Ganesh Chaturthi 2020 Date, Puja Vidhi, Muhurat, Timings: गणेश चतुर्थी 2020 (Ganesh Chaturthi 2020) भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। इस साल गणेश चतुर्थी 22 अगस्त यानी शनिवार को मनाई जाएगी। यह दिन भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन लोग अपने घरों या मोहल्लों में गणेश जी की प्रतिमा लेकर आते हैं। निश्चित दिनों के लिए उनकी सेवा कर कुछ दिन बाद उनका विसर्जन करते हैं। 10 दिन तक चलने वाला यह गणेशोत्सव 1 सितंबर को पूर्ण होगा। जो लोग 10 दिन तक भगवान गणेश की उपासना करने में अक्षम है वह 1 दिन, 3 दिन, 5 दिन या 7 दिन के लिए भी भगवान गणेश को स्थापित कर सकते हैं।
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गणेश चतुर्थी का इतिहास (Ganesh Chaturthi History/ Why Ganesh Chaturthi is celebrated): पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक एक दिन भगवान शिव भोगवती नामक स्थान पर गए। देवी पार्वती कैलाश पर अकेली थीं। उस समय उनके मन में संतान की इच्छा उत्पन्न हुई। उन्होंने अपने शरीर का मैल एकत्र किया। उस मैल से एक बालक का शरीर बना कर उसकी प्राण प्रतिष्ठा की। देवी ने उस बालक को कहा कि आज से तुम मेरे पुत्र हो। अब मैं स्नान के लिए अंदर गुफा में जा रही हूं। तुम किसी भी पुरुष को भीतर ना आने देना।
देवी पार्वती की आज्ञा मानकर गणेश गुफा के बाहर पहरा देने लगे। तभी भगवान शिव भोगवती से लौटकर कैलाश आए। जब भगवान शिव ने गुफा के भीतर जाना चाहा तो गणेश ने उनका रास्ता रोका। देवी पार्वती से मिलने से रोकने के कारण भगवान शिव गणेश पर क्रोधित हो गए। गणेश से कहा कि मुझे भीतर जाने दो वरना मैं तुम्हारा शीश तुम्हारे शरीर से अलग कर दूंगा। इसके बावजूद गणेश जी भगवान शिव का रास्ता रोक कर खड़े रहे।
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भगवान शिव ने इससे क्रोधित हो अपने त्रिशूल से गणेश जी का शीश उनके शरीर से अलग कर दिया। देवी पार्वती को जब इस घटना की सूचना मिली तो वह रोती हुई भगवान शिव के पास आईं और बोली – हे भगवन, आपकी अनुपस्थिति में मैंने अपने मैल से एक बालक की रचना की थी। आपने उसका शीश क्यों काट दिया।
भगवान शिव को जब यह पता चला तो उन्होंने अपने गणों को आज्ञा दी कि जो भी माता अपने बालक की ओर पीठ कर सो रही हो। उसके बालक का शीश ले आओ। जंगल में एक हथिनी अपने बच्चे की ओर पीठ कर सो रही थी। भगवान शिव के गण हाथी का शीश लेकर कैलाश पहुंच गए। तब हाथी का शीश लगाकर भगवान शिव ने गणेश चतुर्थी जी को जीवित किया। तब से ही भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है।
गणेश चतुर्थी का महत्व (Ganesh Chaturthi Ka Mahatva/ Ganesh Chaturthi importance): भगवान गजानन सभी जीवों पर दया करते हैं। मान्यता है कि जो भी व्यक्ति गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश को अपने घर या मोहल्ले में विराजमान कर उनकी उपासना करता है, भगवान गणेश उनके जीवन से सभी दुखों और कष्टों को हर लेते हैं। गणेश जी को विघ्नहर्ता माना गया है। वह देवताओं में प्रथम पूजनीय हैं। कहते हैं जो भी व्यक्ति भगवान गणेश का पूजन करता है उसके जीवन में शुभता का वास होने लगता है।
ऐसे व्यक्ति के घर परिवार में कभी दरिद्रता नहीं आती है। गणेश जी की कृपा से उनकी आराधना करने वाले घरों में सदा मांगलिकता रहती है। किसी भी प्रकार का दुख, परेशानी, असफलता और कठिन परिस्थितियां ऐसे परिवार में नहीं आती हैं, जो गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का पूजन करते हैं।


महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश समेत पूरे देश में गणपति का ये पर्व पूरे धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग घरों में संकटहर्ता श्री गणेश को स्थापित करते हैं। वहीं, अनंत चतुर्दशी यानी कि दस दिनों के बाद हर्षोल्लास से उन्हें विदा किया जाता है। कहा जाता है कि विघ्नहर्ता भगवान गणेश का पूजन करने से जीवन में शुभता और सफलता का आगमन होता है।
महाराष्ट्र के मुंबई-गोवा मार्ग पर पाली गांव स्थित गणपति का यह पावन धाम. इस मंदिर का नाम गणपति के अनन्य भक्त बल्लाल के नाम पर रखा गया है. इस मंदिर की पावनता को इस तरह से समझा जा सकता है कि पेशवाकाल में यहां की सौगंध देकर न्याय किया जाता था. यहां पर बाईं सूड़ वाले गणपति विराजमान हैं.
गणेशजी को लाल रंग अर्पित करने से लाभ मिलता है। क्योंकि लाल रंग गणेश जी का पसंदीदा रंग है। लाल और सिंदूरी गणेश जी के प्रिय रंग हैं। मान्यता है कि गणेश जी को लाल फूल अर्पित करने से वह प्रसन्न हो जाते हैं।
गणेश चतुर्थी के दिन लोग अपने घरों या मोहल्लों में गणेश जी की प्रतिमा लेकर आते हैं। निश्चित दिनों के लिए उनकी सेवा कर कुछ दिन बाद उनका विसर्जन करते हैं। 10 दिन तक चलने वाला यह गणेशोत्सव 1 सितंबर को पूर्ण होगा। जो लोग 10 दिन तक भगवान गणेश की उपासना करने में अक्षम है वह 1 दिन, 3 दिन, 5 दिन या 7 दिन के लिए भी भगवान गणेश को स्थापित कर सकते हैं।
गणेश चतुर्थी के दिन गणेशोत्सव में भगवान गणेशजी की 10 दिन के लिए स्थापना करके उनकी पूजा अर्चना की जाती है. शास्त्रों के अनुसार, श्रीगणेश की प्रतिमा की 1, 2, 3, 5, 7, 10 आदि दिनों तक पूजा करने के बाद उसका विसर्जन करते हैं. कहा जाता है कि गणेश जी को घर पर स्थापित करने के बाद से विसर्जन करने तक उनका पूरा ख्याल रखा जाता है और उन्हें अकेला भी नहीं छोड़ा जाता.
गणेश चतर्थी के दिन चंद्रदर्शन को वर्जित माना गया है। वर्जित चंद्रदर्शन का समय 8 बजकर 47 मिनट से रात 9 बजकर 22 मिनट तक रहेगा। तो इस समय चंद्रदर्शन ना करें।
कोविड-19 संकट के बीच इस गणेश उत्सव में श्रद्धालुओं और पंडालों के लिए तकनीक का बड़ा सहारा है और सभी गणेश मंडल शनिवार से शुरू हुए दस दिवसीय उत्सव में गणपति के ऑनलाइन दर्शन करा रहे हैं। कोरोना वायरस के कारण आवाजाही और सामाजिक मेलजोल पर पाबंदियों के बीच कई लोग विभिन्न ऐप के माध्यम से अपने परिजनों तथा मित्रों से संपर्क कर रहे हैं। गणेश उत्सव के पहले दिन कई लोगों ने और विशेष रूप से शहर के प्रतिष्ठित गणेश पंडालों ने सोशल मीडिया पर ऑनलाइन आरती और दर्शन के लिए निमंत्रण भेजे हैं।
आरती करके 'गणेश्वरगणाध्यक्ष गौरीपुत्र गजानन। व्रतं संपूर्णता यातु त्वत्प्रसादादिभानन।।' श्लोक का उच्चारण करते हुए प्रार्थना करें।
महाराष्ट्र के मुंबई-गोवा मार्ग पर पाली गांव स्थित गणपति का यह पावन धाम. इस मंदिर का नाम गणपति के अनन्य भक्त बल्लाल के नाम पर रखा गया है. इस मंदिर की पावनता को इस तरह से समझा जा सकता है कि पेशवाकाल में यहां की सौगंध देकर न्याय किया जाता था. यहां पर बाईं सूड़ वाले गणपति विराजमान हैं.
गणेशजी को लाल रंग अर्पित करने से लाभ मिलता है। क्योंकि लाल रंग गणेश जी का पसंदीदा रंग है। लाल और सिंदूरी गणेश जी के प्रिय रंग हैं। मान्यता है कि गणेश जी को लाल फूल अर्पित करने से वह प्रसन्न हो जाते हैं।
विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा करें और उन्हें दुर्वा अर्पित करें। भगवान गणेश को दुर्वा अतिप्रिय होता है। आप नित्य भी गणेश भगवान को दुर्वा अर्पित कर सकते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दुर्वा अर्पित करने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं और सभी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं।
भगवान गणेश की मूर्ति के पास अगर अंधेरा हो तो ऐसे में उनके दर्शन नहीं करने चाहिए. अंधेरे में भगवान की मूर्ति के दर्शन करना अशुभ माना जाता है.
हिंदू धर्म के अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए. यदि आप भूलवश चंद्रमा का दर्शन कर भी लें तो जमीन से एक पत्थर का टुकड़ा उठाकर पीछे की तरफ फेंक दें
गणेशजी की पूजा सभी देवताओं में सबसे सरल मानी जाती है। गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) के दिन घर-घर में मिट्टी के गणेशजी स्थापित किए जाते हैं। मान्यता है कि हमारा शरीर पंचतत्व से बना है और उसी में विलीन हो जाएगा। इसी मान्यता के आधार पर गणपतिजी को अनंत चौदस के दिन विसर्जित कर दिया जाता है।
मान्यता है कि जिन घरों में बप्पा का स्वागत किया जाता है और 10 तक उनकी पूजा होती है, उन घरों पर बप्पा की विशेष कृपा होती है और उन घरों में कभी संकट नहीं आता। गणेशजी की कृपा से सभी कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण होते हैं। सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
अगर भूल से चांद देख लिया हो तो लोगों को इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए -
सिंह: प्रसेन मण्वधीत्सिंहो जाम्बवता हत:,
सुकुमार मा रोदीस्तव ह्येष:स्यमन्तक:।
गणेश चतुर्थी के दिन लोग अपने घरों या मोहल्लों में गणेश जी की प्रतिमा लेकर आते हैं। निश्चित दिनों के लिए उनकी सेवा कर कुछ दिन बाद उनका विसर्जन करते हैं। 10 दिन तक चलने वाला यह गणेशोत्सव 1 सितंबर को पूर्ण होगा। जो लोग 10 दिन तक भगवान गणेश की उपासना करने में अक्षम है वह 1 दिन, 3 दिन, 5 दिन या 7 दिन के लिए भी भगवान गणेश को स्थापित कर सकते हैं।
पूजा का शुभ मुहर्त पूर्वाह्न 11 बजकर सात मिनट से दोपहर एक बजकर 42 मिनट तकदूसरा शाम चार बजकर 23 मिनट से सात बजकर 22 मिनट तकरात में नौ बजकर 12 मिनट से 11 बजकर 23 मिनट तक है।
भगवान गणेश को मोदक, लड्डू पसंद होते हैं। गणेश जी को मोदक, लड्डू का भोग लगाएं। आप अपनी इच्छानुसार भी भगवान गणेश को भोग लगा सकते हैं। अगर संभव हो तो विनायक चतुर्थी के दिन भोग में कुछ मीठा अवश्य बनाएं। इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक भोजन का ही भोग लगाया जाता है।
इस दिन मांस- मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। विनायक चतुर्थी के दिन सात्विक भोजन का ही सेवन करें।
मान्यता है कि तुलसी ने भगवान गणेश को लम्बोदर और गजमुख कहकर शादी का प्रस्ताव दिया था जिससे कुपित होकर गणेश भगवान ने माता तुलसी को श्राप दे दिया।
भगवान गणेश को पुष्प अर्पित करने चाहिए। ऐसा करने से भगवान गणेश का आशीर्वीद प्राप्त होता है। अगर संभव हो तो गणेश भगवान को लाल पुष्प अर्पित करें।
हिंदू धर्म के अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए. यदि आप भूलवश चंद्रमा का दर्शन कर भी लें तो जमीन से एक पत्थर का टुकड़ा उठाकर पीछे की तरफ फेंक दें.
10 दिन तक चलने वाला यह गणेशोत्सव 1 सितंबर को पूर्ण होगा। जो लोग 10 दिन तक भगवान गणेश की उपासना करने में अक्षम है वह 1 दिन, 3 दिन, 5 दिन या 7 दिन के लिए भी भगवान गणेश को स्थापित कर सकते हैं।
गणेश जी की आराधना करने के लिए उनकी प्रतिमा की स्थापना करें। गणपति बप्पा की प्रतिमा की दस दिन तक रोज सुबह-शाम आरती-पूजन करें और भोग लगाएं। शाम को आरती के बाद प्रतिमा के पास बैठकर गणेश स्तुति करें और भजन गाएं। इससे गणेश भगवान का आशीर्वाद सबको मिलता है।
भगवान गणेश की आराधना करने से सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। वह बहुत दयालु और कृपावान हैं। गणपति की पूजा विधि-विधान से करने के लाल रंग के कपड़े पहनें और उन्हें मोदक चढ़ाएं।
विघ्नहर्ता श्री गणेश की 10 दिनों तक पूजा एवं आरती के बाद परिक्रमा करें और क्षमा मांगें कि पूजा में कोई भी कमी या भूल हुई तो उसके लिए माफ करें।
पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा उत्सव की तरह ही महाराष्ट्र में गणेशोत्सव मनाने की परंपरा है। दुर्गा पूजा और गणेश पूजा पूरे देश में होती है, लेकिन पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में यह विशेष तौर पर की जाती है।
गणेश चतुर्थी के दिन भूलकर भी चंद्रमा के दर्शन न करें। यदि आपने इस दिन चंद्रमा का दर्शन कर लिया तो आप पर कलंक या गलत आरोप लग सकता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, गणेश चतुर्थी को चंद्रमा दर्शन के कारण ही भगवान कृष्ण पर स्यमंतक मणि चोरी करने का मिथ्या आरोप लगा था।
गणेश जी को सभी देवताओं में प्रथम पूजनीय माना गया है। इस दिन गणपति बप्पा को अपने घर में लाकर विराजमान करने से वे अपने भक्तों के सारे विध्न, बाधाएं दूर करते हैं। इसलिए गणेश जी को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। गणेश चतुर्थी को लोग गणेश जी को अपने घर लाते हैं, गणेश चतुर्थी के ग्यारहवें दिन धूमधाम के साथ उन्हें विसर्जित कर दिया जाता है और अगले बरस जल्दी आने की प्रार्थना करते हैं गणपति जी को अपने घर में किसी तरह की कोई कमी नहीं रहती है।
अगर भूल से चांद देख लिया हो तो लोगों को इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए
सिंह: प्रसेन मण्वधीत्सिंहो जाम्बवता हत:,
सुकुमार मा रोदीस्तव ह्येष:स्यमन्तक:।
पुराणों में मोदक का वर्णन मिलता है. मोदक का अर्थ खुशी होता है और भगवान श्रीगणेश हमेशा खुश रहा करते थे. इसी वजह से उन्हें गणेश चतुर्थी पर मोदक का भोग लगाया जाता है. भगवान गणेश को ज्ञान का देवता भी माना जाता है और मोदक को भी ज्ञान का प्रतीक माना जाता है. इस वजह से भी उन्हें मोदक का भोग लगाया जाता है.
भगवान गणेश की स्थापना गणेश चतुर्थी के दिन मध्याह्न में की जाती है. माना जाता है कि गणपति बप्पा का जन्म मध्याह्न काल में हुआ था. हालांकि, इस दिन चंद्रमा देखना भी वर्जित है
पूर्व दिशा गणेश जी को पसंद है. गणेश जी के दर्शन सदैव सामने की ओर से करने चाहिए. कहा जाता है कि गणेश जी के पीछे की तरफ दरिद्रता निवास करती है, इसलिए पीठ की तरफ से गणेश जी के दर्शन नहीं करने चाहिए.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेशजी का जन्म हुआ था। इस उपलक्ष्य में हर साल गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व की सबसे ज्यादा धूम महाराष्ट्र में देखने को मिलती है। मगर इस बार कोरोना के चलते सबसे ज्यादा प्रभावित इस राज्य में त्योहार का रंग कहीं फीका न पड़ जाए।
गणेशजी को प्रथम पूजनीय कहा जाता है, क्योंकि किसी भी शुभ कार्य में पहले श्रीगणेश की पूजा की जाती है। भक्तगण वैसे तो सालभर बप्पा की पूजा करते हैं, लेकिन बुधवार और चतुर्थी को गणपति की पूजा का विशेष महत्व है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार गणेश जन्मोत्सव हर साल भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। लेकिन इस साल की बात कुछ अलग है क्योंकि इस समय कोरोना वायरस से पूरी दुनिया प्रभावित है। वायरस की रोकथाम के लिए लोग सामाजिक दूरियां बना रहे हैं। ऐसे में आप गणेश उत्सव पर सामूहिक कार्यक्रम में हिस्सा न लेकर स्वयं ही अपने घर पर विधिनुसार गणपति बप्पा को स्थापित कर सकते हैं।
पूजा का शुभ मुहर्त पूर्वाह्न 11 बजकर सात मिनट से दोपहर एक बजकर 42 मिनट तक
दूसरा शाम चार बजकर 23 मिनट से सात बजकर 22 मिनट तक
रात में नौ बजकर 12 मिनट से 11 बजकर 23 मिनट तक है।
गणेशजी को मोदक के लड्डू बड़े प्रिय हैं. मोदक भी कई तरह के बनते हैं. महाराष्ट्र में खासतौर पर गणेश पूजा के अवसर पर घर-घर में तरह-तरह के मोदक बनाए जाते हैं.
भगवान गणेश (Ganesh Chaturthi 2020) को हिंदू धर्म में प्रथम पूजनीय माना जाता है. किसी भी शुभ कार्य में सबसे पहले गणेश जी की ही पूजा की जाती हैं. ग्रह प्रवेश और भूमि पूजन से पहले हर बार गणपति को पहले पूजा जाता है. शास्त्रों में वैसे तो हर माह चतुर्थी को गणेश जी की पूजा का विधान है, लेकिन भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को देश भर में धूम धाम से मनाई जाती है.