Hanuman Ji In Mahabharat: आज यानी 12 अप्रैल को हनुमान जयंती है और पूरे देश में बड़े ही श्रद्धा और उत्साह के साथ हनुमान जी का जन्मोत्सव मनाया जा रहा है। लोग मंदिरों में जाकर हनुमान जी के दर्शन कर रहे हैं, उनसे अपने जीवन की परेशानियों से मुक्ति और इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना कर रहे हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह पर्व हर साल चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। वहीं, हनुमान जी को कलयुग का सबसे प्रभावशाली देवता माना जाता है और वे चिरंजीवी हैं, यानी वे अमर हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हनुमान जी न सिर्फ रामायण बल्कि महाभारत में भी दिखाई दिए थे और उनकी भूमिका बहुत ही खास रही थी? अगर नहीं, तो आइए जानते हैं महाभारत में हनुमान जी की भूमिका की पूरी कथा के बारे में।
पहली कथा – भीम से मुलाकात और उनका घमंड तोड़ना
महाभारत की एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, जब पांडवों को 12 वर्षों का वनवास मिला था, तब एक दिन द्रौपदी ने भीम से सौगंधिका फूल लाने की इच्छा जताई। भीम फूल की तलाश में जंगल की ओर निकल पड़े। रास्ते में उन्हें एक बूढ़ा वानर लेटा हुआ मिला, जिसकी पूंछ रास्ता रोक रही थी। भीम ने वानर से पूंछ हटाने को कहा, लेकिन वानर ने कहा कि वह बूढ़ा है और अपनी पूंछ नहीं हटा सकता। तब भीम ने अपनी पूरी ताकत लगाकर पूंछ हटाने की कोशिश की, लेकिन पूंछ टस से मस नहीं हुई। यह देख भीम को समझ आ गया कि यह कोई साधारण वानर नहीं है। जब उन्होंने वानर से पूछा कि वे कौन हैं, तब वानर ने अपना असली रूप दिखाया और पता चला कि वे स्वयं हनुमान जी हैं। हनुमान जी ने भीम को आशीर्वाद दिया और उनका अहंकार भी तोड़ दिया।
दूसरी कथा – अर्जुन को दी सीख और सेतु निर्माण की कथा
एक और दिलचस्प कथा में अर्जुन वन में भ्रमण करते हुए रामेश्वरम पहुंचते हैं, जहां उन्होंने भगवान राम द्वारा बनाए गए पत्थर के सेतु को देखा। अर्जुन को लगा कि अगर वे होते तो वे इस पुल को अपने तीरों से ही बना देते। यह सुनकर हनुमान जी वहां प्रकट हुए और अर्जुन को चुनौती दी कि तीरों से बना पुल उनका भार सहन नहीं कर पाएगा। अर्जुन ने चुनौती स्वीकार की और तीरों का सेतु बनाया। हनुमान जी ने जैसे ही सेतु पर पांव रखा, वह टूटने लगा और अर्जुन हार मानने को तैयार हो गए। तभी श्रीकृष्ण प्रकट हुए और कहा कि सेतु निर्माण से पहले भगवान राम का नाम लेना जरूरी है। जब अर्जुन ने राम नाम लेकर सेतु बनाया, तो हनुमान जी का वजन भी वह सहन कर गया।
कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन के रथ पर विराजमान हनुमान जी
इस घटना से प्रभावित होकर हनुमान जी ने अर्जुन से वादा किया कि वे युद्ध के अंत तक उनकी रक्षा करेंगे। इसलिए, कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन के रथ के ध्वज पर हनुमान जी विराजमान रहे। युद्ध के बाद श्रीकृष्ण ने पहले हनुमान जी से रथ से उतरने को कहा, फिर स्वयं उतरे। उनके उतरते ही अर्जुन का रथ जलकर राख हो गया। तब श्रीकृष्ण ने बताया कि हनुमान जी उनकी दिव्य अस्त्रों से रक्षा कर रहे थे। इससे पता चलता है कि हनुमान जी की भूमिका न सिर्फ रामायण तक सीमित रही, बल्कि महाभारत में भी वे एक अत्यंत महत्वपूर्ण पात्र के रूप में सामने आए।
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