Gopal Ashtakam Lyrics in Hindi: वैदिक ज्योतिष अनुसार वर और वधू की कुंडली में कुछ ऐसे अशुभ योग और ग्रह होते हैं, जिनके कारक संतान होने में दिक्कत होती है। साथ ही काफी प्रयास के बाद भी संतान की प्राप्ति नहीं होती है। ज्योतिष में संतान प्राप्ति के लिए पंचम भाव का विश्लेषण किया जाता है। इसलिए अगर अगर वर- वधू की कुंडली के पंचम भाव पर राहु या कोई अन्य अशुभ ग्रह स्थित है तो संतान होने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। साथ ही अगर लड़की की कुंडली के पंचम भाव में राहु या मंगल ग्रह स्थित हो तो गर्भपात होने प्रबल चांस रहते हैं। साथ ही अगर लड़के की कुंडली में शुक्र ग्रह नीच के या अशुभ स्थित हैं तो लड़के अंदर कोई गुप्त रोग हो सकता है। वहीं पंचम भाव में अंगारक, गुरु चांडाल योग हो तो भी संतान होने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
वहीं ज्योतिष में संतान के लिए कई उपायों का वर्णन मिलता है। यहां हम आपके ऐसे स्त्रोत के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके नित्य पाठ करने से संतान के योग बनते हैं। इस स्त्रोत का नाम है श्रीगोपालाष्टक स्त्रोत, यह स्त्रोत भगवान कृष्ण को समर्पित है। इसका पाठ संतान प्राप्ति के लिए कर सकते हैं। साथ ही गर्भवती महिलाएं भी इसका पाठ कर सकती हैं। आइए जानते हैं इस स्त्रोत के बारे में…
श्रीगोपालाष्टक (Gopal Ashtakam Lyrics in Hindi)
भज श्रीगोपालं दीनदयालं, वचनरसालं तापहरम् ।
विहरत स्वच्छन्दं आनन्दकन्दं, श्रीव्रजचन्दं ब्रह्मपरम ।।
पूरणशशिवदनं, शोभासदनं, जित-छबिमदनं रूपवरम् ।
हलधरवरवीरं श्यामशरीरं, गुणगम्भीरं धीरधरम् ।।
राजत बनमाला, रूपविशाला, चाल मराला सुरतहरम् ।
कुण्डलधृतकरणं, गिरिवरधरणं, निज-जन शरणं कृपाकरम् ।
गोपिन कृतअंगं, ललित-त्रिभंगं, लज्जित अनंगं निरखि परम्।।
जलधरवरश्यामं, पूरणकामं, अति सुखधामं दुःखहरम्।
वृन्दावन-क्रीड़ित असुरन-पीड़ित, ब्रजतिय-व्रीड़ित रसिकवरम् ।
नूपुरध्वनिचरणं मुनिमनहरणं, तारणं-तरणं तुष्टतरम्।।
राधा-उपहार, रूप-अपारं, नीरविहारं चीरहरम् ।
कुञ्चित वरकेशं मुकुटविशेष, गोपसुवेषं, निगमवरम् ।
कोमल अतिचरणं, वेदविवरणं, जगदुद्धरणं मृदुलतरम् ।।
अकलन-मुखराजत मन्मथलाजत, किंकणीबाजत मधुरस्वरम् ।
वंशीकृतनादं, हरतविषादं, युगवरपादं तिमिरहरम् ।
भक्तन-आधीनं चरित-नवीनं, परम प्रवीनं प्रेम-परम् ।।
अतिनृत्यप्रवीरे धीरसमीरे, यमुनातीरे रासकरम् ।
कलगान अनूपं श्यामस्वरूपं, त्रिभुवनभूपं मोदभरम् ।
राधागुणगायक ब्रजसुखदायक, सुरवरनायक बेणुधरम्।।
सुन्दर मृदुहासं विपिन-विलासं कुञ्जनिवासं केलिकरम् ।
युवतीदृग-अञ्जन जनमनरञ्जन, केशीभञ्जन भारहरम् ।
भूषण निज-भवनं गजगति गमनं, कालियदमनं नृत्यकरम्।।
गोरजमुखशोभित सुरनरलोभित, मन्मथक्षोभित दृश्यपरम्।
गोपनसहभुञ्ज विपिननिकुञ्ज, वत्सनपुञ्ज दुहिणहरम् ।।
यह छवि-तारायण लखि ‘नारायण’ भये परायण अखिल नरम्।
भज श्रीगोपालं दीनदयालं, वचनरसालं तापहरम् ।।