Ganesh Stotra: ज्योतिष में हर दिन का संबध किसी न किसी ग्रह और देवता से माना गया है। जैसे सोमवार का संबंध चंद्र ग्रह और भगवान शिव से माना जाता है। ऐसे ही बुधवार का संबंध बुध ग्रह और भगवान गणेश से माना जाता है। सभी देवताओं में गणेश भगवान की पूजा सर्वप्रथम करने का विधान है। वहीं बुध ग्रह व्यापार के दाता माना जाते हैं। इसलिए जो व्यक्ति बुधवार के दिन भगवान गणेश और बुध ग्रह से संबंधित उपाय करता है, उसको व्यापार और करियर में तरक्की के योग बनते हैं। यहां हम आपको बताने जा रहे हैं कि अगर कोई व्यक्ति बुधवार के दिन संकटनाशन गणेश स्त्रोत और गणेश स्तुति का पाठ करें, तो उसके जीवन में सुख- समृद्धि का वास रहेगा। साथ ही विघ्नहर्ता गणेश जी उसके सभी कष्ट हर लेंगे। नारद पुराण में संकटनाशन गणेश स्तोत्र का वर्णन मिलता है आइए जानते हैं इस स्त्रोत के बारे मेंं…
संकटनाशन गणेश स्तोत्र (Ganesh Stotra) :
प्रणम्य शिरसा देवं गौरी विनायकम् ।
भक्तावासं स्मेर नित्यमाय्ः कामार्थसिद्धये ॥1॥
प्रथमं वक्रतुडं च एकदंत द्वितीयकम् ।
तृतियं कृष्णपिंगात्क्षं गजववत्रं चतुर्थकम् ॥2॥
लंबोदरं पंचम च पष्ठं विकटमेव च ।
सप्तमं विघ्नराजेंद्रं धूम्रवर्ण तथाष्टमम् ॥3॥
नवमं भाल चंद्रं च दशमं तु विनायकम् ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजानन् ॥4॥
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंघ्यंयः पठेन्नरः ।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ॥5॥
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मो क्षार्थी लभते गतिम् ॥6॥
जपेद्णपतिस्तोत्रं षडिभर्मासैः फलं लभते ।
संवत्सरेण सिद्धिंच लभते नात्र संशयः ॥7॥
अष्टभ्यो ब्राह्मणे भ्यश्र्च लिखित्वा फलं लभते ।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ॥8॥
॥ इति श्री नारद पुराणे संकष्टनाशनं नाम श्री गणपति स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
भगवान श्री गणेश स्तुति मंत्र (Ganesh Stuti Mantra)
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय, लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय!
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय, गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते!!
भक्तार्तिनाशनपराय गनेशाश्वराय, सर्वेश्वराय शुभदाय सुरेश्वराय!
विद्याधराय विकटाय च वामनाय , भक्त प्रसन्नवरदाय नमो नमस्ते!!
नमस्ते ब्रह्मरूपाय विष्णुरूपाय ते नम:!
नमस्ते रुद्राय्रुपाय करिरुपाय ते नम:!!
विश्वरूपस्वरूपाय नमस्ते ब्रह्मचारणे!
भक्तप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक!!
लम्बोदर नमस्तुभ्यं सततं मोदकप्रिय!
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा!!
त्वां विघ्नशत्रुदलनेति च सुन्दरेति ,
भक्तप्रियेति सुखदेति फलप्रदेति!
विद्याप्रत्यघहरेति च ये स्तुवन्ति,
तेभ्यो गणेश वरदो भव नित्यमेव!!
गणेशपूजने कर्म यन्न्यूनमधिकं कृतम !
तेन सर्वेण सर्वात्मा प्रसन्नोSस्तु सदा मम !!