Shri Bajrang Baan Lyrics in Hindi: आज देशभर में हनुमान जन्मोत्सव का पर्व मनाया जा रहा है। आज के दिन भगवान हनुमान की पूजा करने से साधकों को हर एक दुख-दर्द से निजात मिल जाती है। पंचांग के अनुसार, साल में दो बार हनुमान जयंती का पर्व मनाया जाता है। पहला चैत्र पूर्णिमा और दूसरा कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। चैत्र पूर्णिमा की हनुमान जन्मोत्सव उत्तर भारत में और कार्तिक मास का पर्व दक्षिण भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन पवन पुत्र हनुमान की विधिवत पूजा करने के साथ-साथ कई स्थानों में धूमधाम से जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस दिन हनुमान जी की पूजा करने से हर तरह से रोग, दोष और भय से मुक्ति मिल जा जाती है। हनुमान जन्मोत्सव पर पूजा करने के साथ चालीसा, मंत्र का जाप करने के अलावा बजरंग बाण का पाठ अवश्य करें। इससे विवाह में आने वाली परेशानियां समाप्त होती है। इसके साथ ही वास्तु दोष से लेकर मांगलिक दोष से भी निजात मिल जाती है। आइए जानते हैं संपूर्ण बजरंग बाण, विधि और लाभ ….
बजरंग बाण करने की विधि (Bajrang Baan Vidhi)
हनुमान जन्मोत्सव पर ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि कर लें। इसके बाद कुश के आसन में बैठ जाएं और हनुमान जी का मनन करते हुए व्रत का संकल्प लें। बजरंग बाण करने के लिए सबसे पहले प्रथम पूज्य गणेश जी की पूजा करें। इसके बाद माता सीता और प्रभु श्री राम की पूजा करें। इसके बाद हनुमान जी को फूल, माला, सिंदूर आदि चढ़ाकर लड्डू आदि का भोग लगाएं। फिर घी का दीपक जला लें। इसके बाद रुद्राक्ष की माला या फिर ऐसे ही बजरंग बाण का पाठ करें।
बजरंग बाण करने से मिलने वाले लाभ (Bajrang Baan Ke Labh)
- बजरंग बाण का पाठ करने से अविवाहितों का शादी में आ रही परेशानियां समाप्त हो जाती है। हनुमान जी की कृपा से जल्द विवाह हो जाता है।
- अगर आपकी कुंडली में ग्रह दोष है, तो बजरंग बाण का पाठ करें। इस दौरान आटे से बना दीपक अवश्य बनाकर जलाएं।
- अगर कार्यक्षेत्र में किसी भी प्रकार की समस्या हो रही है, तो हनुमान जी की पूजा करने के साथ बजरंग बाण का पाठ करें।
- वास्तु दोष के कारण जीवन में कई परेशानियां आ रही हैं, तो दिन तीन बार बजरंग बाण का पाठ करें। इसके साथ ही हर मंगलवार के दिन करें।
- मांगलिक दोष के निवारण के लिए हनुमान जन्मोत्सव और मंगलवार के दिन बजरंग बाण का पाठ करना शुभ होगा।
संपूर्ण बजरंग बाण(Bajrang Baan)
दोहा
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।”
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥”
चौपाई
जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी।।
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महासुख दीजै।।
जैसे कूदि सिन्धु महि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।
आगे जाई लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा।।
बाग़ उजारि सिन्धु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा।।
अक्षयकुमार को मारि संहारा। लूम लपेट लंक को जारा।।
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर में भई।।
अब विलम्ब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु उर अन्तर्यामी।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होय दुख हरहु निपाता।।
जै गिरिधर जै जै सुखसागर। सुर समूह समरथ भटनागर।।
ॐ हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहिंं मारु बज्र की कीले।।
गदा बज्र लै बैरिहिं मारो। महाराज प्रभु दास उबारो।।
ऊँकार हुंकार प्रभु धावो। बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ऊँ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा।।
सत्य होहु हरि शपथ पाय के। रामदूत धरु मारु जाय के।।
जय जय जय हनुमन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत हौं दास तुम्हारा।।
वन उपवन, मग गिरिगृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।
पांय परों कर ज़ोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।
जय अंजनिकुमार बलवन्ता। शंकरसुवन वीर हनुमन्ता।।
बदन कराल काल कुल घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बेताल काल मारी मर।।
इन्हें मारु तोहिं शपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की।।
जनकसुता हरिदास कहावौ। ताकी शपथ विलम्ब न लावो।।
जय जय जय धुनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा।।
चरण शरण कर ज़ोरि मनावौ। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।
उठु उठु चलु तोहि राम दुहाई। पांय परों कर ज़ोरि मनाई।।
ॐ चं चं चं चं चपत चलंता। ऊँ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता।।
ऊँ हँ हँ हांक देत कपि चंचल। ऊँ सं सं सहमि पराने खल दल।।
अपने जन को तुरत उबारो। सुमिरत होय आनन्द हमारो।।
यह बजरंग बाण जेहि मारै। ताहि कहो फिर कौन उबारै।।
पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की।।
यह बजरंग बाण जो जापै। ताते भूत प्रेत सब काँपै।।
धूप देय अरु जपै हमेशा। ताके तन नहिं रहै कलेशा।।
दोहा
प्रेम प्रतीतहि कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान।।
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