Hariyali Amavasya 2020: भारत भिन्न-भिन्न संस्कृतियों का देश है। इसके हर तानों-बानों में विविध रंग समाहित है। यहाँ जहां पूर्णिमा का महत्व है वहीं अमावस्या की बड़ी अहमियत है। पूर्णिमा और अमावस्या दोनों का सीधा असर हमारे अंतर्मन पर पड़ता है। श्रावण महीने की अमावस के बीज हमारी संस्कृति में कृषि में रोपित दृष्टिगोचर होते हैं। इस अमावस्या को हरियाली अमावस्या भी कहा जाता है। इस पर्व में जहां भारत की मिट्टी की सोन्धी ख़ुशबू आती है, वहीं अपने भीतर के अंधकार को दूर करने में यह बेहद असरदार है।
भारत के पृथक पृथक भागों में सावनकी इस अंधेरी निशा को भिन्न भिन्न नामों से पुकारा गया है। तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में चुक्कला अमावस कहलाती है। उड़ीसा में इसे चितलगी अमावस्या कहते हैं। तो वहीं, महाराष्ट्र में यह गताहारी अमावस या गटारी अमावस्या कहलाती हैं। गताहारी (बोलचाल में गटारी) को लेकर महाराष्ट्र में एक विचित्र प्रथा प्रचलित है। धार्मिक मान्यताओं के प्रति बेहद सजग प्रदेशों में से महाराष्ट्र एक प्रमुख प्रान्त के रूप में अपनी मौजूदगी दर्ज कराता है।
तटीय इलाक़ों में मांसाहार मुख्य भोजन होता है। अतएव अन्य तटीय क्षेत्रों की मानिंद यहाँ भी सामिष भोजन अधिक खाया जाता है। पर सावन में महाराष्ट्र के लोग सात्विक जीवन शैली का वरण करते हैं। अतः ये सावन में मांसाहार और मद्यपान से यथासंभव दूर रहते हैं। पर श्रावण के आरम्भ होने से ठीक पहले अमावस्या और सप्ताहांत में ये अपने इष्ट-मित्रों और सगे सम्बन्धियों कि साथ गटारी का आयोजन करते हैं और छक कर मांसाहार और मद्यपान करते हैं। दूसरों को यह प्रथा भले ही कुरीति प्रतीत होती हो, पर गटारी अघोषित रूप से महाराष्ट्र की संस्कृति का एक विचित्र पर अटूट हिस्सा है। बाह्य और आंतरिक जुड़ाव का ये अजीब तालमेल और घालमेल है।
परंपराओं के तानों-बानों में श्रावणी अमावस्या में प्रकृति की आराधना और वंदन के द्वारा आभार प्रकट किया जाता है। इस पर्व की डोर शिव-शक्ति से जुड़ी नज़र आती है। अनेक भागों में इस दिन शिव-शक्ति की उपासना होती है। इस अमावस्या पर कृषक कृषि औजारों यथा, हल, कुदाल, फावड़ा, हंसिया, कुल्हाड़ी इत्यादि का पूजन संपादित करते हैं और खेती में जुताई के काम आने वाले बैलों का शृंगार कर उसे श्रद्धानुसार उत्तम आहार अर्पित करते हैं।
इस पर्व को कृषि के द्वारा समृद्धि प्राप्त करने का प्रमुख पर्व माना जाता है। देश के कई भागों में इस दिन परम्पराओं के दामन में आंतरिक और बाह्य समृद्धि के लिए विशेष क्रियाएं और उपासना देह और आत्मा की मानिंद घुली-मिली दिखाई देती हैं।