Navgrah Stotra Benefits: वैदिक ज्योतिष अनुसार जब भी किसी व्यक्ति का जन्म होता है, तो उसकी कुंडली में कोई ग्रह सकारात्मक तो कोई ग्रह अशुभ स्थित होता है और इन ग्रहों का प्रभाव उस व्यक्ति के जीवन पर लाइफटाइम पड़ता है। वहीं ग्रहों का शुभ और अशुभ व्यक्ति के वैवाहिक जीवन, करियर- कारोबार और सेहत पर पड़ता है। वहीं यहां हम बात करने जा रहे हैं अशुभ ग्रहों के उपाय के बारे में, मतलब अगर कुंडली में कोई ग्रह नीच या अशुभ के स्थित हैं तो ज्योतष में उन ग्रह के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए नवग्रह स्त्रोत और शनि स्त्रोत का वर्णन मिलता है। मतलब अगर आप पर शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही हो तो आप लोग इन स्त्रोत का पाठ कर सकते हैं ऐसा करने से आपको शनि और अन्य ग्रहों के अशुभ प्रभाव से छुटकारा मिल सकता है। साथ ही जीवन में सुख- समृद्धि का वास रहेगा। वहीं आर्थिक स्थिति भी मजबूत रहेगी। आइए जानते हैं इन स्त्रोतों के बारे में…
श्री नवग्रह स्तोत्र पाठ
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महद्युतिं।
तमोरिसर्व पापघ्नं प्रणतोस्मि दिवाकरं।। (रवि)
दधिशंख तुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवं।
नमामि शशिनं सोंमं शंभोर्मुकुट भूषणं।। (चंद्र)
धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांतीं समप्रभं।
कुमारं शक्तिहस्तंच मंगलं प्रणमाम्यहं।। (मंगल)
प्रियंगुकलिका शामं रूपेणा प्रतिमं बुधं।
सौम्यं सौम्य गुणपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहं।। (बुध)
देवानांच ऋषिणांच गुरुंकांचन सन्निभं।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिं।। (गुरु)
हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरूं।
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहं।। (शुक्र)
नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजं।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्वरं।। (शनि)
अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनं।
सिंहिका गर्भसंभूतं तं राहूं प्रणमाम्यहं।। (राहू)
पलाशपुष्प संकाशं तारका ग्रह मस्तकं।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहं।। (केतु)
शनि स्तोत्र
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।1
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते। 2
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते। 3
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने। 4
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च। 5
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते। 6
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:। 7
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्। 8
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:। 9
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:।10