सिखों के तीसरे गुरु अमरदास ने सिखों के प्रथम गुरु गुरुनानक देव द्वारा शुरू की गई लंगर सेवा को और अधिक विस्तृत रूप दिया था। सिख पंथ में लंगर प्रथा का विशेष महत्त्व है। लंगर सेवा को सामाजिक, जातिगत, ऊंच-नीच और भेदभाव को दूर करने के लिए गुरुनानक देव ने शुरू किया था। बाद में गुरु अमरदास ने इस सेवा का दायरा और बढ़ाया। उन्होंने तो यहां तक कहा है कि लंगर चखे बिना तो ईश्वर तक नहीं पहुंच सकते है। दरअसल, लंगर सेवा सामाजिक समरसता की प्रतीक है।
गुरुनानक देव द्वारा प्रतिपादित लंगर सेवा के इस भाव को जहां सिखों के तीसरे गुरु अमर दास ने और अधिक आगे बढ़ाते हुए व्यापक जन आंदोलन का रूप दिया। उसके बाद सिखों के अन्य छह गुरुओं ने लंगर प्रथा को जारी रखा और उस के माध्यम से जन जागरण अभियान चलाया। कहते हैं कि बादशाह अकबर सिखों के गुरुद्वारों में चल रही लंगर प्रथा से इतने अधिक प्रभावित थे कि एक दफा वे खुद लंगर चखने गुरुद्वारे पहुंच गए और उन्होंने श्रद्धालुओं के बीच में बैठकर लंगर चखा।
हरिद्वार के कनखल में गंगा तट पर स्थित तीजी पातशाही गुरु अमरदास तप स्थान के महंत रंजय सिंह का कहना है कि गुरु अमरदास ने जहां लंगर प्रथा को जनांदोलन प्रदान कर सामाजिक समरसता का संदेश दिया, वहीं उन्होंने सती प्रथा और पर्दा प्रथा के खिलाफ जबरदस्त जनांदोलन शुरू किया। वे हरिद्वार के सतीघाट में सती प्रथा को समाप्त करने के लिए पंजाब से पैदल चलकर 21 बार गृहस्थ के रूप में और एक बार गुरु के रूप में हरिद्वार आए थे और उन्होंने सती प्रथा को बंद करवाया था।
साथ ही हिंदू तीर्थों पर मुगल काल में लगने वाले जजिया कर को भी समाप्त करवाया। सतीघाट में गंगा के तट पर उन्होंने लंबे समय तक गंगा जी की साधना की और आज उनके साधना स्थल पर तीजी पातशाही तपस्थान गुरुद्वारा गुरु अमरदास स्थित है, जिसका हाल-फिलहाल तपस्थान के महंत रंजय सिंह और संचालिका विन्निन्दर कौर सौढ़ी ने सौंदर्यीकरण और जीर्णोद्धार करवाया।
इस स्थान पर मंजी साहिब स्थित है, जहां पर बैठकर गुरु अमरदास ने गंगा जी की साधना और तप किया था। इस मंजी साहिब में 22 गुंबद है, जो गुरु अमरदास के सतीघाट कनखल में 22 बार आगमन के प्रतीक के रूप में बनाए गए हैं। गुरु अमरदास के कनखल सतीघाट स्थित तपस्थान की खोज सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने शिष्य बाबा दरगाह सिंह से करवाई और उन्होंने गुरु अमरदास के इस तपस्थान को खोज निकाला और यहां पर अपना डेरा जमाया और इस तपस्थान का सबसे पहले जीर्णोद्धार किया। इसलिए इस स्थान को डेरा बाबा दरगाह सिंह तीजी पातशाही तपस्थान कहा जाता है। यह स्थान हिंदू और सिखों की एकता का प्रतीक है। यहां हर साल गुरु अमरदास के प्रकाश पर्व पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब का अखंड पाठ होता है।
इसकी समाप्ति पर अरदास की जाती है तथा व्यापक स्तर पर लंगर का आयोजन किया जाता है। इस साल 4 मई को गुरु अमरदास का प्रकाश पर्व मनाया जाएगा। जिसकी जबरदस्त तैयारियां की जा रही है।आज देश-विदेश के हर गुरुद्वारे में लंगर लगा कर जन सेवा की जाती है, जिसमें लोग अपनी इच्छा से निस्वार्थ भाव से सेवा करते हैं। श्रद्धा विश्वास और आस्था की वजह से लोग गुरुद्वारे जाते हैं और गुरुद्वारे में जाकर लंगर चखना नहीं भूलते हैं और बड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ जमीन में बैठकर लंगर का प्रसाद ग्रहण करते हैं।
लंगर सेवा श्रद्धालुओं की आस्था को और अधिक बलवती करती है। गुरुनानक देव कहते थे कि सच्चा लाभ तो मनुष्य को सेवा करने से ही मिलता है और सेवा का सबसे सशक्त माध्यम अन्न दान है और वह लंगर प्रथा को शुरू करके ही किया जा सकता है।गुरु अमरदास को 73 साल की आयु में गुरु गद्दी प्राप्त हुई और वे 95 साल की उम्र तक इस पर विराजमान रहे, यानी 22 वर्षों तक उन्होंने गुरु गद्दी संभाली और धर्म प्रचार किया। गुरु अमरदास जी ने अपने भक्तों को गुरु सेवा का वास्तविक अर्थ समझाया और आध्यात्मिक खोज के साथ-साथ जीवन में नैतिकता अपनाने पर अधिक से अधिक जोर दिया।
गुरु अमरदास एक समाज सुधारक भी थे। उन्होंने अपने भक्तों को अच्छा भक्त बनने के लिए प्रेरित किया और धर्मात्मा पुरुषों की संगति करने, भगवान की पूजा करने, ईमानदारी से जीवन व्यतीत करने, सद्पुरुषों की सेवा करने, दूसरों के धन का लालच नहीं करने के लिए प्रेरित किया।