पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार रुद्राक्ष के जन्मदाता स्वयं भगवान शिव को माना जाता है। इसका प्रमाण स्कन्द पुराण, शिव पुराण आदि ग्रन्थों में मिलता है। माना जाता है रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई है और इनको प्राचीन काल से ही आभूषण की तरह पहना गया है। शिव महापुराण ग्रंथ में कुल सौलह प्रकार के रुद्राक्षों का वर्णन मिलता है। जिसमें एक मुखी रुद्राक्ष अत्यंत दुर्लभ माना गया है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं, गौरी- शंकर रुद्राक्ष के बारे में…
आपको बता दें कि प्राकृतिक रूप से जुड़े दो रुद्राक्षों को गौरी शंकर रुद्राक्ष कहा जाता है। यह रूद्राक्ष भगवान शिव एवं माता पार्वती का प्रत्यक्ष स्वरूप है। इसे धारण करने वाले को शिव और शक्ति दोनों की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही यह रुद्राक्ष गृहस्थ सुख की प्राप्ति के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। इसलिए जिन लोगों का दांपत्य जीवन ठीक नहीं चल रहा है, या जिन युवक-युवतियों के विवाह में विलंब हो रहा है उन्हें गौरी शंकर रुद्राक्ष जरूर धारण करना चाहिए। आइए जानते हैं गौरी- शंकर रुद्राक्ष के लाभ…
गौरी- शंकर रुद्राक्ष के लाभ:
-गौरी-शंकर रुद्राक्ष पहनने से पति-पत्नी का रिश्ता बेहतर होता है और प्रेम भी बढ़ता है।
– जिन लोगों को संतान सुख नहीं मिल पा रहा है, वे गौरी-शंकर रुद्राक्ष पहनें तो उनकी यह मनोकामना जल्दी ही पूरी होती है।
– यह रुद्राक्ष नकारात्मकता को दूर करके सकारात्मक ऊर्जा देता है। इससे घर-परिवार में सुख-शांति आती है।
– अभिमंत्रित किया हुआ गौरी-शंकर रुद्राक्ष तिजोरी या पैसे रखने की जगह पर रखा जाए तो कभी आर्थिक तंगी नहीं आती है। साथ ही मां पार्वती और भगवान शिव की कृपा सदा बनी रहती है।
इस विधि से करें धारण:
शिव पुराण के अनुसार गौरी शंकर रुद्राक्ष भगवान शिव और माता पार्वती का प्रतीक माना जाता है। इस रुद्राक्ष को शुक्ल पक्ष में सोमवार, मास शिवरात्रि, रवि पुष्य संयोग और सवार्थ सिद्धि योग में अभिमंत्रित करके धारण करना चाहिए। साथ ही सबसे पहले गौरी शंकर रुद्राक्ष को चांदी की कटोरी में स्थापित करके उसे गंगाजल और कच्चे दूध के मिश्रण से अच्छे से शुद्ध कर लें और साफ कपड़े से पोछ लें। इसके बाद चांदी की कटोरी को खाली करके सुखाकर उसमें पुन: गौरी शंकर रुद्राक्ष स्थापित करें। इस पर चंदन और अक्षत अर्पित करें। इसके बाद अब एक-एक माला ऊं नम: शिवाय, ऊं नम: दुर्गाए और ऊं अर्धनारीश्वराय नम: मंत्र की जपें। तीनों मालाएं पूरी होने के बाद रुद्राक्ष को चांदी की चेन या लाल धागे में डालकर गले में धारण करें। साथ ही इन बातों का ध्यान रखें, कि जब भी आप किसी मुर्दनी में जाएं, तो गौरी- शंकर रुद्राक्ष को मंदिर में रख जाएं। साथ ही लौटकर स्थान करने के बाद धारण कर लें।