वैदिक पंचांग के अनुसार चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि यानी आज हनुमान जयंती मनाई जा रहा है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति व्रत रखकर हनुमान जी की पूजा- अर्चना करता है। उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं। इसलिए इस दिन बजरंगबली की विशेष पूजा करने का विधान है। वहीं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पूजा का समापन आरती और मंत्र जाप के बाद माना जाता है। इसलिए आइए जानते हैं हनुमान जी आरती के बारे में, जिसका पाठ करने से बजरंगबली बेहद प्रसन्न होते हैं…
Hanuman Ji Ki Aarti: यहां पढ़े हनुमान जी की आरती लिरिक्स इन हिंदी
हनुमान जी की आरती
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके।
अंजनि पुत्र महाबलदायी। संतान के प्रभु सदा सहाई।।
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारी सिया सुधि लाए।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई।
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
लंका जारि असुर संहारे। सियारामजी के काज संवारे।
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे।आनि संजीवन प्राण उबारे।
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
पैठी पाताल तोरि जमकारे। अहिरावण की भुजा उखारे।
बाएं भुजा असुरदल मारे। दाहिने भुजा संत जन तारे।
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
सुर-नर-मुनि जन आरती उतारें। जय जय जय हनुमान उचारें।
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई।
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
लंकविध्वंस कीन्ह रघुराई। तुलसीदास प्रभु कीरति गाई।
जो हनुमानजी की आरती गावै। बसी बैकुंठ परमपद पावै।
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
भगवान हनुमान के मंत्र (Hanuman Jayanti 2024 Matra)
हनुमान जी का मूल मंत्र
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः॥ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्।
हनुमान जी का कवच मूल मंत्र
श्री हनुमते नमः:
हनुमान अष्टदशाक्षर मंत्र – नमो भगवते आन्जनेयाये महाबलाये स्वाहा.
ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्वशत्रुसहांरणाय सर्वरोगाय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा.
मनोजवं मारुतुल्यवेगं जितेंद्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्. वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये.
ॐ दक्षिणमुखाय पच्चमुख हनुमते करालबदनाय.
ॐ पूर्वकपिमुखाय पच्चमुख हनुमते टं टं टं टं टं सकल शत्रु सहंरणाय स्वाहा.
नारसिंहाय ॐ हां हीं हूं हौं हः सकलभीतप्रेतदमनाय स्वाहाः
मर्कटेश महोत्साह सर्वशोक विनाशन.