Dussehra 2025: अधर्म पर धर्म के विजय के प्रतीक के रूप में हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा का पर्व मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन प्रभु राम ने लंकापति रावण का वध किया था। दशहरा केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि न्याय, धर्म और सत्य की स्थापना का पर्व है। इस दिन भगवान श्रीराम की विधिपूर्वक पूजा करना विशेष पुण्यदायक माना गया है। टैरो कार्ड रीडर और न्यूमरोलॉजिस्ट टैरो पूजा वर्मा के अनुसार, हिंदू धर्म और ज्योतिष शास्त्र में राहु-केतु और रावण के दस सिरों का गहरा संबंध है। ये दोनों ही प्रतीकात्मक रूप से जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं, जो हमारे व्यक्तित्व, मानसिकता और आध्यात्मिकता से जुड़े होते हैं। जानें इनके बारे में…
राहु और केतु: छाया ग्रहों का प्रभाव
राहु और केतु को ज्योतिष में छाया ग्रह माना जाता है, क्योंकि इनका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं होता। ये ग्रह सूर्य और चंद्रमा के साथ मिलकर ग्रहण उत्पन्न करते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, स्वर्भानु नामक दानव ने देवताओं से अमृत चुराया था, जिसके परिणामस्वरूप भगवान विष्णु ने उसका सिर काट दिया, जिससे राहु और केतु का जन्म हुआ। राहु का सिर और केतु का धड़ है। राहु का प्रभाव व्यक्ति की मानसिकता, भ्रम और भौतिक इच्छाओं पर होता है, जबकि केतु का प्रभाव आध्यात्मिकता, मोक्ष और आत्मज्ञान पर होता है। इन ग्रहों की स्थिति कुंडली में व्यक्ति के जीवन की दिशा और संघर्ष को निर्धारित करती है।
रावण के दस सिर: दस इन्द्रियों का प्रतीक
रावण के दस सिरों को दस इन्द्रियों का प्रतीक माना जाता है
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ: कान, आँख, नाक, जीभ, और त्वचा।
पाँच कर्मेन्द्रियाँ: हाथ, पैर, मुख, गुप्तांग और गुदा।
रावण के दस सिर यह दर्शाते हैं कि व्यक्ति को अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना चाहिए, क्योंकि ये इन्द्रियाँ ही उसे संसार के मोह-माया में बांधती हैं। रावण का वध यह शिक्षा देता है कि आत्मसंयम और विवेक से ही जीवन में सच्ची सफलता प्राप्त की जा सकती है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण
राहु और केतु की स्थिति कुंडली में व्यक्ति के जीवन में विभिन्न प्रभाव डालती है। यदि ये ग्रह शुभ स्थानों पर स्थित होते हैं, तो व्यक्ति को मानसिक शांति, आध्यात्मिक उन्नति और भौतिक सुख मिलते हैं। वहीं, यदि ये ग्रह अशुभ स्थानों पर होते हैं, तो मानसिक तनाव, भ्रम और जीवन में संघर्ष बढ़ सकते हैं।
रावण के दस सिरों का अध्ययन भी व्यक्ति के मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है। यह दर्शाता है कि हमें अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना चाहिए और आत्मज्ञान की ओर अग्रसर होना चाहिए।
राहु-केतु और रावण के दस सिरों का अध्ययन हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करता है। ये प्रतीकात्मक रूप से दर्शाते हैं कि मानसिकता, इन्द्रियों और आध्यात्मिकता का संतुलन ही जीवन में सच्ची सफलता और शांति का मार्ग है। हमें इन प्रतीकों से शिक्षा लेकर अपने जीवन में आत्मसंयम, विवेक और आध्यात्मिक उन्नति की ओर कदम बढ़ाना चाहिए।
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