Happy Hindu New Year 2019: 06 अप्रैल से प्रतिपदा के साथ परिधावी संवत्‌ 2076 आरंभ हो गई है। संवत्‌ दरअसल काल की गणना का भारतीय पैमाना है यानि भारतीय कैलेंडर है। एक संवत्‌ देवताओं का एक दिन है, जो मानव श्वास से आरंभ होता है। छः श्वास से एक विनाड़ी, 10 विनाड़ी यानी साठ श्वासों से एक नाड़ी बनती है। साठ नाड़ियां एक दिवस (दिन-रात का युगल) निर्मित करती हैं। तीस दिवसों का एक माह होता है।

एक चंद्र मास, उतनी चंद्र तिथियों से निर्मित होता है। सूर्य के राशि परिवर्तन से एक सौर मास आरंभ होता है और राशि प्रस्थान से माह पूर्ण हो जाता है। द्वादश माह का एक संवत्‌ होता है और एक संवत्‌ देवताओं का एक दिन कहलाता है। जम्बूद्वीप यानि भारतीय उपमहाद्वीप में यूं तो कई संवत्‌ प्रचलित रहे हैं, पर आज दो संवत्‌ अधिक प्रख्यात हैं, जिसमें पहला- विक्रम संवत्‌ और दूसरा- शक संवत्‌।

विक्रम संवत्‌ ईसा से लगभग पौने 58 साल पहले प्रकट हुआ। समय को गिनने की यह पद्धति गर्दभिल्ल के पुत्र सम्राट विक्रमादित्य, जिन्होंने मालवों का नेतृत्व कर विदेशी ‘शकों’ को धूल धुसरित किया था,के महती प्रयास से अस्तित्व में आई। बृहत्संहिता की व्याख्या करते हुए 966 ईसवी में ‘उत्पल’ ने लिखा कि शक साम्राज्य को जब सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने पराभूत कर दिया,तब नया संवत अस्तित्व में आया, जिसे आज विक्रम संवत कहा जाता है। विदेशी शकों को उखाड़ फेंकने के बाद तब के प्रचलित शक संवत के स्थान पर विदेशियों और आक्रांताओं पर विजय स्तंभ के रूप में विक्रम संवत स्थापित हुआ।

आरम्भ में इस संवत्‌ को कृत संवत के नाम से जाना गया। कालांतर में यह मालव संवत के रूप में भी लोकप्रिय हुआ। बाद में जब विक्रमादित्य राष्ट्र प्रेम प्रतीक चिन्ह के रूप में स्थापित हुए, तब मालव संवत ख़ामोशी से, कई सुधारों को स्वयं में समेटते हुए, विक्रम संवत्‌ के रूप में तब्दील हो गया। पर शकों का शक संवत्‌ अब तक भारत में मान्य है।महाकवि कालिदास इन्ही सम्राट विक्रमादित्य के नवरत्न थे।

द्वादश माह के वर्ष एवं सात दिन के सप्ताह का आग़ाज़ विक्रम संवत से ही आरम्भ हुआ। विक्रम संवत में दिन, सप्ताह और मास की गणना सूर्य व चंद्रमा की गति पर निश्चित की गई। यह काल गणना अंग्रेज़ी कैलेंडर से बहुत आधुनिक और विकसित प्रतीत होती है। इसमें सूर्य, चंद्रमा के साथ अन्य ग्रहों को तो जोड़ा ही गया,साथ ही आकाशगंगा के तारों के समूहों को भी शामिल किया गया, जिन्हें नक्षत्र कहा जाता है। एक नक्षत्र चार तारा समूहों के मेल से निर्मित होता है, जिन्हें नक्षत्रों के चरण के रूप में जाना जाता है। कुल नक्षत्र की संख्या सत्ताईस मानी गयी है, जिसमें अट्ठाईसवें नक्षत्र अभिजीत को शुमार नहीं किया गया। सवा दो नक्षत्रों के समूहों को एक राशि माना गया।

इस प्रकार कुल बारह राशियां वजूद में आईं, जिन्हें बारह सौर महीनों में शामिल किया गया।पूर्णिमा पर चंद्रमा जिस नक्षत्र में गतिशील होता है, उसके अनुसार महीनों का विभाजन और नामकरण हुआ है। सूर्य जब नई राशि में प्रविष्ट होता है वह दिवस संक्रांति कहलाता है। पर चूँकि चंद्रवर्ष सूर्यवर्ष यानि सौर वर्ष से ग्यारह दिवस,तीन घाटी, और अड़तालीस पल कम है, इसीलिए हर तीन साल में एक एक मास का योग कर दिया जाता है, जिसे बोलचाल में अधिक माह,मल मास या पुरूषोत्तम माह कहा जाता है।