हुए कच्चे सूत के धागे को लपेटा जाता है। ध्यान रखें कि होलिका की परिक्रमा तीन या सात बार करनी चाहिए। इसके बाद शुद्ध जल समेत एक एक सामग्री को होलिका को अर्पित कर देना चाहिए। फिर पंचोपचार विधि से होलिका की पूजा कर उसे जल से अर्घ्य देना चाहिए। होलिका की अग्नि जलाने के बाद उसमें कच्चे आम, नारियल, सतनाज (गेहूं, उड़द, मूंग, चना, चावल जौ और मसूर), चीनी के खिलौने, नई फसल इत्यादि की आहुति दी जाती है।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त (Holika Dahan 2020 Time):
होलिका दहन सोमवार, मार्च 9, 2020 को
होलिका दहन मुहूर्त – शाम 06:26 से 08:52 तक
अवधि – 02 घण्टे 26 मिनट्स
रंग वाली होली मंगलवार, मार्च 10, 2020 को
भद्रा पूँछ – सुबह 09:37 से 10:38 तक
भद्रा मुख – सुबह 10:38 से दोपहर 12:19 तक
होलिका दहन प्रदोष के दौरान उदय व्यापिनी पूर्णिमा के साथ
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – मार्च 09, 2020 को सुबह 03:03 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त – मार्च 09, 2020 को सुबह 11:17 बजे

Highlights
हालिका दहन से पूर्व होलिका की पूजा की जाती है। होलिका के पास पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके बैठें। अब सबसे पहले गणेश और गौरी जी की पूजा करें। फिर 'ओम होलिकायै नम:' से होलिका का, 'ओम प्रह्लादाय नम:' से भक्त प्रह्लाद का और 'ओम नृसिंहाय नम:' से भगवान नृसिंह की पूजा करें। इसके बाद बड़गुल्ले की 4 मालाएं लें, एक पितरों के नाम, एक हनुमान जी के लिए, एक शीतला माता के लिए और एक अपने परिवार की होलिका को समर्पित करें।
रंगवाली होली को राधा-कृष्ण के पावन प्रेम की याद में भी मनाया जाता है। कथानक के अनुसार एक बार बाल-गोपाल ने माता यशोदा से पूछा कि वे स्वयं राधा की तरह गोरे क्यों नहीं हैं। यशोदा ने मज़ाक़ में उनसे कहा कि राधा के चेहरे पर रंग मलने से राधाजी का रंग भी कन्हैया की ही तरह हो जाएगा। इसके बाद कान्हा ने राधा और गोपियों के साथ रंगों से होली खेली और तब से यह पर्व रंगों के त्योहार के रूप में मनाया जा रहा है।
प्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटक अलबरूनी ने भी अपने ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में होली के उत्सव का वर्णन किया है। यही नहीं भारत के भी अनेक मुस्लिम कवियों ने अपनी रचनाओं में इस बात का उल्लेख किया है कि होलिकोत्सव केवल हिंदू ही नहीं 'मुसलमान' भी मनाते हैं।
इतिहासकारों का मानना है कि ये पर्व आर्यों में भी प्रचलित था, लेकिन अधिकतर यह पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था। अनेक पुरातन धार्मिक पुस्तकों में इस त्योहार के बारे में लिखा हुआ है। इसमें खास तौर पर 'जैमिनी' के पूर्व मीमांसा-सूत्र और कथा गार्ह्य-सूत्र शामिल हैं। नारद पुराण और भविष्य पुराण जैसे पुराणों की प्राचीन हस्तलिपियों और ग्रंथों में भी इस पर्व का उल्लेख मिलता है।
पहले होली का नाम ' होलिका' या 'होलाका' था। साथ ही होली को आज भी 'फगुआ', 'धुलेंडी', 'दोल' के नाम से जाना जाता है। वसंत के खास पर्व में इसकी गिनती होती है। यह भाईचारे का भी त्योहार माना जाता है।
होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसी दिन से नववर्ष की शुरूआत भी हो जाती है। इसलिए होली पर्व नवसंवत और नववर्ष के आरंभ का प्रतीक है।
होली के त्योहार की शुरुआत फाल्गुन पूर्णिमा के दिन से हो जाती है। इस दिन होलिका दहन किया जाता है और फिर अगले दिन यानी चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को रंग वाली होली खेली जाती है। हिंदी के नये संवत् की शुरुआत इस दिन से हो जाती है। कलर वाली होली के एक दिन पहले शाम के समय होलिका जलाई जाती है। कहा जाता है कि होलिका दहन की पवित्र अग्नि में व्यक्ति को अपनी बुरी आदतों की आहुति दे देनी चाहिए और एक नई शुरुआत करनी चाहिए। इसके अगले दिन सुबह से लेकर दोपहर तक रंग वाली होली खेली जाती है। लोग घर में तरह तरह के पकवान बनाते हैं। रंग खेलने के बाद स्नान कर शाम के समय एक दूसरे के घर जाकर होली की बधाई दी जाती है।
अहकूटा भयत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै:
अतस्तां पूजयिष्यामि भूति भूति प्रदायिनीम।
होली के दिन ही मिथिलांचल में सप्ताडोरा की पूजा भी होती है। मां भगवती व कुलदेवता को सिंदूर आर्पण किया जाएगा। साथ ही 56 भोग लगाया जायेगा।
हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार होलिका दहन पूर्णमासी तिथि में प्रदोष काल के दौरान करना चाहिए। भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि, होलिका दहन के लिये उत्तम मानी जाती है। यदि ऐसा योग नहीं बैठ पा रहा हो तब भद्रा समाप्त होने पर होलिका दहन किया जा सकता है। यदि भद्रा मध्य रात्रि तक हो तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूंछ के दौरान होलिका दहन करने का विधान है। लेकिन भद्रा मुख में किसी भी सूरत में होलिका दहन नहीं किया जाता। लेकिन इस बार होलिका दहन के मुहूर्त के समय भद्रा का साया नहीं रहेगा।
फाल्गुन पूर्णिमा तिथि को ही हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने भगवाव विष्णु के भक्त प्रह्लाद को आग में जलाकर मारने का प्रयास किया था, लेकिन वह सफल नहीं हो पाई। भगवान श्रीहरि विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गए और होलिका जलकर मर गई।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सालों पहले पृथ्वी पर एक अत्याचारी राजा हिरण्यकश्यपु राज करता था. उसने अपनी प्रजा को यह आदेश दिया कि कोई भी व्यक्ति ईश्वर की वंदना न करे, बल्कि उसे ही अपना आराध्य माने. लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद ईश्वर का परम भक्त था. उसने अपने पिता की आज्ञा की अवहेलना कर अपनी ईश-भक्ति जारी रखी. ऐसे में हिरण्यकश्यपु ने अपने पुत्र को दंड देने की ठान ली. उसने अपनी बहन होलिका की गोद में प्रह्लाद को बिठा दिया और उन दोनों को अग्नि के हवाले कर दिया. दरअसल, होलिका को ईश्वर से यह वरदान मिला था कि उसे अग्नि कभी नहीं जला पाएगी. लेकिन दुराचारी का साथ देने के कारण होलिका भस्म हो गई और सदाचारी प्रह्लाद बच निकले. तभी से बुराइयों को जलाने के लिए होलिका दहन किया जाने लगा.
होलिका दहन से पहले विधि विधान के साथ होलिका की पूजा करें। इस दौरान होलिका के सामने पूर्व या उतर दिशा की ओर मुख करके पूजा करने का विधान है। पहले होलिका को आचमन से जल लेकर सांकेतिक रूप से स्नान के लिए जल अर्पण करें। इसके पश्चात कच्चे सूत को होलिका के चारों और तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटना है। सूत के माध्यम से उन्हें वस्त्र अर्पण किये जाते हैं। फिर रोली, अक्षत, फूल, फूल माला, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें। पूजन के बाद लोटे में जल लेकर उसमें पुष्प, अक्षत, सुगन्ध मिला कर अघ् र्य दें। इस दौरान नई फसल के कुछ अंश जैसे पके चने और गेंहूं, जौं की बालियां भी होलिका को अर्पण करने का विधान है।
अब होलिका पूजा के बाद जल से अर्घ्य दें। इसके बाद होलिका दहन मुहूर्त के अनुसार होलिका में अग्नि प्रज्वलित कर दें। होलिका के आग में गेंहू की बालियों को सेंक लें। बाद में उनको खा लें, इससे आप निरोग रहेंगे।
फाल्गुन पूर्णिमा तिथि को ही हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने भगवाव विष्णु के भक्त प्रह्लाद को आग में जलाकर मारने का प्रयास किया था, लेकिन वह सफल नहीं हो पाई। भगवान श्रीहरि विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गए और होलिका जलकर मर गई।
09 मार्च दिन सोमवार की रात होलिका दहन करने के बाद उसके अगले दिन 10 मार्च मंगलवार को रंगवाली होली या धुलण्डी खेली जाएगी। रंगवाली होली के दिन लोग एक दूसरे को रंग-गुलाल लगाएं, साथ ही शुभकामनाएं देंगे।
होलिका दहन सोमवार, मार्च 9, 2020 को
होलिका दहन मुहूर्त - शाम 06:26 से 08:52 तक
होली के दिन से शुरु करके बजरंग बाण का 41 दिन तक नियमित पाठ करनें से हनुमानजी की कृपा से हर मनोकामना पूर्ण होने का मार्ग प्रशस्त होता है।
आज होलिका दहन है (Holika Dahan)। जिसे छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है। इसी के साथ वसन्त पूर्णिमा (Vasant Purnima), लक्ष्मी जयंती (Lakshmi Jayanti), चैतन्य महाप्रभु जयन्ती, अट्टुकल पोंगल (Attukal Pongala) और फाल्गुन पूर्णिमा (Falgun Purnima) व्रत भी आज रखा जायेगा। भद्राकाल दोपहर में खत्म हो जा रहा है। जिस कारण होलिका दहन प्रदोष काल में किया जा सकेगा। जानिए होली का पूरा पंचांग…
धन की कमी से बचने के लिये होली की रात चंद्रमा के उदय होने पर अपने घर की छत पर या खुली जगह पर , जहाँ से चाँद नजर आए, वहाँ खड़े हो जाएँ, फिर चंद्रमा का ध्यान-स्मरण-दर्शन करते हुए चाँदी की प्लेट में सूखे छुहारे तथा कुछ मखाने रखकर शुद्ध घी के दीपक के साथ धूप एवं अगरबत्ती अर्पित करें तथा कच्चे दूध से चंद्रमा को अर्घ्य दें। अर्घ्य के बाद सफेद मिठाई तथा केसर मिश्रित साबूदाने की खीर अर्पित करें। चंद्रमा से समृद्धि प्रदान करने का निवेदन करें। बाद में प्रसाद और मखानों को बच्चों में बाँट दें। फिर लगातार आने वाली प्रत्येक पूर्णिमा की रात चंद्रमा को दूध का अर्घ्य दें। कुछ ही दिनों में आप महसूस करेंगे कि आर्थिक संकट दूर होकर समृद्धि निरंतर बढ़ रही है।
भद्रा के साए में होलिका दहन करना शुभ नहीं माना जाता है। लेकिन इस बार पर आप बिना किसी टेंशन के यह त्योहार मनाइए, क्योंकि इस बार होली पर भद्रा दोपहर से पहले ही खत्म हो जा रही है। होलिका दहन का शुभ समय इस बार शाम को 6 बजकर 32 मिनट से 6 बजकर 50 मिनट तक माना जा रहा है। इसी दौरान सर्वार्थ सिद्धि योग भी लगा हुआ है। इस समय में होलिका पूजन करने से आपके घर में साल भर समृद्धि बनी रहेगी।
होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। होलिका दहन का ये त्यौहार भगवान के प्रति हमारी आस्था को मज़बूत बनाने के लिए प्रेरित करता है क्योंकि इसी दिन भगवान विष्णु ने अपने परम भक्त प्रह्लाद को बचाया था और उन्हें छल से मारने का जतन करने वाली होलिका को सबक सिखाया था। उसी समय से फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन की परंपरा की शुरुआत हुई। कई जगहों पर इस दिन को छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है।
होलिका दहन के बाद उसकी राख को घर लाया जाता है और उसे पवित्र मानकर मंदिर में भी रखे जाने की सलाह दी जाती है। इसके बाद होली वाले दिन इस राख को सुबह-सुबह घर में चारों तरफ छिड़कने से घर से नकारत्मक ऊर्जा दूर भागती है और घर में खुशियों का वास होता है।
रंगों का त्योहार होली इस साल 10 मार्च को मनाया जायेगा और 9 मार्च को होलिका दहन (Holika Dahan) किया जायेगा। रंगवाली होनी के दिन लोग एक दूसरे को रंग लगाकर हैप्पी होली (Happy Holi) विश करते हैं। रंगों का हमारे जीवन में भी काफी महत्व होता है। हर किसी का कोई न कोई रंग पसंदीदा होता है। लेकिन ज्योतिष अनुसार हर किसी को हर रंग सूट करे ऐसा नहीं है। हर राशि का अपना शुभ रंग होता है। जिसका इस्तेमाल करने से शुभत्ता आती है। जानिए राशि अनुसार इस होली किस रंग का प्रयोग आपके लिए रहेगा शुभ…Holi Color According To Rashi
रंगवाली होली के दिन लोग एक दूसरे को रंग लगाकर इस पर्व की खुशियां मनाते हैं। दोपहर तक रंग खेलने का ये सिलसिला जारी रहता है। इसके बाद स्नान कर लोग अपने घर में बने व्यंजनों का आनंद लेते हैं। फिर शाम के समय नए कपड़े पहनकर एक दूसरे के घर जाकर गुलाल लगाकर होली की शुभकामनाएं देते हैं।
भद्रा पूंछ - सुबह 09:37 बजे से सुबह 10:38 बजे तक
भद्रा मुख - सुबह 10:38 बजे से दोपहर 12:19 बजे तक
होलिका दहन शाम 06:22 से रात्रि 08:49 तक
फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होली का पर्व मनाया जाता है। आज होलिका दहन किया जायेगा। उपाय की दृष्टि से होली का पर्व अत्यधिक व प्रभावी फल देने वाला होता है। होली पर किए गए उपाय शीघ्र फल देते हैं। व्यापार, नौकरी, सुख, समृद्धि, धन संबंधी किसी भी तरह की समस्या के समाधान के लिए होली पर इस तरह के उपाय आप कर सकते हैं…Holi Upay
होली की पूजा से पहले भगवान नरसिंह और प्रह्लाद की पूजा की जाती है। पूजा के बाद अग्नि स्थापना की जाती है यानी होली जलाई जाती है। उस अग्नि में अपने-अपने घर से होलिका के रूप में उपला, लकड़ी या कोई भी लकड़ी का बना पुराना सामान जलाया जाता है। मान्यता है कि किसी घर में बुराई का प्रवेश हो गया हो तो वह भी इसके साथ जल जाए।
होलिका दहन की पूजा विधि: होलिका दहन के शुभ मुहूर्त से पहले पूजन सामग्री के अलावा चार मालाएं अलग से रख लें. इनमें से एक माला पितरों की, दूसरी हनुमानजी की, तीसरी शीतला माता और चौथी घर परिवार के नाम की होती है. अब दहन से पूर्व श्रद्धापूर्वक होली के चारों ओर परिक्रमा करते हुए सूत के धागे को लपेटते हुए चलें. परिक्रमा तीन या सात बार करें. अब एक-एक कर सारी पूजन सामग्री होलिका में अर्पित करें. अब जल से अर्घ्य दें. अब घर के सदस्यों को तिलक लगाएं. इसके बाद होलिका में अग्लि लगाएं. मान्यता है कि होलिका दहन के बाद जली हुई राख को घर लाना शुभ माना जाता है. अगले दिन सुबह-सवेरे उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होकर पितरों का तर्पण करें. घर के देवी-देवताओं को अबीर-गुलाल अर्पित करें. अब घर के बड़े सदस्यों को रंग लाकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए. इसके बाद घर के सभी सदस्यों के साथ आनंदपूर्वक होली खेलें.
होली हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है और इसका धार्मिक महत्व भी बहुत ज्यादा है. होली से एक दिन पहले किए जाने वाले होलिका दहन की महत्ता भी सर्वाधिक है. होलिका दहन की अग्नि को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है. होलिका दहन की राख को लोग अपने शरीर और माथे पर लगाते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से कोई बुरा साया आसपास भी नहीं फटकता है. होलिका दहन इस बात का भी प्रतीक है कि अगर मजबूत इच्छाशक्ति हो तो कोई बुराई आपको छू भी नहीं सकती. जैसे भक्त प्रह्लाद अपनी भक्ति और इच्छाशक्ति की वजह से अपने पिता की बुरी मंशा से हर बार बच निकले. होलिका दहन बताता है कि बुराई कितनी भी ताकतवर क्यों न हो, वो अच्छाई के सामने टिक नहीं सकती और उसे घुटने टेकने ही पड़ते हैं.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सालों पहले पृथ्वी पर एक अत्याचारी राजा हिरण्यकश्यपु राज करता था. उसने अपनी प्रजा को यह आदेश दिया कि कोई भी व्यक्ति ईश्वर की वंदना न करे, बल्कि उसे ही अपना आराध्य माने. लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद ईश्वर का परम भक्त था. उसने अपने पिता की आज्ञा की अवहेलना कर अपनी ईश-भक्ति जारी रखी. ऐसे में हिरण्यकश्यपु ने अपने पुत्र को दंड देने की ठान ली. उसने अपनी बहन होलिका की गोद में प्रह्लाद को बिठा दिया और उन दोनों को अग्नि के हवाले कर दिया. दरअसल, होलिका को ईश्वर से यह वरदान मिला था कि उसे अग्नि कभी नहीं जला पाएगी. लेकिन दुराचारी का साथ देने के कारण होलिका भस्म हो गई और सदाचारी प्रह्लाद बच निकले. तभी से बुराइयों को जलाने के लिए होलिका दहन किया जाने लगा.
स्वराशि स्थित बृहस्पति की दृष्टि चंद्रमा पर रहेगी। जिससे गजकेसरी योग का प्रभाव रहेगा। तिथि-नक्षत्र और ग्रहों की विशेष स्थिति में होलिका दहन पर रोग, शोक और दोष का नाश तो होगा ही, शत्रुओं पर भी विजय मिलेगी।
इस वर्ष होलिका दहन 09 मार्च दिन सोमवार की रात्रि में होगी क्योंकि हिन्दू कैलेंडर के अनुसार इस दिन फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि लग रही है। 09 मार्च दिन सोमवार को फाल्गुन पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ सुबह 03:03 बजे हो रहा है, जिसका समापन उसी रात 11:17 बजे होगा।
होलिका दहने के दिन लोग लकड़ियो तथा उपलो की होलिका बनाकर उसे जलाते हैं और ईश्वर से अपनी इच्छापूर्ति को लेकर प्रर्थना करते हैं। यह दिन हमें इस बात का विश्वास दिलाता है कि यदि हम सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति करेंगे तो वह हमारी प्रार्थनाओं को अवश्य सुनेंगे और भक्त प्रहलाद की तरह अपने सभी भक्तों कीहो हर तरह के संकटों से रक्षा करेंगे।
होली के त्योहार के बारे में कई प्राचीन जानकारी भी है। प्राचीन विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी में मिले 16वीं शताब्दी के एक चित्र में होली पर्व का उल्लेख मिलता है। इतना ही नहीं, विंध्य पर्वतों के निकट रामगढ़ में मिले ईसा से 300 वर्ष पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता है। यह भी मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने पूतना राक्षसी का वध किया था। इस खुशी में गोपियों ने उनके साथ होली खेली थी।
होलिका दहन के दौरान कच्चे आम, नारियल, भुट्टे, सप्तधान्य, चीनी के बने खिलौने, सांकेतिक रुप से नई फसल का कुछ अंश की आहुति दी जाती है।
होलिका जलने पर वहां दर्शन करने जाने से पहले खुद को स्वच्छ कर लें। इस बार होलिका सोमवार को जलाई जाएगी। इस अवसर पर पूरे स्वच्छता और मन से वहां जाएं और होलिका का दर्शन कर राख से तिलक लगाएं तथा साध में सभी लोगों को भी तिलक लगाएं।
होलिका दहन की राख को लोग अपने शरीर और माथे पर लगाते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से कोई बुरा साया आसपास भी नहीं फटकता है। होलिका दहन इस बात का भी प्रतीक है कि अगर मजबूत इच्छाशक्ति हो तो कोई बुराई आपको छू भी नहीं सकती। जैसे भक्त प्रह्लाद अपनी भक्ति और इच्छाशक्ति की वजह से अपने पिता की बुरी मंशा से हर बार बच निकले। होलिका दहन बताता है कि बुराई कितनी भी ताकतवर क्यों न हो, वो अच्छाई के सामने टिक नहीं सकती और उसे घुटने टेकने ही पड़ते हैं।
ली का त्योहार वैेसे तो सारे देश में धूम धाम से मनाया जाता है। लेकिन मथुरा, वृंदावन और बरसाने की लठ्ठ मार होली पूरी दुनिया में मशहूर है। मान्यता के अनुसार यहां महिलाएं अपने पतियों को होली पर लाठी से मारती हैं और मर्दों को बचना होता है। मथुरा की इस खास होली की तैयारी महीनों से हो जाती है।
09 मार्च दिन सोमवार की रात्रि में होगी क्योंकि हिन्दू कैलेंडर के अनुसार इस दिन फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि लग रही है। 09 मार्च दिन सोमवार को फाल्गुन पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ सुबह 03:03 बजे हो रहा है, जिसका समापन उसी रात 11:17 बजे होगा।