Hartalika Teej 2020 Vrat Katha, Puja Vidhi, Muhurat, Timings, Process: इस साल हरतालिका तीज 21 अगस्त, शुक्रवार को मनाई जा रही है। यह तीज भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। मान्यता है कि जो सुहागन स्त्री इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं उन्हें अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान प्राप्त होता है। यह व्रत पति की लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन की कामना से किया जाता है। इस दिन भगवान शंकर और देवी पार्वती की पूजा की जाती है।
कहते हैं जो स्त्री निर्जला व्रत करके भगवान शिव और देवी पार्वती को प्रसन्न करती हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। साथ ही कुंवारी कन्या अगर हरितालिका तीज का व्रत करती है तो उन्हें मनचाहे जीवनसाथी का आशीर्वाद प्राप्त होता हैं। आइए जानते हैं हरितालिका तीज की प्राचीन कथा –
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इस कथा को भगवान शंकर ने देवी पार्वती को उनका पूर्व जन्म याद दिलाने के लिए सुनाया था। देवी पार्वती बाल्यावस्था से ही भगवान शंकर को अपना पति मान चुकी थीं। उन्हें पति रूप में पाने के लिए देवी पार्वती ने कठोर तपस्या की। उस कठोर तपस्या के फल से भगवान विष्णु भी देवी पार्वती से प्रसन्न हो गए। उन्होंने देवर्षि नारद जी को अपने विवाह का प्रस्ताव लेकर देवी पार्वती के पिता के पास भेजा।
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देवर्षि नारद देवी पार्वती के पिता के पास आए। उनसे कहा कि भगवान विष्णु आपकी पुत्री की कठोर तपस्या से प्रसन्न हो गए हैं। उनसे विवाह करना चाहते हैं। क्या आपको इस विवाह से कोई आपत्ति है?
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देवर्षि नारदजी से यह प्रस्ताव सुनकर देवी पार्वती के पिता बहुत प्रसन्न हो गए। उन्होंने भगवान विष्णु से पार्वती जी का विवाह करने के लिए तुरंत हां कर दी। जब देवी पार्वती को अपने पिता की इस इच्छा के बारे में पता चला तो वह अत्यंत दुखी हुईं क्योंकि वह पहले ही महादेव को अपना पति मान चुकी थीं।
देवी पार्वती ने अपने मन का यह दुख अपनी एक सहेली से कहा। उनकी सहेली ने उनको यह सुझाव दिया कि तुम यहां से कहीं घनघोर जंगलों में चली जाओ। वहां भगवान शिव की तपस्या करो, उन्हें प्रसन्न करो। साथ ही उनके प्रसन्न होने पर उनसे पत्नी रूप में तुम्हें स्वीकारने का वचन लो।
देवी पार्वती ने ऐसा ही किया। पार्वती जी ने भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हस्त नक्षत्र में रेत का शिवलिंग बनाया। सच्चे मन से तृतीया तिथि पर भगवान शंकर का ध्यान और पूजन किया। पूजा से भगवान शिव प्रसन्न हो गए। उन्होंने देवी पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार किया। देवी पार्वती ने पूरा दिन पूजन करने के बाद रात्रि में जागरण भी किया।
सुबह पारण के समय देवी पार्वती के पिता उनके पास पहुंचे। उनसे घर छोड़कर जंगलों में आ जाने का कारण पूछा। तब देवी पार्वती ने बताया कि मन ही मन महादेव को अपना पति स्वीकार कर चुकी थीं। इसलिए महादेव को अपनी तपस्या से प्रसन्न करने के लिए उन्हें जंगल आना पड़ा। तब से जो भी स्त्री सच्चे मन से भगवान शिव और पार्वती जी का ध्यान कर इस व्रत को करती है। उसे अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान प्राप्त होता है।
Highlights
तीज व्रत को पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ रखना चाहिए। यह सौभाग्य देने वाला और घर में समृद्धि लाने वाला व्रत है। इसको करने से न केवल घर में उन्नति होती है, बल्कि घर में सबकी आयु में भी वृद्धि होती है।
तीज का व्रत करने वाली महिलाओं को अगले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान के बाद मंदिर में जाकर भगवान का दर्शन करना चाहिए। इसके बाद वहां प्रसाद चढ़ाकर आरती करें और पंडित जी को दान करने के बाद घर आकर मीठी चीज खाकर पारण करना चाहिए।
तीज व्रत का पालन करने वाली महिलाओं को हफ्ते भर पहले से ही अपने को फिट रखने की कोशिश करनी चाहिए। इस व्रत में 24 घंटे तक बिना अन्न-जल के रहना पड़ता है। अगर वे अनफिट रहती हैं तो लगातार व्रत से स्वास्थ्य खराब हो सकता है।
हरितालिका तीज व्रत का पारण करने के लिए मीठी चीज खाने की परंपरा रही है। कई जगह व्रती महिलाएं हलुआ खाती है, तो कई अन्य जगह खीर खाने की परंपरा रही है। हालांकि आज कल बनाने के झंझट से मुक्ति के लिए बाजार से जलेबी खरीद कर खाने का चलन बढ़ गया है।
हरितालिका तीज पर तृतीया तिथि में ही पूजन करना चाहिए। तृतीया तिथि में पूजा गोधली और प्रदोष काल में की जाती है। चतुर्थी तिथि में पूजा मान्य नहीं, चतुर्थी में पारण किया जाता है।
हरतालिका तीज का व्रत सुहाग के सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। इस दिन व्रत करने वाली महिलाओं को मन में सिर्फ अच्छे विचार रखने चाहिए और व्रत के एक दिन पहले से ही प्याज लहसुन छोड़ देना चाहिए ताकि इसकी जरा भी अंश पेट में न रहे। फिर साफ मन से संकल्प लेकर व्रत करना चाहिए।
व्रत का पारण अगले दिन सुबह होता है। पूजा के दौरान मां पार्वती को जो सिदूर चढ़ाया जाता है, सुहागन प्रसाद के रूप में उससे अपना मांग भरती हैं।
इस व्रत में भूलकर भी सोना नहीं चाहिए। इश व्रत में सोने की मनाही है। व्रती महिलाओं को रातभर जागकर भगवान शिव का स्मरण करना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार, हिमवान की पुत्री माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए बालकाल में हिमालय पर्वत पर अन्न त्याग कर घोर तपस्या शुरू कर दी थी। इस बात पार्वती जी के माता-पिता काफी परेशान थे। तभी एक दिन नारद जी राजा हिमवान के पास पार्वती जी के लिए भगवान विष्णु की ओर से विवाह का प्रस्ताव लेकर पहुंचे। माता पार्वती ने यह शादी का प्रस्ताव ठुकरा दिया।
इस दिन प्रातः काल दैनिक क्रिया से स्नान आदि से निपट कर रखने का विधान है. स्त्रियां उमा- महेश्वर सायुज्य सिद्दये हरतालिका व्रत महे करिष्ये संकल्प करके कहें कि हरतालिका व्रत सात जन्म तक राज्य और अखंड सौभाग्य वृद्धि के लिए उमा का व्रत करती हूं फिर गणेश का पूजन करके गौरी सहित महेश्वर का पूजन करें. इस दिन स्त्रियों को निराहार रहना होता है. संध्या समय स्नान करके शुद्ध व उज्ज्वल वस्त्र धारण कर पार्वती तथा शिव की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजन की सम्पूर्ण सामग्री से पूजा करनी चाहिए. सांय काल स्नान करके विशेष पूजा करने के पश्चात व्रत खोला जाता है.
पौराणिक मान्यता के अनुसार, हरतालिका तीज के लिए सुहागिन महिलाओं को व्रत के बाद शुभ मुहूर्त में पूजा के समय मां पार्वती को सुहाग की सामग्री चढ़ानी चाहिए. इस तरह सिंदूर, इत्र, लाल चुनरी, बिंदी, काजल, लिपिस्टिक, गले का हार, कंघी, शीशा, तेल, नाखून पेंट, चूड़ियां, मेहंदी, कानों के झुमके, नाक की लौंग, कमरबंद, बिछुए, पायल, महावर जैसी सुहाग की निशानी को मां को अर्पित करें...
हरतालिका पूजा मुहूर्त: 5:53 am से 8:29 am
प्रदोष काल हरतालिका पूजा मुहूर्त: 6:54 pm से 9:06 pm
तृतीया तिथि प्रारंभ - 2:13 am अगस्त 21, 2020
तृतीया तिथि समाप्त - 11.02 pm अगस्त 21, 2020
भगवान शंकर का पूजन और आरती प्रत्येक पहर में होती है। इस दिन सुहागिन महिलाओं को सिंदूर, मेहंदी, बिंदी, चूड़ी, काजल आदि भी दिए जाते हैं।
इस बात का ध्यान रखें कि हरितालिका तीज पर तृतीया तिथि में ही पूजन करना चाहिए। तृतीया तिथि में पूजा गोधली और प्रदोष काल में की जाती है। चतुर्थी तिथि में पूजा मान्य नहीं, चतुर्थी में पारण किया जाता है।
हरितालिका तीज व्रत का पारण करने की कई जगह खास परंपरा है। व्रत के अगले दिन ताजी जलेबी और दही सेवन कर महिलाएं पारण करती हैं।
यह व्रत निराहार और निर्जला किया जाता है, इसलिए इस व्रत को सबसे कठिन व्रत में माना जाता है. इस व्रत में व्रती को शयन निषेध है. रात में भजन कीर्तन के साथ रात्रि जागरण करें. इस व्रत में सायं के पश्चात चार प्रहर की पूजा करते हुए रातभर भजन-कीर्तन, जागरण किया जाता है. दूसरे दिन सुबह सूर्योदय के समय व्रत संपन्न होता है.
तीज पर संध्या को पूजा करने के बाद चंद्रमा को अर्ध्य दिया जाता है। फिर उन्हें भी रोली, अक्षत और मौली अर्पित करें। चांदी की अंगूठी और गेंहू के दानों को हाथ में लेकर चंद्रमा के अर्ध्य देते हुए अपने स्थान पर खड़े होकर परिक्रमा करें।
सर्वाधिक नियम संयम के साथ रखा जाने वाला हरतालिका तीज का व्रत कल यानी 21 अगस्त को है। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए निर्जला व्रत करती हैं। यह व्रत मुख्य रूप से बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में रखा जाता है। व्रत रखने वाली महिलाओं को इस दिन विशेष नियमों का पालन करन होता है।
मां पार्वती को साड़ी और सुहाग का सामान और शिवजी को धोती व गमछा चढ़ाएं। पूजा के बाद यह सामान किसी जरूरतमंद ब्राह्मण परिवार को दान कर दिया जाता है। पूजा के बाद माता पार्वती को लगा हुआ सिंदूर अपनी भी मांग में लगाएं, और पति की दीर्घायु का आशीष प्राप्त करें। हरितालिका व्रत के दौरान 16 श्रृंगार का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन महिलाएं हाथों में मेहंदी भी लगाती हैं, जिसे सुहाग की निशानी माना जाता है।
हरतालिका तीज का व्रत सुहाग के सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। इस दिन व्रत करने वाली महिलाओं को मन में सिर्फ अच्छे विचार रखने चाहिए और व्रत के एक दिन पहले से ही प्याज लहसुन छोड़ देना चाहिए ताकि इसकी जरा भी अंश पेट में न रहे। फिर साफ मन से संकल्प लेकर व्रत करना चाहिए।
यह व्रत निराहार और निर्जला किया जाता है, इसलिए इस व्रत को सबसे कठिन व्रत में माना जाता है. इस व्रत में व्रती को शयन निषेध है. रात में भजन कीर्तन के साथ रात्रि जागरण करें. इस व्रत में सायं के पश्चात चार प्रहर की पूजा करते हुए रातभर भजन-कीर्तन, जागरण किया जाता है. दूसरे दिन सुबह सूर्योदय के समय व्रत संपन्न होता है.
हरतालिका का शाब्दिक अर्थ की बात करें तो यह दो शब्दों से मिलकर बना है हरत और आलिका, हरत का अर्थ होता है अपहरण और आलिका अर्थात् सहेली, इस संबंध में एक पौराणिक कथा मिलती है जिसके अनुसार पार्वती जी की सखियां उनका अपहरण करके जंगल में ले गई थी। ताकि पार्वती जी के पिता उनका विवाह इच्छा के विरुद्ध भगवान विष्णु से न कर दें। अपनी सखियों की सलाह से पार्वती जी ने घने वन में एक गुफा में भगवान शिव की अराधना की।
हरितालिका तीज व्रत का पारण करने की शहर में एक खास परंपरा है। यानी व्रत के अगले दिन ताजी जलेबी और दही सेवन कर महिलाएं पारण करती हैं। शनिवार को बाजार बंद होने से जलेबी मिलना मुश्किल होगा। दारागंज की अनुपमा पांडेय ने बताया जलेबी के बजाय मेवा और चासनी से तैयार विशेष मिष्ठान का सेवन कर पारण करेंगी। पुष्पा पांडेय ने बताया कि घर पर ही पकवान तैयार करके पारण करेंगी।
हरतालिका तीज व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना जाता है. यह व्रत बेहद ही कठिन व्रत होता है. इसे दो प्रकार से किया जाता है. एक निर्जला और दूसरा फलहारी. निर्जला व्रत में पानी नहीं पीते है, इसके साथ ही अन्न या फल कुछ भी ग्रहण नहीं करते हैं, वहीं फलाहारी व्रत रखने वाले लोग व्रत के दौरान जल पी सकते हैं और फल का सेवन करते हैं, जो कन्याएं निर्जला व्रत नहीं कर सकती हैं तो उनको फलाहारी व्रत करना चाहिए.
हरतालिका तीज का व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक है. इस व्रत में अन्न और जल का त्याग किया जाता है. तीज की पूजा रात में भी की जाती है. इस व्रत के दौरान महिलाओं को मन में शुद्ध विचार रखना चाहिए. इस दिन बुराई, लोभ और क्रोध से बचना चाहिए. इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान लगाना चाहिए.
कोरोना काल की वजह से बाजार में रौनक अधूरी नजर आ रही है। प्रमुख बाजार गोलघर में दुकानें खुली हैं मगर एहतियातन ग्राहक दुकानों में नजर नहीं आ रहे हैं। कुछ आ भी रहे हैं तो कोरोना संक्रमण के खतरे को ध्यान में रखकर जरूरी खरीदारी कर वापस लौट जा रहे हैं।
इस दिन प्रातः काल दैनिक क्रिया से स्नान आदि से निपट कर रखने का विधान है. स्त्रियां उमा- महेश्वर सायुज्य सिद्दये हरतालिका व्रत महे करिष्ये संकल्प करके कहें कि हरतालिका व्रत सात जन्म तक राज्य और अखंड सौभाग्य वृद्धि के लिए उमा का व्रत करती हूं फिर गणेश का पूजन करके गौरी सहित महेश्वर का पूजन करें. इस दिन स्त्रियों को निराहार रहना होता है. संध्या समय स्नान करके शुद्ध व उज्ज्वल वस्त्र धारण कर पार्वती तथा शिव की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजन की सम्पूर्ण सामग्री से पूजा करनी चाहिए. सांय काल स्नान करके विशेष पूजा करने के पश्चात व्रत खोला जाता है.
पौराणिक मान्यता के अनुसार, हरतालिका तीज के लिए सुहागिन महिलाओं को व्रत के बाद शुभ मुहूर्त में पूजा के समय मां पार्वती को सुहाग की सामग्री चढ़ानी चाहिए. इस तरह सिंदूर, इत्र, लाल चुनरी, बिंदी, काजल, लिपिस्टिक, गले का हार, कंघी, शीशा, तेल, नाखून पेंट, चूड़ियां, मेहंदी, कानों के झुमके, नाक की लौंग, कमरबंद, बिछुए, पायल, महावर जैसी सुहाग की निशानी को मां को अर्पित करें...
सुहागिनों का त्योहार हरतालिका तीज भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. इस बार यह 21 अगस्त को है. सुबह 5.54 बजे से 8.30 मिनट तक का शुभ मुहूर्त है. तालिका तीज व्रत को प्रदोषकाल में किया जाता है.इस दिन घर में मिट्टी या बालू से भगवान शिव और मां पार्वती की प्रतिमा बनाकर पूजा होती है. सुहागिनें सोलह शृंगार के साथ मां पार्वती अखंड सुहाग का वरदान मांगती हैं.
यह व्रत निराहार और निर्जला किया जाता है, इसलिए इस व्रत को सबसे कठिन व्रत में माना जाता है. इस व्रत में व्रती को शयन निषेध है. रात में भजन कीर्तन के साथ रात्रि जागरण करें. इस व्रत में सायं के पश्चात चार प्रहर की पूजा करते हुए रातभर भजन-कीर्तन, जागरण किया जाता है. दूसरे दिन सुबह सूर्योदय के समय व्रत संपन्न होता है.
तीज व्रत में दुल्हन की तरह सजें और हरे कपड़े और जेवर पहनें. व्रती महिलाओं को पानी नहीं पीना चाहिए. हरितालिका व्रत निर्जला रखी जाती है. इस दिन मेहंदी लगवाना शुभ माना जाता है. नवविवाहित महिलाएं अपनी पहली तीज पर मायके जाती हैं.
शास्त्रों के अनुसार, हिमवान की पुत्री माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए बालकाल में हिमालय पर्वत पर अन्न त्याग कर घोर तपस्या शुरू कर दी थी। इस बात पार्वती जी के माता-पिता काफी परेशान थे। तभी एक दिन नारद जी राजा हिमवान के पास पार्वती जी के लिए भगवान विष्णु की ओर से विवाह का प्रस्ताव लेकर पहुंचे। माता पार्वती ने यह शादी का प्रस्ताव ठुकरा दिया।
शास्त्रों के अनुसार, हरतालिका तीज व्रत में कथा का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि कथा के बिना इस व्रत को अधूरा माना जाता है। इसलिए हरतालिका तीज व्रत रखने वाले को कथा जरूर सुननी या पढ़नी चाहिए।