आलोक यात्री
धार्मिक मान्यता व आस्था के तहत गणेशजी प्रथम पूज्य इष्ट हैं। वे विनायक भी हैं और विघ्नहर्ता भी। देश के विभिन्न प्रांतों में गणेश उत्सव की परंपरा सदियों पुरानी है। गणेशजी इकलौते ऐसे इष्ट हैं जिनके सर्वाधिक नाम हैं। आज जब हम गणेश चतुर्थी का पर्व मना रहे हैं तो हमें गणेशजी की विशेष आकृति का आकलन भी करना चाहिए और यह सोचना चाहिए कि गणेशजी के संदेशों के अलावा उनकी आकृति हमें क्या संदेश देती है?
पौराणिक काल में भी हमारी चिकित्सा पद्धति उच्च कोटि की थी
गणेशजी अंग प्रत्यारोपण के प्रथम उदाहरणों में से एक हैं। क्रिटिकल केअर विशेषज्ञ अरविंद डोगरा का कहना है कि भारतीय पुराण इस बात का प्रमाण है कि पौराणिक काल में भी हमारी चिकित्सा पद्धति उच्च कोटि की थी। गणेशजी हमें अंग प्रत्यारोपण और अंगदान की प्रेरणा देते हैं। गणेश चतुर्थी के अवसर पर उनके पूजन के साथ-साथ हमें अंगदान की भी शपथ लेनी चाहिए।
दुनिया की पहली शल्य चिकित्सा का श्रेय हिंदू देवताओं को जाता है
विज्ञान की कई ऐसी खोज हैं, जिनकी पद्धतियों के बारे में उल्लेख पहले से ही मौजूद है। इन्हीं में से एक है शल्य चिकित्सा। पुराणों के अनुसार, दुनिया की पहली शल्य चिकित्सा का श्रेय भी हिंदू देवताओं को जाता है। यह जानना रोचक है कि वे कौन-कौन से देवता हैं जिन्होंने शल्य चिकित्सा की थी और सबसे पहले किसकी शल्य चिकित्सा की गई थी?
कथा मिलती है कि माता पार्वती चंदन से गणेश का निर्माण कर स्रान के लिए जाने लगीं तो उन्होंने गणेशजी को आदेश दिया कि वे दरवाजे पर ही रहें और किसी को भी भीतर प्रवेश न करने दें। तभी भगवान शिव वापस लौटे और भीतर प्रवेश करने लगे। गणेशजी ने उन्हें अंदर जाने से मना कर दिया।
उन्होंने कहा कि मां का आदेश है कि कोई भी अंदर प्रवेश न करे। भगवान शिव ने बहुत प्रयास किया, लेकिन गणेशजी नहीं माने। भगवान शिव ने क्रोधित होकर गणेशजी का सिर धड़ से अलग कर दिया। यह दृश्य देखते ही मां पार्वती अत्यंत क्रोधित हो गईं और संपूर्ण सृष्टि का विनाश करने निकल पड़ीं। उनका कोप देख कर भगवान ब्रह्मा ने उनसे क्रोध शांत करने का निवेदन किया। तब माता ने उन्हें गणेशजी को पुर्नजीवित करने और देवताओं में उनके प्रथम पूजन की बात रखी।
इस बात को स्वीकारते हुए ब्रह्मदेव ने भगवान शिव से कहा कि इस सृष्टि में जो भी पहला ऐसा जीव दिखे जो उत्तर दिशा की तरफ सिर करके बैठा हो वह उसका सिर लेकर आएं और गणेशजी को वही सिर प्रत्यारोपित कर दिया जाएगा। इसी खोज में निकले शिव जी को संपूर्ण सृष्टि में केवल एक हाथी ही ऐसा दिखा जो कि ब्रह्मदेव के अनुसार उत्तर दिशा में सिर करके बैठा था। इसके बाद हाथी के सिर को गणेश जी के धड़ पर प्रत्यारोपित कर दिया गया।