Namami Shamishan Nirvan Rupam: सप्ताह के हर वार का संबध किसी न किसी भगवान और ग्रह से माना जाता है। यहां हम बात करने जा रहे हैं सोमवार के बारे में, जिसका संबंध भोलेनाथ और चंद्र ग्रह से माना जाता है। इसदिन पूजा- अर्चना करके भोलेनाथ और चंद्र ग्रह को प्रसन्न किया जा सकता है। यहां हम आपको बताने जा रहे हैं शिव रुद्राष्टकम पाठ क बारे में, जिसका पाठ करने से महादेव प्रसन्न होते हैं। साथ ही इस स्तुति के पाठ से आपको आरोग्य और सुख- समृद्धि की प्राप्ति होगी वहीं नियमित इसके पाठ से मनुष्य पाप मुक्त हो जाता है। रुद्राष्टकम भगवान शिव की स्तुति गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित है। साथ ही इसका वर्णन रामायण में मिलता है। आइए जानते हैं इस स्तुति के बारे में…
इस विधि से रुद्राष्टकम भगवान शिव की स्तुति
इस स्तुति के पाठ का आरंभ सोमवार से करना चाहिए। साथ ही इसके लिए सुबह जल्दी उठ जाएं और फिर साफ- सुथरे वस्त्र धारण करें और फिर इसके बाद पूजा की चौकी पर एक सफेद वस्त्र बिछाएं। फिर इसके बाद शिवलिंग या भगवान शिव का चित्र स्थापित करें और फिर धूप, अगरबत्ती जलाएं। साथ ही भगवान शिव को सफेद चीजों का भोग लगाएं और फिर इस स्तुति का पाठ करें। साथ ही अंत में इस प्रसाद को सभी को बांट दें।
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्॥
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजे हं।।
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।
करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतो हं।।
तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा।।
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं।।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि।।
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्।
त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिं। भजे हं भवानीपतिं भावगम्यं।।
कलातीत कल्याण कल्पांतकारी। सदासज्जनानन्ददाता पुरारी।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी।।
न यावद् उमानाथ पादारविंदं। भजंतीह लोके परे वा नराणां।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं।।
न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतो हं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यं।
जराजन्म दु:खौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्न्मामीश शंभो।।
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये। ये पठन्ति नरा भक्तया तेषां शम्भु: प्रसीदति॥
ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय