बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) के दिन सुपरमून (Supermoon) दिखाई देगा जिसे सुपर फ्लॉवर मून (Super Flower Moon) भी कहा जाता है। इसके महीने भर बाद यानी ज्येष्ठ पूर्णिमा पर चंद्र ग्रहण लगेगा। ये साल का दूसरा चंद्र ग्रहण होगा जो 05 जून की रात से शुरू होकर 6 जून तक रहेगा। उपच्छाया चंद्र ग्रहण होने की वजह से इसका सूतक काल मान्य नहीं होगा। इस ग्रहण को भारत समेत यूरोप, अफ्रीका, एशिया और ऑस्ट्रेलिया में दिखाई देगा। जानिए क्यों और कैसे लगता है ग्रहण…
ग्रहण लगने के वैज्ञानिक कारण: विज्ञान के अनुसार पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है जबकि चंद्रमा पृथ्वी के चारों तरफ घूमता है। कई बार पृथ्वी घूमते घूमते सूर्य व चंद्रमा के बीच में आ जाती है। इस स्थिति में पृथ्वी चांद को अपनी ओट से पूरी तरह से ढक लेती है जिस कारण चांद पर सूर्य की रोशनी नहीं पड़ पाती इसे ही चंद्र ग्रहण कहते हैं।
ग्रहण को लेकर धार्मिक मान्यताएं: पौराणिक मान्यता के अनुसार जब समुद्र मंथन चल रहा था तब उस दौरान देवताओं और दानवों के बीच अमृत पान के लिए विवाद पैदा शुरू होने लगा, तो इसको सुलझाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया। मोहिनी के रूप से सभी देवता और दानव उन पर मोहित हो उठे तब भगवान विष्णु ने देवताओं और दानवों को अलग-अलग बिठा दिया। लेकिन तभी एक असुर को भगवान विष्णु की इस चाल पर शक पैदा हुआ। वह असुर छल से देवताओं की लाइन में आकर बैठ गए और अमृत पान करने लगा।
देवताओं की पंक्ति में बैठे चंद्रमा और सूर्य ने इस दानव को ऐसा करते हुए देख लिया। इस बात की जानकारी उन्होंने भगवान विष्णु को दी, जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से दानव का सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन उस दानव ने अमृत को गले तक उतार लिया था, जिसके कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई और उसके सिर वाला भाग राहू और धड़ वाला भाग केतु के नाम से जाना गया। इसी वजह से राहू और केतु सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं। जिस कारण ये कुछ दफा पूर्णिमा के दिन चांद का और अमावस्या के दिन सूर्य का ग्रास कर लेते हैं।

