Govardhan Darshan: भगवान कृष्ण की नगरी वृंदावन और मथुरा हर किसी के जाना का एक सपना होता है। राधा-कृष्ण में रम जाना और उनकी लीलाओं का आनंद लेना हर किसी की चाहत होती है। आज के समय में मथुरा-वृंदावन जाना काफी आसान हो गया है। वीकेंड आता नहीं है कि घर कोई बांके बिहारी और राधा रानी के दर्शन करने के लिए निकल जाते हैं। वृंदावन, मथुरा से लेकर बरासान तक कई मंदिर है। इसके अलावा इनसे कुछ दूसरी पर गोवर्धन पर्वत भी है जिसे गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है।
मान्यता है कि इन जगहों पर आए और गिरिराज पर्वत की परिक्रमा नहीं की, तो आपकी ये तीर्थ यात्रा अधूरी हो सकती है। इसे श्री कृष्ण को अति प्यारा है और इस पर्वत को पर्वतों का राजा भी कहा जाता है। बता दें कि मथुरा से 21 किलोमीटर और वृंदावन से 23 किमी की दूरी में गोवर्धन पर्वत स्थित है। हर साल यहां पर सैकड़ों लोग सात कोस यानी करीब 21 किलोमीटर की परिक्रमा करने आते हैं। यह परिक्रमा बड़ी और छोटी परिक्रमा में बंटी है। जिसनमें से बड़ी 11 किमी और छोटी 10 किमी की है। अगर आप भी गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा या दर्शन करने जा रहे हैं, तो एक गलती बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। इससे श्री कृष्ण के साथ-साथ राधा रानी भी रुष्ट हो सकती है।
दरअसल, कई साधकों की आदत होती है कि राधा और कृष्ण की कृपा पाने के लिए वहां से शिला या फिर छोटा सा टुकड़ा घर ले आते हैं। क्या वास्तव में ऐसा करना शुभ माना जाता है। आइए जानते हैं…
गिरिराज पर्वत को क्यों माना जाता है शुभ?
गर्ग संहिता में श्री गिरिराज खण्ड के अन्तर्गत श्री नारद बहुलाश्व-संवाद में ‘श्रीगिरिराजके तीर्थों का वर्णन’ के सातवें अध्याय में गिरिराज पर्वत के महत्व के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसे सभी तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इस पर्वत को कान्हा का मुकुट कहा जाता है। इसके साथ ही इसे पूरे ब्रह्न का छत्र माना जाता है, क्योंकि भगवान कृष्ण में इस पर्वत को ही अपनी अंगुली में उठाकर पूरे वृंदावन की रक्षा की थी। इतना ही नहीं इस खूबसूरत पर्वत में भगवान कृष्ण गोपियों के साथ खेला करते थे। इसलिए कहा जाता है कि मात्र गोवर्धन पर्वत के दर्शन करने मात्र से देव शिरोमणि हो जाता है।
गर्गसंहिता के गिरिराज खंड के पहले अध्याय में लिखा है-
अहो गोवर्धन साक्षात गिरिराजो हरिप्रियः।
तत्समांनं न तर्थहि विधते भूतलेदिवि।।
अर्थ– गोवर्धन पर्वतों का राजा और कृष्ण का प्यारा है। इसके समान पृथ्वी और स्वर्ग में कोई दूसरा तीर्थ नहीं है।
क्या गोवर्धन पर्वत के अंश हो घर लेना जाना चाहिए?
गर्ग संहिता के गिरिराज खंड में गिरिराज की उत्पत्ति के बारे में विस्तार से बताया गया है। कहा जाता है कि राधा रानी और श्री कृष्ण जब गोलोक में थे, तो राधा जी ने कान्हा से कहा कि उन्हें कोई ऐसा स्थान यहां पर चाहिए जहां पर खूबसूरत के साथ शांति-सुकून हो और हम वहां आसानी से रास लीला कर सके। तब भगवान कृष्ण ने अपने हृदय से एक प्रकाश का पुंज प्रकट किया, जो गोवर्धन पर्वत बना। जो बहुत ही मनमोहक था। इसके बाद जब श्री कृष्ण धरती आने लगे, तो राधा ने उनसे कहा कि मैं गोवर्धन पर्वत और वृंदावन के बगैर नहीं रह सकती हूं। ऐसे में कान्हा ने 84 कोस में फैले बृज मंडल को धरती पर भेजा और गोवर्धन ने शाल्मल द्वीप में द्रोणाचल गिरी के यहां जन्म लिया था। इसके साथ ही गिरिराज पर्व श्री कृष्ण को अति प्रिय है।
इसी के कारण कहा जाता है कि कभी भी गिरिराज को 84 कोसों से बाहर नहीं लाना चाहिए। अगर आप लाते हैं, तो व्यक्ति के जीवन में कई तरह की परेशानियां आने लगती है।
अगर गिरिराज को ले जा रहे हैं, तो करें ये काम
श्री कृष्ण में स्वयं इस बारे में कहा है कि अगर आप गिरिराज को पूजा करना चाहते हैं, तो अपने घर में गोबर के गोवर्धन बनाकर करिएं। इसके अलावा अगर आप शिला लेकर जा रहे हैं, तो उसी के बराबर आपको सोना चढ़ाना चाहिए, वरना आपको भयंकर नर्क भोगना पड़ सकता है।
गिरिराज पर्वत को क्यों माना जाता है शुभ?
गर्ग संहिता में श्री गिरिराज खण्ड के अन्तर्गत श्री नारद बहुलाश्व-संवाद में ‘श्रीगिरिराजके तीर्थों का वर्णन’ के सातवें अध्याय में गिरिराज पर्वत के महत्व के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसे सभी तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इस पर्वत को कान्हा का मुकुट कहा जाता है। इसके साथ ही इसे पूरे ब्रह्म का छत्र माना जाता है, क्योंकि भगवान कृष्ण में इस पर्वत को ही अपनी अंगुली में उठाकर पूरे वृंदावन की रक्षा की थी। इतना ही नहीं इस खूबसूरत पर्वत में भगवान कृष्ण गोपियों के साथ खेला करते थे। इसलिए कहा जाता है कि मात्र गोवर्धन पर्वत के दर्शन करने मात्र से देव शिरोमणि हो जाता है।
क्या गोवर्धन पर्वत के अंश हो घर लेना जाना चाहिए?
गर्ग संहिता के गिरिराज खंड में गिरिराज की उत्पत्ति के बारे में विस्तार से बताया गया है। कहा जाता है कि राधा रानी और श्री कृष्ण जब गोलेक में थे, तो राधा जी ने कान्हा से कहा कि उन्हें कोई ऐसा स्थान यहां पर चाहिए जहां पर खूबसूरत के साथ शांति-सुकून हो और हम वहां आसानी से रास लीला कर सके।