मान्यता है कि भगवान गणेश (Lord Ganesha) का जन्म भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को सोमवार में मध्याह्न काल यानी दोपहर के समय में हुआ था। इस साल गणेशोत्सव (Ganeshotsava) 2 सितंबर को मनाया जायेगा। पूजन का शुभ मूहर्त दोपहर 11 बजकर 4 मिनट से 1 बजकर 37 मिनट तक रहेगा। इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं। लोग अपने घरों में गणपति बाबा (Ganpati Bappa) की मूर्ति लाते हैं और उसकी विधि विधान स्थापना कर 9 दिनों तक पूजा की जाती है। उसके बाद दसवें दिन उस मूर्ति का विसर्जन किया जाता है। जानें कैसे शुरु हुई गणेश चतुर्थी मनाने की परंपरा…

गणेश जन्मोत्सव का पर्व 10 दिनों तक मनाया जाता है

आज गणेश जन्मोत्सव का पर्व 10 दिनों तक मनाया जाता है लेकिन पहले संपूर्ण भारत में भाद्रपद की शुक्लपक्ष की गणेश चतुर्थी एक ही दिन मनायी जाती थी। ऐसा माना जाता है कि इस पर्व को भव्य रूप देने की शुरुआत शिवाजी महाराज ने की थी। क्योंकि शिवाजी महाराज भगवान गणेश को काफी मानते थे। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार शिवाजी महाराज के बचपन में उनकी मां जीजाबाई ने पुणे के गांव कसबा में गणपति जी की स्थापना कर इस पर्व को भव्यतम बनाने की शुरुआत की। उनके बाद पेशवा राजाओं द्वारा भी गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया गया। कहा जाता है कि पेशवाओं के महल शनिवारवाडा में पेशवा के लोग पुणेवासियों के साथ बड़ी उत्साह के साथ इस पर्व को मनाते थे। लेकिन जब ब्रिटिश हुकूमत आयी तो उन्होंने पेशवाओं के राज्यों पर अधिकार किया और गणेशोत्सव के महत्व को को कम करने की कोशिश की।

राशि के अनुसार ही घर लाएं गणपति की प्रतिमा

ऐतिहासिक तथ्यों से इस बात की भी जानकारी मिलती है कि गणेश चतुर्थी पर विशेष उत्सव की शुरुआत 1893 में महाराष्ट्र से लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने की। तिलक अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ स्वराज के लिए संघर्ष कर रहे थे। तिलक ने महसूस किया कि महाराष्ट्र के लोगों में गणेश जी के प्रति खासी भक्ति एवं आस्था है। अगर गणेशोत्सव के मंच का विस्तार किया जाये तो इस मंच के नीचे काफी लोगों तक अपनी बात पहुंचाई जा सकती है।

अंततः बाल गंगाधर तिलक ने 20 अक्टूबर 1893 में अपने निवास स्थान पुणे के केसरीवाडा से गणेशोत्सव के स्वरूप को विस्तार देते हुए 11 दिनों के गणोशोत्सव का सिलसिला शुरू किया। इस उत्सव के तहत 10 दिनों के कार्यक्रमों में लोकगीतों और मराठी नाटकों का मंचन किया गया, शिवाजी की वीरता की कहानियां दिखाई गयीं, आजादी के लिए जनता को जागरूक किया गया, छुआछूत दूर करने और समाज को संगठित करने की कोशिश की गई। कुछ ही सालों में यह पर्व एक बड़ा आंदोलन बन गया। जिसने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने में अहम भूमिका निभाई।