वैदिक ज्योतिष गुरु ग्रह का विशेष महत्व है। क्योंकि गुरु ग्रह को देवताओं का गुरु माना गया है। साथ ही गुरु ग्रह ज्ञान, शिक्षक, संतान, बड़े भाई, शिक्षा, धार्मिक कार्य, पवित्र स्थल, धन, दान, पुण्य और वृद्धि आदि के कारक हैं। वहीं अगर कुंडली में गुरु ग्रह सकारात्मक हो तो व्यक्ति का वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है। साथ ही व्यक्ति धर्म से चलता है और वह आस्तिक होता है।
वहीं व्यक्ति को जीवन में मान- सम्मान और प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। वहीं अगर गुरु कुंडली में अशुभ और कमजोर हो तो विभिन्न क्षेत्रों में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। यदि कोई व्यक्ति शिक्षा क्षेत्र से जुड़ा है तो उसे इस क्षेत्र में परेशानियां आती हैं। साथ ही व्यक्ति का वैवाहिक जीवन खराब हो जाता है। लेकिन ज्योतिष में गुरु ग्रह को मजबूत करने के लिए गुरु स्त्रोत का वर्णन मिलता है। मतलब अगर कोई व्यक्ति हर गुरुवार को गुरु स्त्रोत का पाठ करें, तो व्यक्ति गुरु के अशुभ प्रभाव से काफी हद बच सकता है। आइए जानते हैं गुरु कवच के बारे में…
बृहस्पति कवच
अभीष्टफलदं देवं सर्वज्ञम् सुर पूजितम् ।
अक्षमालाधरं शांतं प्रणमामि बृहस्पतिम् ॥
बृहस्पतिः शिरः पातु ललाटं पातु मे गुरुः ।
कर्णौ सुरगुरुः पातु नेत्रे मे अभीष्ठदायकः ॥
जिह्वां पातु सुराचार्यो नासां मे वेदपारगः ।
मुखं मे पातु सर्वज्ञो कंठं मे देवतागुरुः ॥
भुजावांगिरसः पातु करौ पातु शुभप्रदः ।
स्तनौ मे पातु वागीशः कुक्षिं मे शुभलक्षणः ॥
नाभिं केवगुरुः पातु मध्यं पातु सुखप्रदः ।
कटिं पातु जगवंद्य ऊरू मे पातु वाक्पतिः ॥
जानुजंघे सुराचार्यो पादौ विश्वात्मकस्तथा ।
अन्यानि यानि चांगानि रक्षेन्मे सर्वतो गुरुः ॥
इत्येतत्कवचं दिव्यं त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः ।
सर्वान्कामानवाप्नोति सर्वत्र विजयी भवेत् ॥
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुस्साक्षात्परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरं।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
अनेकजन्मसंप्राप्तकर्मबन्धविदाहिने ।
आत्मज्ञानप्रदानेन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
मन्नाथः श्रीजगन्नाथो मद्गुरुः श्रीजगद्गुरुः।
ममात्मासर्वभूतात्मा तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
बर्ह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम्,
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं,
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि ॥
इस विधि से करें गुरु स्त्रोत का पाठ
इस स्त्रोत का पाठ गुरुवार के दिन शुरू करना चाहिए। इसके लिए सुबह जल्दी उठ जाएं और साफ- सुथरे वस्त्र धारण करें। इसके बाद गुरुवार के दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय गुरु स्तोत्र का पाठ करें।