हिंदू धर्म में ग्रहण लगना एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है जिसका अपना ज्योतिषीय महत्व भी है। इस साल कुल 6 ग्रहण लगने हैं। जिनमें से एक ग्रहण 10 जनवरी को लग चुका है जो एक चंद्रग्रहण था और अब दूसरा ग्रहण 5 जून को लगने जा रहा है ये भी चंद्रग्रहण होगा। जून में ही साल का पहला सूर्य ग्रहण भी लगने वाला है। जहां विज्ञान की दृष्टि में ग्रहण का अपना अलग महत्व होता है उसी तरह ज्योतिष अनुसार भी ग्रहण का एक अलग ही महत्व है। ग्रहण का असर सभी लोगों पर पड़ता है।

5 जून को उपच्छाया चंद्र ग्रहण लगेगा। जिसका प्रारंभ रात 11:16 बजे से हो जाएगा और इसकी समाप्ति 02:32 AM पर होगी। इस दौरान तारीख 6 जून लग चुकी होगी। ये ग्रहण अपने पूर्ण प्रभाव में रात 12:54 बजे पर होगा। भारत समेत इस ग्रहण को यूरोप, अफ्रीका, एशिया और ऑस्ट्रेलिया में देखा जा सकेगा। ज्योतिष अनुसार उपच्छाया चंद्रग्रहण होने के कारण इसका सूतक काल मान्य नहीं होगा। क्योंकि सूतक काल उसी ग्रहण का मान्य होता है जिस ग्रहण को खुली आंखों से देखा जा सके।

क्या होता है उपच्छाया ग्रहण: उपच्छाया चंद्र ग्रहण तब होता है जब सूरज और चांद के बीच धरती घूमते हुए आती है लेकिन वे तीनों एक सीधी लाइन में नहीं होते। ग्रहण लगने से पहले चंद्रमा पृथ्वी की उपच्छाया में प्रवेश करता है उसके बाद वह पृथ्वी की वास्तविक छाया भूभा में प्रवेश करता है। जब ऐसा होता है तब चंद्रग्रहण लगता है। लेकिन कई बार ऐसा भी हो जाता है कि चंद्रमा केवल पृथ्वी की उपच्छाया में ही प्रवेश करके वापस लौट जाता है। इस दौरान चंद्रमा का बिंब केवल धुंधला नजर आता है काला नहीं। इस ग्रहण को सामान्य रूप से देखा नहीं जा सकता।

जानिए क्यों लगता है ग्रहण? चंद्र ग्रहण तब लगता है जब पृथ्वी चंद्रमा के ठीक पीछे उसकी प्रच्छाया में आ जाती है। इसी तरह सूर्य ग्रहण तब लगता है जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है। ये तो हैं ग्रहण लगने के वैज्ञानिक कारण। इसी के साथ ग्रहण लगने को लेकर कुछ धार्मिक कारण भी होते हैं। जिनके अनुसार राहु केतु के कारण ग्रहण लगता है। क्योंकि राहु केतु सूर्य और चंद्रमा को अपना दुश्मन मानते हैं जो कभी कभी पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का तो अमावस्या के दिन सू्र्य का ग्रास कर लेते हैं।