Govardhan Puja 2020 Date, Puja Vidhi, Muhurat Timings: दिवाली के पंच पर्वों में गोवर्धन पूजा का स्थान चौथा है। दिवाली के अगले दिन यानी कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन गोवर्धन पूजा के रूप में मनाया जाता है। कई स्थानों पर गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है। भारत के उत्तरी राज्यों में इस त्योहार को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक इस साल गोवर्धन पूजा 15 नवंबर, रविवार के दिन मनाई जाएगी।

गोवर्धन पूजा का इतिहास (History of Govardhan Puja)
बताया जाता है कि जब भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप में धरती पर अवतार लिया था उस समय वह उत्तर प्रदेश के वृंदावन नामक स्थान पर लीलाएं किया करते थे। श्री कृष्ण की विभिन्न लीलाओं में से एक लीला गोवर्धन पर्वत की भी है। बताया जाता है कि सभी बृजवासी वर्षा और हरी-भरी फसल के लिए इंद्र देव की पूजा किया करते थे।

जब भगवान श्री कृष्ण ने सभी बृजवासियों को इंद्र देव की आराधना करते देखा और साथ ही यह भी देखा कि इंद्र अपने अभिमान में चूर रहे थे तो उन्होंने ब्रजवासियों को यह समझाया कि उन्हें इंद्र देव की नहीं बल्कि गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के पीछे भगवान श्री कृष्ण ने यह तर्क दिया कि यह समस्त बृजवासियों के रक्षक के रूप में यहां विराजमान हैं तो इन्हीं की पूजा करनी चाहिए।

सभी बृजवासियों को भगवान श्री कृष्ण की यह बात बहुत पसंद आई और उन्होंने गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का निश्चय किया। ऐसी मान्यता है कि जब सभी बृजवासी गोवर्धन पर्वत की पूजा कर रहे थे उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं गोवर्धन पर्वत में उपस्थित हो गए थे। बताया जाता है कि इंद्र देव को यह देखकर बहुत गुस्सा आया और उन्होंने क्रोधवश बृज चौरासी कोस में सात दिनों तक खूब वर्षा की।

इस भारी वर्षा से बृजवासियों को बचाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को 7 दिनों तक अपनी सबसे छोटी उंगली यानी कनिष्ठा पर उठाकर रखा। माना जाता है कि तब से ही हर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पर्वत का त्योहार मनाया जा रहा है। कहते हैं कि गोवर्धन पूजा के दिन भगवान श्रीकृष्ण की उपासना करने से भक्ति में वृद्धि होती है और भगवान श्री कृष्ण के प्रति प्रेम बढ़ता है।