हिंदू धर्म में होने वाले तमाम पूजा-पाठ में हवन का विशेष महत्व है। आपने पूजा समाप्त होने के बाद हवन होते हुए देखा होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पूजा के अंत में ही हवन क्यों किया जाता है। यदि नहीं तो आज हम आपको इस बारे में विस्तार से बताने वाले हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस सृष्टि की सभी वस्तुओं का निर्माण पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से मिलकर हुआ। मानव शरीर भी इसी सृष्टि का एक अहम हिस्सा है। इसलिए मानव भी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश से मिलकर ही बनी हुई है। कहते हैं कि अग्नि इन पांच तत्वों में अपनी खास महत्ता रखती है। बताते हैं कि पृथ्वी, जल, वायु और आकाश को प्रदूषित किया जा सकता है लेकिन अग्नि को नहीं।

आप जानते होंगे कि अग्नि के बिना कोई हवन किया ही नहीं जा सकता है। यानी कि अग्नि हवन करने के लिए जरूरी है। बताते हैं कि अग्नि की इस महत्ता से हमारे ऋषि-मुनि भी अच्छी तरह से परिचीत थे। इसलिए उन्होंने हवन व अन्य कर्मों के जरिए अग्नि की पूजा प्रारंभ की। चूंकि मान्यता के अनुसार मानव शरीर भी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश से मिलकर बना है। ऐसे में अग्नि को छोड़कर इन चार तत्वों की तरह मानव शरीर भी प्रदूषित हो जाती है।

ऐसा कहा जाता है कि मानव शरीर के प्रदूषित होने से उसे विभिन्न तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यदि पृथ्वी तत्व प्रदूषित हो जाए तो मनुष्य के मान-सम्मान में गिरावट आने लगती है। जल तत्व के प्रदूषित होने से अप्राकृतिक काम इच्छा पैदा होने की मान्यता है। कहते हैं कि वायु तत्व के प्रदूषित होने से श्वास प्रणाली पर प्रभाव पड़ता है। वहीं, आकाश तत्व के प्रदूषित होने से श्रवण शक्ति प्रभावित होने की मान्यता है। बताते हैं कि योग और साधना के जरिए अग्नि तत्व को हमेशा अनुकूल रखा जा सकता है।