मुस्लिम समुदाय में ईद-मिलाद-उन-नबी का विशेष महत्व है। आज पूरे देश में इस पर्व को मनाया जा रहा है। माना जाता है कि आज के दिन पैगंबर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जन्म हुआ था। इसी के कारण इसे मुस्लिम समुदाय के लोग इबादत करने के साथ घरों को सजाते हैं और जुलूस भी निकालते जाते हैं। लेकिन कई बार हमारे जह़न में ये बात आती है कि साल में आखिर कितनी बार ईद का पर्व मनाया जाता है। दरअसल ईद तो एक होती है जिसमें मीठी सेवइयां से लेकर ईदी तक दी जाती है। लेकिन हम इस बात को मान लेते हैं कि बकरीद से लेकर ईद-मिलाद-उन-नबी सभी एक है। आइए जानते हैं हर एक ईद का मतलब।

बता दें कि शरीयती तौर पर सिर्फ दो ईद होती है जिन्हें ईद-उल-फितर और ईद-उल-अज़हा कहा जाता है। हर एक पर्व की तारीख हिजरी कैलेंडर के चांद की तारीखों के ऊपर निर्भर है।

ईद-उल-फितर

ईद-उल-फितर मुसलमानों का काफी बड़ा त्योहार है,जो रमजान का पाक माह समाप्त होने के बाद मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार, चांद की स्थिति के हिसाब से रमजान आरंभ होते हैं, जिसमे रोज रखे जाते हैं। जो व्यक्ति सच्चे मन से रोजे रखते हैं उनके ऊपर अल्लाह मेहरबान होते हैं। रमजान समापन के साथ ईद का पर्व मनाया जाता है जिसे मीठी ईद, ईद-उल-फितर के नाम से जानते हैं। रमजान खत्म होने के अगले दिन सुबह नमाज़ अदा करने के साथ जकात देने की परंपरा है। इसके साथ ही इस दिन ही मीठी सेवइयां बनाई जाती है।

ईद-उल-अज़हा

 ईद-उल-अज़हा को बकरीद नाम से जानते हैं। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, इस्लाम का 12वां महीना धूल हिज्जा होता है और इसी में बकरीद का पर्व मनाया जाता है। बकरीद को कुर्बानी के रूप में मनाते हैं। मान्यताओं के अनुसार, एक बार अल्लाह ने हज़रत इब्राहीम की इम्तिहान लेने के लिए उन्हें अपनी प्रिय चीज की कुर्बानी देने को कहा थाष। ऐसे में उन्होंने अपने बेटे  हज़रत इस्माइल अलैहिस्सलाम की कुर्बानी देने जा रहे थे। अल्लाह को उनकी नियति काफी अच्छी लगीं। ऐसे में उनके बेटे की जगह एक डुम्बा (एक प्रकार का बकरा) कुर्बान हो गया था।

ईद-मिलाद-उन-नबी

ईद-मिलाद-उन-नबी की बात करें, तो इस दिन पैगंबर हज़रत मुहम्मद का जन्म हुआ था। इसके साथ ही इसी दिन उनकी मृत्यु भी हुई थी। इसे बारह रबीउल-उल-अव्वल और बारावफात के नाम से भी जानते हैं। इस्लामी माह की रबी अल-अव्वल की 12वीं तारीख को मनाते हैं।