Gudi Padwa 2025: गुड़ी पड़वा हिंदू नववर्ष की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। इस पर्व को विशेष रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है और इस साल गुड़ी पड़वा 30 मार्च 2025, रविवार को मनाया जाएगा। इस दिन से ही चैत्र नवरात्रि की भी शुरुआत हो रही है, इसलिए यह दिन बहुत शुभ माना जा रहा है। इस दिन घरों में गुड़ी (विजय ध्वज) फहराने की परंपरा है। मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है और नकारात्मकता दूर होती है। ऐसे में आइए जानते हैं गुड़ी पड़वा से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में।
गुड़ी पड़वा का महत्व
गुड़ी पड़वा सिर्फ नए साल की शुरुआत का प्रतीक नहीं, बल्कि यह दिन कई ऐतिहासिक और धार्मिक घटनाओं से जुड़ा हुआ है। गुड़ी पड़वा को उगादि के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, ब्रह्मा जी ने इसी दिन सृष्टि की रचना की थी। इसलिए इस दिन भगवान ब्रह्मा और विष्णु की विशेष पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन ब्रह्मा जी और विष्णु जी की पूजा करने से जातकों को विशेष लाभ मिलता है और जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं।
गुड़ी पड़वा की पौराणिक कथा
गुड़ी पड़वा से जुड़ी एक बहुत प्रसिद्ध कथा रामायण काल से जुड़ी हुई है। पौराणिक कथा के अनुसार त्रेतायुग में किष्किंधा नामक राज्य पर बाली नामक राजा का शासन था, जो अपने भाई सुग्रीव को परेशान करता था। जब भगवान श्रीराम माता सीता को रावण के चंगुल से छुड़ाने जा रहे थे, तब उनकी मुलाकात सुग्रीव से हुई। सुग्रीव ने श्रीराम को अपने कष्ट बताए और मदद मांगी। श्रीराम ने बाली का वध कर सुग्रीव को न्याय दिलाया और उसका खोया हुआ राज्य वापस लौटाया। यह घटना चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को हुई थी, इसलिए इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। बता दें कि इस दिन से ही हिंदू नववर्ष की शुरुआत भी होती है।
कैसे मनाया जाता है गुड़ी पड़वा?
गुड़ी पड़वा के दिन लोग अपने घरों की साफ-सफाई कर उसे सजाते हैं। दरवाजों पर आम और अशोक के पत्तों का तोरण बांधते हैं और रंगोली बनाई जाती है। घर के आंगन में एक लंबा बांस लगाया जाता है, जिसके ऊपर पीले या लाल रंग का रेशमी कपड़ा बांधकर गुड़ी तैयार की जाती है। इस पर नीम की पत्तियां, फूल और एक उल्टा रखा हुआ कलश भी लगाया जाता है। इसे विजय ध्वज माना जाता है और घरों के आगे ऊंचाई पर लगाया जाता है।
इस दिन भगवान ब्रह्मा, विष्णु और दुर्गा माता की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन लोग सुंदरकांड, रामरक्षा स्रोत और देवी भगवती के मंत्रों का जाप करते हैं। इसके अलावा सूर्यदेव की आराधना भी इस दिन महत्वपूर्ण मानी जाती है। गुड़ी पड़वा के दिन नीम की कोपल को गुड़ और काली मिर्च के साथ खाने की परंपरा भी है। ऐसा करने से शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है और स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
पारंपरिक भोजन और व्यंजन
गुड़ी पड़वा पर कई तरह के पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं। महाराष्ट्र में इस दिन पूरन पोली, श्रीखंड और मीठे चावल (शक्कर-भात) बनाए जाते हैं। दक्षिण भारत में उगादि पचड़ी बनाई जाती है, जिसमें मीठा, खट्टा, तीखा और कड़वा स्वाद होता है।
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