Shani Yantra: वैदिक ज्योतिष में शनि देव को कर्मफल दाता और न्याय प्रदाता कहा जाता है। वहीं शनि देव एक राशि से दूसरी राशि में लगभग ढेड़ साल बाद राशि परिवर्तन करते हैं। आपको बता दें कि शनि देव मकर और कुंभ राशि के स्वामी होते हैं। वहीं इनकी उच्च राशि तुला होती है और मेष राशि में यह नीच के हो जाते हैं। वहीं शनि जब भी राशि परिवर्तन करते हैं तो कुछ राशियों पर शनि की ढैय्या शुरू होती है तो कुछ पर साढ़ेसाती।
आपको बता दें कि शनि देव अभी कुंभ राशि में भ्रमण कर रहे हैं इसलिए अभी कर्क और वृश्चिक राशि पर शनि की ढैय्या चल रही है तो भी मीन राशि पर शनि की साढ़ेसाती शुरू हुई है। वहीं कुंभ और मकर राशि वालों पर भी शनि की साढ़ेसाती चल रही है। साढ़ेसाती में शनि स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते हैं। साथ ही बनते- बनते काम बिगड़ जाते हैं और किस्मत का साथ नहीं मिलता है। वहीं करियर और कारोबार में सफलता नहीं मिलती है। लेकिन ज्योतिष में शनि दोष, ढैय्या और साढ़ेसाती के अशुभ प्रभाव से चलने के लिए शनि यंत्र का वर्णन मिलता है। जिसको स्थापित या धारण करने से शनि पीड़ा से मुक्ति मिलती है। साथ ही कार्यों में सफलता मिलती है। आइए जानते हैं इस यंत्र के बारे में…
क्या है शनि यंत्र
वैदिक ज्योतिष अनुसार जब किसी मंत्र का आकार दिया जाता है, तो वह यंत्र बन जाता है। आपको बता दें कि शनि यंत्र आप तांबे का खरीद सकते हैं या किसी ब्राह्राण से ताम्र या भोज पत्र पर बनबा सकते हैं। इसको आप लगे में भी धारण कर सकते हैं।
इस विधि से करें स्थापित
शनि यंत्र को शनिवार के दिन स्थापित या धारण करना चाहिए। साथ ही शनि यंत्र को घर में स्थापित करने से पहले पंचोपचार से उसकी पूजा किसी योग्य ब्राह्राण से करवाएं। जिससे वह प्रभावी हो जाए। वहीं जिस शनि यंत्र को धारण या स्थापित करें उस दिन व्रत रखें और पूजन के दौरान शनि चालीसा का पाठ करें। ऐसा करने से व्यक्ति को तत्काल फल की प्राप्ति होगी। साथ ही शनि प्रकोप से मुक्ति मिलेगी।