Gotra Kya Hota Hai: आपने भी नोटिस किया होगा कि पूजा-पाठ या शादी-ब्याह से पहले पंडित जी एक सवाल जरूर पूछते हैं कि ‘आपका गोत्र क्या है?’ या फिर ‘अपने गोत्र का नाम लीजिए।’ ऐसे में कई लोग अपने गोत्र का नाम बड़े ही गर्व से बताते हैं, तो कुछ अपने घर के बड़े-बुजुर्गों से पूछते हैं। लेकिन क्या आपने सोचा है कि गोत्र आखिर होता क्या है और इसका इतना महत्व क्यों है? खासकर, शादी से पहले गोत्र मिलान क्यों किया जाता है? अगर नहीं, तो आइए जानते हैं गोत्र क्या होता है और हिन्दू धर्म में यह इतना महत्व क्यों रखता है।

गोत्र का मतलब क्या है?

सनातन धर्म में गोत्र का विशेष महत्व होता है। इसका संबंध हमारे पूर्वजों से होता है। यह हमें बताता है कि हम किस ऋषि के वंशज हैं। हिंदू धर्म में मान्यता है कि हजारों साल पहले कुछ महान ऋषि-मुनि थे, जिनसे अलग-अलग परिवारों की पीढ़ियां आगे बढ़ीं। इन्हीं ऋषियों के नाम पर अलग-अलग गोत्र बने। गोत्र दो शब्दों से बना है – ‘गो’ और ‘त्र।’ ‘गो” का मतलब होता है इंद्रियां यानी हमारे शरीर की शक्तियां और ‘त्र’ का मतलब होता है रक्षा करना। इस तरह, गोत्र का मतलब हुआ जो हमारी इंद्रियों और आत्मा की रक्षा करे। यह सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि हमारी पहचान और परंपरा से जुड़ा हुआ होता है।

हिंदू धर्म में कितने गोत्र होते हैं?

धर्म ग्रंथों के अनुसार, पहले केवल 4 गोत्र थे, जो 4 ऋषियों से जुड़े थे। ये ऋषि थे – अंगिरा गोत्र, कश्यप गोत्र, वशिष्ठ गोत्र और भगु गोत्र। फिर बाद में चार और ऋषियों के नाम इसमें जुड़े – जमदग्नि गोत्र, अत्रि गोत्र, विश्वामित्र गोत्र और अगस्त्य गोत्र। आज हिंदू समाज में इन्हीं गोत्रों से जुड़े सैकड़ों छोटे गोत्र भी माने जाते हैं।

अगर किसी को अपना गोत्र न पता हो तो क्या करें?

बहुत से लोग अपने गोत्र के बारे में नहीं जानते हैं। ऐसे में शास्त्रों के अनुसार, उन्हें ‘कश्यप गोत्र’ मान लेना चाहिए। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि महर्षि कश्यप के बहुत से वंशज थे और उनकी पीढ़ियां पूरे समाज में फैली हुई थीं। इसलिए, अगर किसी को अपना गोत्र न पता हो, तो वह कश्यप गोत्र मान सकता है।

शादी से पहले गोत्र मिलान क्यों किया जाता है?

हिंदू धर्म में जब किसी लड़के और लड़की की शादी तय होती है, तो सबसे पहले उनका गोत्र पूछा जाता है। अगर लड़का और लड़की का गोत्र एक ही होता है, तो आमतौर पर उनकी शादी नहीं कराई जाती। दरअसल, इसके पीछे वैज्ञानिक और धार्मिक दोनों कारण हैं। अगर दो लोग एक ही गोत्र के हैं, तो इसका मतलब है कि वे एक ही पूर्वज के वंशज हैं। ऐसे में उनके बीच खून का रिश्ता होता है, और एक ही गोत्र में शादी करने से बच्चों में आनुवंशिक बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। इसके अलावा पुराने समय से ही यह नियम चला आ रहा है कि एक ही गोत्र में शादी नहीं करनी चाहिए, ताकि परिवारों में रिश्तों की पवित्रता बनी रहे। इसलिए सनातन धर्म में सगोत्रीय विवाह वर्जित है।

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