Hartalika Teej Katha: हरतालिका तीज में माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा- अर्चना की जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार हरतालिका तीज भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। इस बार हरतालिका तीज मंगलवार 30 अगस्त 2022 को मनाई जाएगी। यह व्रत अच्छे पति की कामना से एवं पति की लम्बी उम्र के लिए किया जाता हैं। मान्यता है हरतालिका व्रत कथा खुद भगवान शिव ने ही माता पार्वती को सुनाई थी। जानिए क्या है ये कथा।
हरतालिका तीज शुभ मुहूर्त
ज्योतिष पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि सोमवार 29 अगस्त को दोपहर 03 बजकर 21 मिनट से आरंभ होकर अगले दिन यानी मंगलवार, 30 अगस्त को दोपहर 03 बजकर 32 मिनट तक रहेगी। हरतालिका तीज के दिन सुबह 06 बजकर 04 मिनट से लेकर 8 बजकर 39 मिनट तक। साथ ही शाम प्रदोष समय 06 बजकर 32 मिनट से लेकर रात 08 बजकर 52 मिनट तक पूजा का शुभ मुहूर्त रहेगा।
जानिए क्या है कथा
भोलेनाथ कहते हैं- ‘हे गौरा, पिछले जन्म में तुमने मुझे पाने के लिए कठोर तप और तपस्या की थी थी। तुम बिना कुछ खाए और पानी पीए बिना रहीं। तुम बस हवा और सूखे पत्ते चबाकर रहीं। साथ ही तुमने तपिश वाली गर्मी, ठंड और बारिश भी तुम्हारी तपस्या को भंग नहीं कर सकी। तुम्हारी इस स्थिति को देख तुम्हारे पिता बहुत दुखी थे। उनको दुखी देख नारदमुनि उनके पास आए और कहा कि मैं भगवान विष्णु के भेजने पर यहां आया हूं। वह आपकी कन्या से विवाह करना चाहते हैं।
तुम्हारे पिता ने जब यह बात सुनी तो वो बोले अगर भगवान विष्णु की यह इच्छा है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन जब तुम्हें इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम अत्यंत ही दुखी हो गईं। जब तुम दुखी थी तो तुम्हारी सहेली ने दुखी होने का कारण पूछा, तब तुमने कहा कि मैंने सच्चे मन से भोलेनाथ का वरण किया है। लेकिन मेरे पिता विष्णु जी के साथ करना चाहते हैं। अब मेरे पास मृत्यु के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा है।
इस बात को सुनकर तुम्हारी सखी भी बहुत दुखी हुईं। साथ ही तुम्हारी सखी ने तुम्हें एक सुझाव बताया कि मैं तुमको वन में ले कर चलती हूं, जो साधना स्थल भी है। वहीं तुमने अपनी सखी की बात मान ली। जब तुम घर पर नहीं पहुंची तो तुम्हारे पिता बहुत दुखी हुए। फिर तुम्हें परिवार के लोग खोजने लगे। लेकिन तुम मेरी आराधना में लीन रहीं। साथ ही तुमने एक दिन रेत के शिवलिंग बनाए। तुम्हारी कठोर तपस्या को देखकर मैं तुम्हारे पास पहुंचने पर विवश हो गया और मैंने तुमसे वर मांगने को कहा।
वर मांगते हुए तुमने वर मांगते हुए तुमने कहा, ‘मैं आपको पति के रूप में वरण कर चुकी हूं। यदि आप मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए। तब वर देकर मैं कैलाश पर्वत पर लौट गया। उसी समय राजा हिमाचल और बंधु-बांधवों के साथ तुम्हें ढूंढते हुए उस स्थान पर पहुंचे, जहां तुम तपस्या कर रही थीं। तब तुमने उनके सामने यह शर्त रखी कि मैं घर तब ही जाउंगी जब मेरा विवाह भगवान शिव के साथ कराएंगे। तुम्हारे पिता मान गए और उन्होंने हमारा विवाह करवा दिया। इस तरह सखियों द्वारा उनका हरण कर लेने की वजह से इस व्रत का नाम हरतालिका व्रत पड़ा।
