Happy Hindu New Year 2019: शक संवत् का आरम्भ यूं तो ईसा से लगभग अठहत्तर वर्ष पहले हुआ, पर इसका अस्पष्ट स्वरूप ईसा के पांच सौ साल पहले से ही मिलने लगा था। वराहमिहिर ने इसे शक-काल और कहीं कहीं शक-भूपकाल कहा है। शुरुआती कालखंड में लगभग समस्त ज्योतिषिय गणना और ज्योतिषिय ग्रंथों में शक संवत ही प्रयुक्त होता था। शक संवत् के बारे में धारणा ये है कि यह उज्जयिनी सम्राट ‘चेष्टन’ के अथक प्रयास से प्रकट हुआ। इसके मूल में सम्राट कनिष्क की भी महती भूमिका मानी जाती है।
शक संवत को ‘शालिवाहन’ भी कहा जाता है। पर शक संवत के शालिवाहन नाम का उल्लेख तेरहवीं से चौदहवीं सदी के शिलालेखों में मिलता है। कहीं कहीं इसे सातवाहन भी कहा गया है। संभावना है कि सातवाहन नाम पहले साल वाहन या शाल वाहन बना और कालांतर में ये ‘शालिवाहन’ के स्वरूप में प्रख्यात हुआ।शक संवत के साल का आग़ाज़ चन्द्र सौर गणना के लिए चैत्र माह से और सौर गणना के लिए मेष राशि से होता है। इनके अलावा एक और संवत्सर प्रचलित है, जिसे लौकिक संवत कहा जाता है। इसे सप्तर्षि संवत भी कहते हैं, जो उत्तर में विशेष रूप से कश्मीर और उसके आसपास के क्षेत्रों में प्रसिद्ध है। इसे शक संवत से भी अधिक प्राचीन माना गया है।
बौद्ध धर्म के विस्तार से पूर्व इस संवत्सर के विस्तारसूत्र चीन, जापान, कोरिया, मंगोलिया और उससे आगे तक नज़र आते हैं। बृहत्संहिता के अनुसार सप्तर्षि एक नक्षत्र में शतवर्षों तक यानि सौ साल तक रहते है। मान्यताओं के अनुसार युधिष्ठर के शासन काल में भिनसप्तर्षि संवत्सर अस्तित्व में था। सप्तर्षि संवत दरअसल मेष राशि से प्रारम्भ होकर, सौ वर्षों के वृत्तों में गणना की विधि थी। है। मध्य काल में अन्य बहुत से संवत् वजूद में थे। जैसे गुप्त, कोल्लम या परशुराम, हर्ष, वर्धमान, चेदि, बुद्ध-निर्वाण और लक्ष्मणसेन। वक़्त के थपेड़ों में गुम होने से पहले ये सारे संवत अपने काल में आज के अंग्रेज़ी कैलेंडर और विक्रम या शक संवत से कहीं बहुत ज़्यादा बड़ी हैसियत रखते थे और बेहद असरदार और प्रख्यात थे।

