Guru Purnima 2020 Date, Puja Vidhi, Vrat Vidhi, Katha, Timings: गुरु पूर्णिमा का पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। ये दिन गुरुओं को समर्पित है। इसी दिन तमाम ग्रंथों की रचना करने वाले महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। तभी से उनके सम्मान में आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन चंद्र ग्रहण भी लग रहा है। हिंदू धर्म में गुरु को ईश्वर से भी ऊंचा स्थान दिया गया है।
गुरु पूर्णिमा का महत्व: महर्षि वेद व्यास संस्कृत के महान विद्वान थे। महाभारत जैसा महाकाव्य उनके द्वारा ही लिखा गया था। इसके अलावा 18 पुराणों के रचयिता भी महर्षि वेदव्यास ही माने जाते हैं। साथ ही वेदों को विभाजित करने का श्रेय भी इन्हीं को दिया जाता है। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुओं की पूजा करने का विशेष महत्व है। पुराने समय में गुरुकुल में रहने वाले छात्र गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरुओं की विशेष पूजा-अर्चना किया करते थे। इस दिन केवल गुरु ही नहीं बल्कि घर में अपने बड़ों जैसे माता-पिता, भाई-बहन आदि का आशीर्वाद लिया जाता है।
गुरु पूर्णिमा की पूजा विधि: गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद घर के मंदिर में किसी चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाएं। इसके बाद ”गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये” मंत्र का जाप करें। फिर अपने गुरु या उनकी प्रतिमा की कुमकुम, अबीर, गुलाल आदि से पूजा करें। उन्हें मिठाई, ऋतुफल, सूखे मेवे, पंचामृत का भोग लगाएं। यदि आपके गुरु आपके सामने हैं तो सबसे पहले उनके चरण धोएं फिर उन्हें तिलक लगाएं और फूल अर्पण करें। अब उन्हें भोजन कराएं। इसके बाद दक्षिणा देकर उनके पैर छूकर उन्हें विदा करें।
गुरु पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त:
गुरु पूर्णिमा की तिथि: 5 जुलाई
गुरु पूर्णिमा प्रारंभ: 4 जुलाई 2020 को सुबह 11 बजकर 33 मिनट से
गुरु पूर्णिमा तिथि सामप्त: 5 जुलाई 2020 को सुबह 10 बजकर 13 मिनट तक
गुरु की पूजन के लिए 4 मंत्र:
1. ॐ गुरुभ्यो नम:।
2. ॐ गुं गुरुभ्यो नम:।
3. ॐ परमतत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नम:।
4. ॐ वेदाहि गुरु देवाय विद्महे परम गुरुवे धीमहि तन्नौ: गुरु: प्रचोदयात्।
यही वह मंत्र हैं जिनसे पूर्णता प्राप्त होगी।
Happy Guru Purnima 2020 Wishes Images, Quotes, Messages In Hindi
शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक. गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है. अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ‘गुरु’ कहा जाता है.
आज गुरु पूर्णिमा है। बहुत से लोग गुरु पूर्णिमा के मौके पर सत्यनारायण की कथा भी सुनते हैं। लोग अपने घरों के सामने बंदनवार सजाते हैं। तुलसी दल मिला हुआ प्रसाद बांटते हैं। आज के दिन पूजा में लोग अपने देवताओं को फल, मेवा अक्षत और खीर का भोग लगाते हैं।
हिंदू धर्म में गुरुओं को भगवान से भी ऊपर का दर्जा प्राप्त है. गुरु के जरिए ही मनुष्य ईश्वर तक पहुंच सकता है. ऐसे में गुरुओं की पूजा भी भगवान रूपी की जानी चाहिए
गुरु पूर्णिमा के दिन ही चंद्रग्रहण भी हैं। इसलिए इस बात का खास ख्याल रखें कि समय रहते पूजा विधान को संपन्न कर लें। चंदग्रहण बुधवार देर रात 1 बजकर 33 मिनट से लगेगा। ग्रहण का सूतक 9 घंटे पहले यानी मंगलवार को शाम 4 बजे से लग जाएगा। ग्रहण और सूतक दोनों में पूजा का निषेध रहता है।
5 जुलाई को गुरु पूर्णिमा का त्योहार है। इस पर्व पर अपने गुरु के प्रति आस्था को प्रगट किया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि पर गुरु पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन विधिवत रूप से गुरु पूजन किया जाता है। इसको व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन को चारों वेदों के रचयिता और महाभारत जैसे महाकाव्य की रचना करने वाले वेद व्यास की जयंती के रूप में मनाया जाता है।
हिंदू धर्म के मुताबिक महर्षि वेद व्यास का जन्म गुरु पूर्णिमा के दिन हुआ था. इस वजह से गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है
अखंड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरं, तत्पदंदर्शितं एनं तस्मै श्री गुरुवे नम: अर्थात यह श्रृष्टि अखंड मंडलाकार है। बिंदु से लेकर सारी सृष्टि को चलाने वाली अनंत शक्ति का, जो परमेश्वर तत्व है, वहां तक सहज संबंध है। इस संबंध को जिनके चरणों में बैठ कर समझने की अनुभूति पाने का प्रयास करते हैं, वही गुरु है।
ॐ गुरुभ्यो नम:।
- ॐ गुं गुरुभ्यो नम:।
- ॐ परमतत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नम:।
ॐ वेदाहि गुरु देवाय विद्महे परम गुरुवे धीमहि तन्नौ: गुरु: प्रचोदयात्।
गुर बिनु भव निधि तरइ न कोई ।
जौं बिरंचि संकर सम होई ।।
साधक को जीवन की सार्थकता के लिए योग्य गुरु की कृपा प्राप्त करना अतिआवश्यक होता है. गुरु प्राप्ति के लिए एकलव्य के समान अपार श्रद्धा और विश्वास की आवश्यकता है. गुरु पूर्णिमा को अपने गुरु का पूजन, वंदन और सम्मान करना चाहिए.
श्रीगुर पद नख मनि गन जोती ।
सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती ।।
अर्थात् श्री गुरु चरण के स्मरण मात्र से ही आत्मज्योति का विकास हो जाता है. भारतीय संस्कृति में गुरु पद को सर्वोपरि माना गया है. जीव को ईश्वर की अनुभूति और साक्षात्कार कराने वाली मान प्रतिमा गुरु ही हैं. इस कारण गुरु का साक्षात् त्रिदेव तुल्य स्वीकार किया है.
1. ॐ गुरुभ्यो नम:।
2. ॐ गुं गुरुभ्यो नम:।
3. ॐ परमतत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नम:।
4. ॐ वेदाहि गुरु देवाय विद्महे परम गुरुवे धीमहि तन्नौ: गुरु: प्रचोदयात्।
यही वह मंत्र हैं जिनसे पूर्णता प्राप्त होगी।
1. ॐ गुरुभ्यो नम:।
2. ॐ गुं गुरुभ्यो नम:।
3. ॐ परमतत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नम:।
4. ॐ वेदाहि गुरु देवाय विद्महे परम गुरुवे धीमहि तन्नौ: गुरु: प्रचोदयात्।
यही वह मंत्र हैं जिनसे पूर्णता प्राप्त होगी।
गुरु पूर्णिमा के दिन लगने वाला चंद्रग्रहण भारत के संदर्भ में बहुत ज्यादा प्रभावशाली नहीं होगा। क्योंकि यह एक उपच्छाया चंद्रग्रहण है और यहां दिखाई भी नहीं देगा। वहीं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यह चंद्र ग्रहण धनु राशि में लगेगा। धनु राशि में गुरु बृहस्पति और राहु मौजूद हैं। अतः ग्रहण के दौरान बृहस्पति पर राहु की दृष्टि धनु राशि को प्रभावित करेगी।
ऐसी मान्यता है कि आषाढ मास की पूर्णिमा को चारों वेदों व महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्म हुआ था. वेदों की रचाना करने के कारण इन्हें वेद व्यास भी कहा जाता है. कहा जाता है कि महर्षि वेद व्यास ने सबसे पहले भागवत पुराण की कथा ऋषि मुनियों को सुनाई थी. इसके बाद ऋषि – मुनियों ने गुरु की पूजा करने की परंपरा की शुरुआत की. आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूजन का विशेष विधान है.
- गुरु को उच्च आसन पर बैठाएं.
- उनके चरण जल से धुलाएं और पोंछे.
- फिर उनके चरणों में पीले या सफेद पुष्प अर्पित करें .
- इसके बाद उन्हें श्वेत या पीले वस्त्र दें.
- यथाशक्ति फल, मिष्ठान्न दक्षिणा अर्पित करें.
- गुरु से अपना दायित्व स्वीकार करने की प्रार्थना करें.
हिन्दू धर्म में गुरु पूजा का विशेष विधान है. इस दिन लोग अपने गुरु की मूर्ति रखकर उसे अच्छे ढंग से सजाते हैं. उसके बाद धूप दीप अगरबत्ती आदि जलाकर गुरु मन्त्रों की सहायता पूजा करते हैं उसके बाद प्रसाद आदि वितरण करते हैं.
इस चंद्रग्रहण का गुरु पूर्णिमा की पूजा पर कोई असर नहीं पड़ेगा. सभी लोग अपने गुरु की पूजा कर सकेंगें. जो लोग गुरु पूजा विधि विधान से करना चाहते हैं वे बिना किसी दिक्कत के कर सकते हैं.
इस दिन सुबह जल्दी उठ जाएं और स्नान कर साफ कपड़े पहन लें। संभव हो तो इस दिन अपने गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनके पास जाएं। अगर ऐसा न कर पाएं तो अपने ईष्ट देव की तस्वीर घर में एक स्वच्छ स्थान पर रखें। इसके बाद अपने गुरु की तस्वीर को पवित्र आसन पर विराजमान करें और उन्हें पुष्प की माला पहनाएं। उन्हें तिलक और फल अर्पित करें। इसके बाद अपने गुरु की पूजा करें।
ऐसी मान्यता है कि ग्रहण की नकारात्मक ऊर्जा का सबसे ज्यादा प्रभाव गर्भ में पल रहे बच्चे पर पड़ता है. इसलिए ग्रहण काल में गर्भवती स्त्रियों को घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए ताकि ग्रहण की इस नकारात्मक ऊर्जा से गर्भ में पल रहे बच्चे को बचाया जा सके.
गुरु पूर्णिमा के दिन चंद्रग्रहण भी लग रहा है लेकिन इसका भारत में प्रभाव नहीं रहेगा। जिस वजह से आप पूर्णिमा तिथि समाप्त होने तक गुरु पूर्णिमा की पूजा कर सकते हैं। 5 जुलाई में सुबह 10.15 बजे पूर्णिमा तिथि समाप्त होगी। कोरोना काल में घर पर रहकर ही गुरु की पूजा करें। गुरु से मिले दिव्य मंत्र का मन ही मन जप और मनन करें। कभी भूलकर भी दूसरे से इसकी चर्चा नहीं करनी चाहिए। इस दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नियमित दिनों की तरह पूजा करें और देवी देवताओं से आशीर्वाद प्राप्त करें। वहीं इस दिन अपने गुरु की सेवा श्रद्धा भाव से करें। शाम के समय में सामर्थ्य अनुसार दान-दक्षिणा देकर उनसे आशीर्वाद लें।
इस दिन को हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिवस भी माना जाता है| वे संस्कृत के महान विद्वान थे महाभारत जैसा महाकाव्य उन्ही की देन है। इसी के अठारहवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण गीता का उपदेश देते हैं। सभी 18 पुराणों का रचयिता भी महर्षि वेदव्यास को माना जाता है। वेदों को विभाजित करने का श्रेय भी इन्हीं को दिया जाता है। इसी कारण इनका नाम वेदव्यास पड़ा था। वेदव्यास जी को आदिगुरु भी कहा जाता है इसलिए गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है|
राहुकाल: 17:38:29 से 19:22:46 तक (इस काल में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है)
शुभ मुहूर्त का समय - अभिजित मुहूर्त: 11:57:50 से 12:53:27 तक
दिशा शूल: पश्चिम
अशुभ मुहूर्त का समय -
दुष्टमुहूर्त: 17:31:32 से 18:27:09 तक
कुलिक: 17:31:32 से 18:27:09 तक
कालवेला / अर्द्धयाम: 11:57:50 से 12:53:27 तक
यमघण्ट: 13:49:04 से 14:44:41 तक
कंटक: 10:06:36 से 11:02:13 तक
यमगण्ड: 12:25:38 से 14:09:55 तक
गुलिक काल: 15:54:12 से 17:38:29 तक
गुरु पूर्णिमा के दिन विभिन्न सामाजिक व धार्मिक संगठनों की ओर से विशेष आयोजन कर गुरुओं के प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है। कोरोना वायरस के कारण इस बार सभी जगहों पर सामूहिक कार्यक्रम को स्थगित कर अपने-अपने घरों में ही गुरु का पूजन करने को कहा जा रहा है। अधिकतर जगहों पर लोग ऑनलाइन गुरु पूजन कार्यक्रम में शामिल होंगे।
ग्रहण की शुरुआत 5 जुलाई की सुबह 08:38 AM से होगी। इसका परमग्रास 09:59 AM पर होगा और इसकी समाप्ति 11:21 AM पर। उपच्छाया चंद्र ग्रहण की कुल अवधि 02 घण्टे 43 मिनट की होगी। उपच्छाया चंद्र ग्रहण होने के कारण इसका सूतक काल मान्य नहीं होगा। अगला चंद्र ग्रहण 30 नवंबर को लगेगा।
गुरु परमात्मा के समकक्ष होते हैं। गुरु के साथ रहने से परमात्मा का दर्शन होता है। गुरु के मार्गदर्शन में ही परमात्मा से साक्षात्कार होता है। वह पूजनीय, आदरणीय और वंदनीय हैं।
गुरु जीवन का रहस्य बताते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन उनका सम्मान कर आशीर्वाद लें और अपने जीवन की समृद्धि के लिए उनसे ऊर्जा ग्रहण करें।
जिसका कोई गुरु नहीं, वह अंधकार में भटकता रहता है। माया के चक्कर में जीवन को नष्ट करता है और निरुद्देश्य होकर अपना वैभव खोता है।
गुरु के बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं होता है। क्योंकि जब तक उद्देश्य नहीं होगा तब तक चलने का कोई अर्थ नहीं होता है।
गुरु का आशीर्वाद मिलने से जीवन को नई दिशा मिलती है। जीवन की गति उचित मार्ग की ओर अग्रसर होती है। गुरु सदैव सम्मानित होते हैं।
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर शास्त्रीय विधि-विधान से गुरु की पूजा कर, उनका आशीर्वाद लेने से जीवन में सुख-समृद्धि और शांति आती है।
हर साल वर्षा ऋतु में ही गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है। माना जाता है कि मानसून के दौराना मौसम सुहाना रहता है और इस समय न ही अधिक गर्मी होती और न ही सर्दी होती है। ऐसे में यह वक्त अध्ययन और अध्यापन के लिए अनुकूल रहता है।
गुरु पूर्णिमा का प्रारंभ - 4 जुलाई को सुबह 11 बजकर 33 मिनट से
गुरु पूर्णिमा का समापन - 5 जुलाई को सुबह 10 बजकर 13 मिनट तक
गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन महाभारत के रचयिता महर्षि वेद व्यास जी का अवतरण हुआ था। सनातन संस्कृति के अठारह पुराणों के रचयिता महर्षि वेदव्यास को माना जाता है। उन्होंने ने ही वेदों की रचना कर उनको अठारह भागों में विभक्त किया था। इसी कारण उनका नाम वेद व्यास पड़ा था। महर्षि वेद व्यास को आदि गुरु भी कहा जाता है।
कल गुरु पूर्णिमा है और कल ही चंद्रग्रहण भी लग रहा है। इसलिए इस बात का खास ख्याल रखें कि समय रहते पूजा विधान को संपन्न कर लें।
कल गुरु पूर्णिमा है। गुरु पूर्णिमा की पूजा घर पर भी की जाती है। इसके लिए सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाएं और नित्यकर्म से निवृत्त होकर पूजा की तैयारी करें। यदि गुरु ब्रह्मलीन हो गए हैं तो उनका चित्र एक पाट पर सफेद कपड़ा बिछाकर स्थापित करें। गुरु की कुमकुम, अबीर, गुलाल आदि से पूजन करें। मिठाई, ऋतुफल, सूखे मेवे, पंचामृत का भोग लगाएं। सुगंधित फूलों की माला समर्पित करें। इसके बाद आरती उतारकर गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करें।
इस दिन भक्त अपने गुरु के सम्मान में कार्यक्रमों का आयोजन करेंगे और उनको श्रद्धासुमन अर्पित करेंगे। इस दिन बड़ी संख्या में लोग गुरु से दीक्षा भी ग्रहण करते हैं। गुरु की कृपा से ज्ञान प्राप्त होता है और उनके आशीर्वाद से सभी सुख-सुविधाओं, बुद्धिबल और एश्वर्य की प्राप्ति होती है।